नई दिल्ली: कोरोना महामारी से जूझती दुनिया में बड़ी आबादी बेसब्री से वैक्सीन का इंतजार कर रही है. इसने कोविड-19 के खिलाफ कारगर टीका तैयार करने वाले भारत जैसे मुल्क को मानवता की मदद और अपनी कूटनीति के लिए अच्छा साधन भी दे दिया है. ऐसे में दुनिया का दवाखाना कहलाने वाले भारत न केवल अपनी आबादी को टीका मुहैया कराने की शुरुआत करने जा रहा है बल्कि दुनिया के कई मुल्कों को भी वैक्सीन मुहैया कराने की तैयारी कर रहा है.
दुनिया को वैक्सीन उपलब्ध कराना हमारी जिम्मेदारी- वैक्सीन निर्माता कंपनियां
व्यापक पैमाने पर भारतीय वैक्सीन की निर्यात संभावनाओं का स्पष्ट संकेत देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण कह चुके हैं कि भारत सरकार ने इसपर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है. वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों, सीरम इंस्टूट्यूट और भारत बायोटेक की तरफ से बीते दिनों जारी संयुक्त बयान में कह चुकी हैं कि वैक्सीन वैश्विक स्वास्थ्य बेहतरी का प्रयास है. ऐसे में कंपनियां इसे उपलब्ध कराना देश और दुनिया के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझती हैं.
बीते दिनों जहां नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी मुल्कों ने भारतीय वैक्सीन में अपनी दिलचस्पी दिखाई वहीं कजाखिस्तान जैसे मध्य एशियाई देश ने भी इसे हासिल करने में रुचि जताई. नई दिल्ली में कजाखिस्तान के राजदूत यरलान एलिमबायेव ने कहा कि भारत के साथ अभी वैक्सीन खरीद पर कोई बात नहीं हुई है. लेकिन हमें पता है कि भारत ने कोरोना के दो वैक्सीन तैयार किए गए हैं जो अच्छे हैं. लिहाजा दोनों पक्षों के बीच बातचीत के बाद हम इन वैक्सीन को खरीदना चाहेंगे. वहीं दो दिन पहले भारतीय विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर की कोलंबो यात्रा के दौरान श्रीलंका ने भी इस बारे में अपनी दिलचस्पी दिखाई. इस बात की तस्दीक खुद विदेश मंत्री जयशंकर ने की.
वैश्विक मंच पर अपनी गुडविल बेहतर करेगा भारत- सूत्र
विदेश मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक हाइड्रोक्सीन क्लोरोक्वीन के बाद वैक्सीन एक और मौका होगा जिसके सहारे भारत वैश्विक मंच पर अपनी गुडविल बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकता है. जाहिर तौर पर इसका उपयोग किया जाएगा. वैक्सीन की एक बड़ी खेप जहां नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव जैसे देशों को प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराने का संकल्प जता चुका है. वहीं भारत की कोशिश वियतनाम, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस जैसे दक्षिण पूर्व एशिया के देशों, कजाखिस्तान, किर्जीस्तान, उजबेकिस्तान समेत मध्य-एशिया और अफ्रीका महाद्वीप के कई देशों के साथ भारतीय वैक्सीन साझा करने की है.
ध्यान रहे कि भारत ने नवंबर में जहां 180 से अधिक देशों के राजनयिकों को अपनी वैक्सीन निर्माण क्षमताओं और कोरोना टीका बनाने की तैयारियों पर ब्रीफ किया था. वहीं दिसंबर की शुरुआत में 60 से अधिक देशों के राजनयिकों को हैदराबाद मे भारतीय वैक्सीन निर्माण क्षमताओं की बानगी भी दिखाई गई थी.
