लद्दाख: एलएसी पर भले ही चीनी सेना ने पीछे हटना शुरू कर दिया है, लेकिन भारत इस बार कोई धोखा नहीं खाने वाला है. यही वजह है कि एलएसी से सटे फॉरवर्ड एयर बेस पर भारतीय वायुसेना पूरी तरह अलर्ट है. वायुसेना के सुखोई हो या मिग-29 फाइटर जेट्स या फिर ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट दिन-रात सीमाओं की निगहबानी कर रहे हैं. क्योंकि भारत इस बार '62 की जंग वाली गलती नहीं करने वाला है.


लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी पर चीनी सेना दो महीने की तनातनी, टकराव और हिंसक संघर्ष के बाद डिसइंगेजमेंट के लिए तैयार हो गई है. सुपर-पावर का दम भरने वाला चीन अगर बातचीत की टेबल पर बैठने के लिए मजबूर हुआ है, तो उसमें भारतीय वायुसेना का अहम योगदान रहा है. भारतीय वायुसेना के फ्रंट लाइन एयरक्राफ्ट, सुखोई, मिग-29, मिराज 2000 हो या फिर अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर दिन-रात एलएसी से सटी एयर-स्पेस पर कॉम्बेट एयर पैट्रोलिंग कर रहे हैं. क्योंकि इस बार भारत 1962 के युद्ध वाली चूक नहीं कर सकता था.


दरअसल, 5-6 मई को जब फिंगर एरिया में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प और मारपीट हुई तो चीन ने भारत के खिलाफ हेलीकॉप्टर्स की मैन्युवरिंग शुरू कर दी. फिर क्या था, भारती‌य वायुसेना ने एलएसी पर लड़ाकू विमानों को उतार दिया. उसके बाद से ही दिन-रात एलएसी से सटे इलाके वायुसेना के फाइटर जेट्स की गर्जना से थर्राते रहते हैं.


एलएसी से सटे एक ऐसे ही फॉरवर्ड एयरबेस पर एबीपी न्यूज की टीम पहुंची. इस एयर बेस पर फाइटर जेट्स और मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के ऑपरेशन्स चल रहे हैं. सुरक्षा कारणों से हम इस एयरबेस का नाम नहीं बता सकते हैं. यहां तक की एयर-स्ट्रीप के अलावा हमारे कैमरे को कहीं और घूमाने की इजाजात नहीं थी. क्योंकि ऐसा करने से दुश्मन को वायुसेना के एसैट्स यानी संसाधनों की जानकारी हाथ लग सकती थी.


जैसे ही एबीपी न्यूज की टीम रनवे पर पहुंची तो पता चला कि सुखोई यानी सु30एमकेआई की कॉम्बेट एयर पैट्रोलिंग शुरू होने वाली है. एक के बाद एक सुखोई फाटइर जेट्स रनवे से टेकऑफ और लैंडिंग कर रहे थे, तो कुछ टच-डाउन करके फिर से आसमान में उड़ जाते थे. आपको बता दें कि हाल ही में सुखोई विमानों को ब्रह्मोस और स्वदेशी एयर टू एयर बियोंड विजुल रेंज मिसाइल अस्त्रा से लैस किया गया है‌‌. भारतीय वायुसेना के पास फिलहाल 260 सुखोई विमान हैं और हाल ही में 12 और विमानों का ऑर्डर दिया गया है.


इसी एयरबेस से हमें बताया गया कि मिग-29 लड़ाकू विमान भी अपने ऑपरेशन्स करते हैं. भारत के पास फिलहाल मिग-29 फाइटर जेट्स की तीन स्कॉवड्रन हैं, जिनमें कुल 59 एयरक्राफ्ट हैं.‌ हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने 21 नए मिग-29 जेट्स को रूस से खरीदने की मंजूरी दी है.


