18 Polluted Cities OF India: प्रदूषण में सबसे गंभीर बढ़ोतरी वाले 20 में से 18 शहर भारत (India) में हैं. इन शहरों में पीएम 2.5 (Particulate Matter-PM2.5) में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. पीएम का मतलब कणों के प्रदूषण से हैं. ये प्रदूषण (Pollution) के छोटे ठोस और तरल कणों को मिलकर बनते हैं. भारत के 18 शहरों में पीएम बढ़ने का ये खुलासा अमेरिका (America) के शोध संगठन हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट-एचईआई (Health Effects Institute -HEI) की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में दिल्ली (Delhi) में पीएम 2.5 का औसत स्तर सबसे अधिक है.
नौ साल तक रखी प्रदूषण पर नजर
दुनिया में पीएम 2.5 में सबसे अधिक बढ़ोतरी वाले 20 में से 18 शहर भारत में हैं. गौरतलब है कि अमेरिका (America) के शोध संगठन हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट-एचईआई (Health Effects Institute -HEI) ने दुनिया के 7,000 से अधिक शहरों में वायु प्रदूषण और वैश्विक स्वास्थ्य प्रभावों का व्यापक और विस्तृत अध्ययन किया. यह अध्ययन साल 2010 से लेकर 2019 तक किया गया. इस अध्ययन में प्रदूषण के दो सबसे हानिकारक कारकों पर ध्यान दिया गया.
इन दो हानिकारक कारकों में फाइन पार्टिकुलेट मैटर (Fine Particulate Matter-PM2.5) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (Nitrogen Dioxide-NO2) शामिल हैं. एचईआई ने अपनी इस रिपोर्ट को हवा की गुणवत्ता और शहरों में सेहत (Air Quality And Health In Cities) नाम दिया है. दुनिया भर के शहरों के प्रदूषण पर नजर रखने और हवा की गुणवत्ता का अनुमान लगाने के लिए एचईआई ने सैटेलाइट और मॉडल्स की मदद ली.
पीएम 2.5 दुनिया में 1.7 मिलियम मौतों का जिम्मेदार
साल 2019 में किए इस अध्ययन में सामने आया की दुनिया के7,239 शहरों में PM2.5 की वजह से 1.7 मिलियन मौतें हुईं. इस तरह के प्रदूषण से एशिया (Asia), अफ्रीका (Africa),पूर्वी और मध्य यूरोप (Europe) के शहरों में सेहत पर सबसे अधिक असर देखा गया. एचईआई ने अपने इस अध्ययन के दौरान दुनिया के हर क्षेत्र के सबसे अधिक आबादी के शहरों पर अपना फोकस किया. जैसे दुनिया के 21 क्षेत्रों को लेकर 103 शहरों का एक सबसेट बनाया गया. ऐसे ही सेट में शामिल दिल्ली और कोलकाता में साल 2019 में PM2.5 से संबंधित बीमारियों के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं. इन मामलों के साथ भारत के ये दो शहर दुनिया के PM2.5 के प्रदूषण वाले टॉप 10 सूची वाले शहरों में है.
डब्ल्यूएचओ के मानक पर फिट नहीं भारतीय शहर
रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे अधिक PM2.5 एक्सपोज़र वाले 20 शहरों में, भारत, नाइजीरिया (Nigeria), पेरू (Peru) और बांग्लादेश (Bangladesh) के शहरों के लोग आते हैं. इन लोगों का PM2.5 का एक्सपोज़र वैश्विक औसत से कई गुना अधिक है. इन 20 शहरों में से केवल चार शहर 2019 के डब्ल्यूएचओ (WHO) के वार्षिक PM2.5 वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पूरा करते हैं. ये अच्छी बात नहीं है कि इसमें भारत का एक भी शहर शामिल नहीं है. गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ के वायु गुणवत्ता डेटाबेस (Air Quality Database) के मुताबिक मौजूदा समय में केवल 117 देशों के पास PM2.5 को ट्रैक करने के लिए जमीनी स्तर की निगरानी प्रणाली है, जबकि केवल 74 राष्ट्र NO2 के स्तर पर नजर रख पा रहे हैं.
भारत के बाद इंडोनेशिया का नंबर
भारत और इंडोनेशिया (Indonesia) में पीएम 2.5 प्रदूषण में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है, जबकि चीन (China) में सबसे ज्यादा सुधार देखा गया है. जहां दुनिया के 7,239 शहरों में से भारत पीएम 2.5 प्रदूषण में सबसे अधिक वृद्धि के मामले में 20 शहरों में से 18 का घर है तो बाकी के दो शहर दो शहर इंडोनेशिया में हैं.
रिपोर्ट में पाया गया कि कम और मध्यम आय वाले देशों के शहरों में पीएम 2.5 प्रदूषण का खतरा अधिक होता है, जबकि अधिक आय वाले शहरों के साथ-साथ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में NO2 का जोखिम अधिक रहता है. पीएम 2.5 में सबसे अधिक वृद्धि वाले 50 शहरों में से 41 भारत में हैं और 9 इंडोनेशिया में हैं. दूसरी तरफ 2010 से 2019 तक पीएम2.5 प्रदूषण में सबसे ज्यादा कमी वाले 20 शहरों में सभी चीन में है.
दुनिया में वायु गुणवत्ता की जांच के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं
इस प्रोजेक्ट में सहायक जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय (George Washington University) के सुसान एनेनबर्ग (Susan Anenberg) के मुताबिक, "दुनिया भर के अधिकांश शहरों में जमीनी स्तर पर वायु गुणवत्ता की जांच के लिए कोई ठोस प्रणाली नहीं है, वायु गुणवत्ता प्रबंधन से कण और गैस प्रदूषण के स्तर का अनुमान लग सकता है जो ये सुनिश्चित करता है कि हवा स्वच्छ और सांस लेने के लिए सुरक्षित है."
रिपोर्ट में कहा गया है कि वक्त के साथ प्रदूषण का कम स्तर भी सेहत पर कई तरह के बुरे असर डाल सकता है. इसमें जीवन जीने की उम्र का कम होना, पुरानी बीमारियां, स्कूल और काम छूटना, यहां तक कि मौत होने जैसे कई प्रभाव हो सकते हैं. ये प्रभाव दुनिया भर के समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं पर भारी दबाव डालते हैं. दुनिया भर में होने वाली नौ मौतों में से एक के लिए वायु प्रदूषण (Air Pollution) जिम्मेदार है. वायु प्रदूषण साल 2019 में 6.7 मिलियन मौतों की वजह बना है. इसका सबसे अधिक असर खासकर युवाओं, बुजुर्गों और पुरानी सांस की बीमारी और हृदय रोगों से पीड़ित लोगों पड़ा है.
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