वैक्सीन के लिए बाजार तलाशेगा भारत
इस दौरान विदेशी राजनयिकों ने उस बारत बायोटेक कंपनी का भी दौरा किया था जिसके कोवैक्सीन को गत दिनों इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी गई है. इस दौरे में पड़ोसी मुल्कों में श्रीलंका, म्यांमार, भूटान, बांगलादेश, मालदीव और विस्तारित पड़ोस में ईरान शामिल था. मध्य एशिया में किर्गीज़स्तान, अज़रबैजान शरीक थे. वहीं यूरोप से हंगरी, आइसलैंड, डेनमार्क, चेक रिपब्लिक आदि और दक्षिण पूर्व एशिया- कम्बोडिया, मलेशिया, सिंगापुर समेत कई देशों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था. अफ्रीका के इलाके से इथियोपिया, नाइजीरिया, मिस्र, चाड, नाइजर के अलावा अनेक मुल्क और लैटिन इलाके के देशों जैसे ब्राज़ील, मेक्सिको, एल सल्वाडोर, बोलिविया जैसे के प्रतिनिधियों ने भी भारतीय वैक्सीन निर्माण क्षमताओं को देखा. स्वाभाविक तौर पर अब भारत की कोशिश इन मुल्कों में अपने वैक्सीन के लिए बाजार तलाशने की भी होगी.
भारत की यह कवायद एक सोची-समझी कूटनीतिक रणनीति और आपदा को अवसर बनाने की कोशिशों का भी हिस्सा है. आधिकारिक सूत्रों का मुताबिक इस तरह के राजनयिक दौरों के सहारे भारत की कोशिश देश में तैयार कोविड-रोधी टीकों के लिए नए विदेशी बाजार तलाशने की है. इस तरह की यात्राओं और दौरों से लौटने के बाद राजनयिक मिशन अपने मुख्यालयों को रिपोर्ट भेजेंगे तो उसमें इस बात का भी उल्लेख होगा कि किस तरह भारत में कोविड के खिलाफ वैक्सीन तैयार करने और उसके व्यापक उत्पादन की व्यवस्था मौजूद है.
यह बात सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया में जहाँ कोविड-19 के खिलाफ टीके की ज़रूरत है वहीं किसी भी एक वैक्सीन से इसको पूरा करना मुमकिन नहीं है. ऐसे में न केवल बहुत से वैक्सीन विकल्पों की ज़रूरत होगी बल्कि बड़े पैमाने पर उनकी ज़रूरत होगी. यह स्थिति भारत-बायोटेक जैसी देसी कंपनियों के लिए एक मौका है जिसने कोवैक्सीन नामक अपना कोविड-रोधी टीका विकसित किया है.
सूत्र बताते हैं कि भारत अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य-एशिया का कई मुल्कों में देशी टीकों के लिए बाजार तलाश रहा है. इसी कड़ी में हैदराबाद ले जाए गए विदेशी राजनयिकों के दल में अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका, मध्य-एशिया समेत अनेक इलाकों से छोटे-बड़े की देशों को आमंत्रित किया गया था. ट
मुल्कों के साथ साझेदारी बनाने की भी तैयारी
विदेशी राजनयिकों के इस दौरे के सहारे भारत की कोशिश उन मुल्कों के साथ साझेदारी बनाने की भी है जो अपने वैक्सीन तैयार कर रहे हैं. गौरतलब है कि ओक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राजेन्का वैक्सीन के सह-उत्पादन के लिए पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट जैसी कंपनियां साझेदार बन चुकी हैं. वहीं रूस ने भी अपने स्पुतनिक वैक्सीन के लिए रेड्डीज़ लैब कम्पनी के साथ हाथ मिलाया है.
बीते दिनों ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी कहा था कि भारत और चीन मिलकर ही पूरी दुनिया की ज़रूरत का वैक्सीन उत्पादित कर सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी पुरजोर तरीके से लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भारत की वैक्सीन निर्माण क्षमताएं पूरी मानवता की मदद करने के लिए तैयार है.