फॉरवर्ड एयरबेस पर हमने देखा की वायुसेना के हेवी लिफ्ट मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, सी-17 ग्लोबमास्टर लैंड कर रहे हैं और टेकऑफ कर रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े मालवाहक विमानों में से एक अमेरिका के इन एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल भारत थलसेना के सैनिकों, टैंक और दूसरी हेवी मशीनरी को दूर दराज की छावनियों से पूर्वी लद्दाख पहुंचाने में किया जा रहा है. दुनिया की सबसे उंची एयर-स्ट्रीप, डीबीओ यानी दौलत बेग ओल्डी पर लैंडिंग करने वाला मालवाहक विमान, सी-130 जे सुपरहरक्युलिस भी इस एयर बेस पर दिखाई पड़ा. इसी तरह से हाल ही में अमेरिका से लिए चिनूक हेलीकॉप्टर और मी17 का इस्तेमाल भी थलसेना की मदद करने के लिए किया जा रहा है.


इसके अलावा वायुसेना ने हाल ही में अमेरिका से लिए अटैक हेलीकॉप्टर्स, अपाचे को भी लद्दाख में तैनात किया है. ये अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स दुश्मन देश के ना केवल टैंक मूवमेंट पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, बल्कि उंचे पहाड़ों पर दुश्मन के बंकर और पोस्ट (चौकियों) को भी तबाह करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. चीन सीमा की निगहबानी के लिए नौसेना के पी8आई टोही विमान भी चीन सीमा पर तैनात कर दिए गए हैं. वायुसेना के टोही विमान अवैक्स (एयरबोर्न अर्ली वार्निंग सिस्टम) भी लगातार आसमान में नजर बनाए हुए हैं, ताकि चीन के फाइटर जेट्स की मूवमेंट्स पर नजर बनाई रखी जा सके.


एबीपी न्यूज से खास बातचीत में वायुसेना के पायलट्स ने बताया कि एयरफोर्स किसी भी युद्ध में फर्स्ट रेसोपेंडर तो है ही, साथ ही गेम-चेंजर का भी काम कर सकती है. उन्होनें बताया कि पिछले दो महीने से सीमा पर जो परिस्थितियां बनी हुई हैं उ‌सको लेकर पूरी तरह से अलर्ट हैं और सभी का जोश काफी हाई है.


सूत्रों के मुताबिक, वायुसेना को किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए मात्र आठ (08) मिनट में तैयार रहने के निर्देश दिए गए हैं. क्योंकि खबर है कि चीन ने भारत से सटे अपने सभी एयरबेस अलर्ट किए हुए हैं. इनमें ल्हासा, होटान, नगरी-गुंसा, निंगसी और शैनान प्रमुख तौर से शामिल हैं.‌ चीन ने अपने सुखोई, जे-8,10, 11 सहित जे-20 स्टील्थ विमानों को इन एयरबेस पर तैनात कर रखा है. अपुष्ट खबर ये भी है के भारत के साथ डॉग-फाइट के लिए चीन पाकिस्तान के कब्जे वाले स्कार्दू एयरबेस का भी इस्तेमाल कर सकता है.


सूत्रों के मुताबिक, भारत को चीन से एयर पॉवर में बढ़त हासिल है क्योंकि भारत के सभी फ्रंट लाइन एयरबेस कम उंचाई वाले इलाकों में हैं--अंबाला, हलवारा (लुधियाना), आदमपुर (जालंधर), पठानकोट, भटिंडा, सिरसा, श्रीनगर. ऐसे में भारतीय लड़ाकू विमान ज्यादा फ्यूल लेकर लंबी दूरी तक भी जा सकते हैं और वैपेन यानी ज्यादा मिसाइल और बमों को ले जा सकते हैं.


इस महीने के अंत तक फ्रांस से भी रफाल लड़ाकू विमानों की पहली खेप अंबाला पहुंचने वाली है. ऐसे में रफाल के वायुसेना में शामिल होने से भारतीय वायुसेना को चीन के खिलाफ बढ़त मिल जाएगी. क्योंकि रफाल की मिटयोर और स्कैल्प मिसाइल एशिया के किसी देश के पास नहीं है जिसके चलते रफाल को गेमचेंजर के नाम से जाना जाता है.