टीकों के निर्माण को लेकर दुनिया का भरोसे और भारत के आत्मविश्वास को समझने का लिए पहले कुछ आंकड़ों पर नज़र डालना ज़रूरी होगा. दुनिया में बनने वाली 60 फीसद वैक्सीन का उत्पादन भारत में होता है. यानि दुनिया भर में विभिन्न बीमारियों के खिलाफ इस्तेमाल हो रहे तीन में से एक टीके पर मेड इन इंडिया की मुहर लगी है. जाहिर है यह किसी भी भारतीय को फख्र का सबब देने के लिए काफी है.
इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी वैश्विक संस्था अपनी ज़रूरत का 60-80 प्रतिशत वैक्सीन भारत से खरीदती है. भारत की वैक्सीन निर्माण क्षमताओं पर भरोसे का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके उत्पादों के विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्री-अप्रूव्ड का तमगा के रखा है.
भारत की वैक्सीन निर्माण क्षमताओं का बड़ा केंद्र
भारत की वैक्सीन निर्माण क्षमताओं का बड़ा केंद्र है हैदराबाद जिसे देश की वैक्सीन राजधानी भी कहा जाता है. हैदराबाद में बड़ी संख्या में भारत-बायोटेक और बायोलॉजिकल-ई समेत अनेक कम्पनियां है जिनके पास पहले से USFDA मंजूरी है. जिसका सीधा अर्थ है कि उनके उत्पाद अमेरिका में भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं. स्वाभाविक तौर पर USFDA मंजूरी वाले किसी भी उत्पाद को गुणवत्ता का मानक माना जाता है और कई देश केवल इसको आधार बनाकर अपने यह दवाओं और टीकों को इजाजत दे देते हैं.
हैदराबाद गए विदेशी राजनयिकों के दल ने भारत बायोटेक में जहां कोवैक्सीन पर जानकारी और निर्माण क्षमता देखी. वहीं बायोलॉजिकल-ई जैसी कंपनी ने बड़ी पैमाने पर वैक्सीन उत्पादन की अपनी काबीलियत पर प्रेजेंटेशन दिए गए थे. बायोलॉजिकल-ई कंपनी के एक प्रतिनिधि के मुताबिक मेहमान राजनयिकों को विस्तृत प्रेजेंटेशन के सहारे यह बताया गया था कि टीकों के उत्पादन में बेहतर यही होता है कि विशेषज्ञ फैसेलिटीज का इस्तेमाल की जाए. क्योंकि क़ई छोटे देशों के लिए उत्पादन के लिए ज़रूरी क्षमता बनाने में लगने वाली लागत का बोझ उठाना मुमकिन नहीं होता है. साथ ही इसके मानकों को पूरा करना भी हर जगह सम्भव नहीं. ऐसे में अधिकतर देश व्यापक उत्पादन क्षमता वाली जगहों से अपनी जरूरत के टीकों की सोर्सिंग करते हैं.
भारत ने 150 देशों को भेजी थी हैड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा
ज़ाहिर है विशेषज्ञ उत्पादन क्षमता से जुड़ी ज़रूरतें भी भारत की उम्मीदों को बढ़ाती हैं. ध्यान रहै कि कोविड19 महामारी के दौरान ही भारत ने हैड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन जैसी दवा की अमेरिका समेत दुनिया के 150 देशों को आपूर्ति की थी. इसके अलावा भारत दुनिया के कई देशों में भारत की जेनेरिक दवाएं इस्तेमाल की जाती हैं.
ऐसे में दवा-डिप्लोमैसी के सहारे भारत की स्वाभाविक उम्मीद अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी आवाज़ का वजन बढ़ाने की होगी. यही वजह भी ही कि भारत अब खुलकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की कमियों और क्षमताओं पर सवाल उठाते हुए उनके सुधार की मुखर मांग कर रहा है. बीते कुछ महीनों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G20 से लेकर सँयुक्त राष्ट्र संघ और SCO की बैठकों में ऐसे सुधारों क़ई जरूरत उठाई जो दुनिया की मौजूदा वास्तविकता की तस्वीर दिखा सके.