नई दिल्ली : सैनिकों को राशन के बदले कैश देना का विरोध करते हुए सेना के एक कर्नल ने रक्षा सचिव को नोटिस देते हुए कहा है कि ये सरासर सर्विस नियमों के खिलाफ है. क्योंकि सेना में शामिल होने के लिए 1986 में जब यूपीएससी की परीक्षा के लिए आवेदन किया था तो उसमें साफ तौर से लिखा था कि सैलरी के अलावा फ्री राशन दिया जायेगा.
जोधपुर में सेना की लीगल ब्रांच यानि जैग (जज एडवोकेट जनरल) में तैनात कर्नल मुकुल देव ने कहा है कि अगर इसे ठीक नहीं किया गया तो वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे. एबीपी न्यूज से बातचीत में कर्नल देव ने इस बात की तस्दीक कि उन्होंने रक्षा सचिव को नोटिस दिया है. लेकिन उन्होनें सर्विस रूल का वास्ता देते हुए कहा कि वे कैमरे पर बात नहीं कर सकते हैं.
दरअसल, हाल ही में सरकार ने शांति-क्षेत्र ('पीस एरिया') में तैनात सेना के अधिकारियों का फ्री-राशन बंद कर प्रतिदिन 96 रुपये देने का फैसला किया है. इसीलिए कर्नल ने ये नोटिस जारी किया है.
इस मामले पर रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि ये सातवें वेतन आयोग की सिफारिश थी जिसे सरकार ने लागू किया है. रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, कर्नल के नोटिस को सरकार ने शिकायत के तौर पर दर्ज कर लिया है और ग्रीवयेंस सेल ( Grievance Cell) को सौंप दी गई है, ताकि समय अवधि में जवाब दे दिया जाए.
आपको बता दें कि सेना में पहले सभी जवानों, जेसीओ और अधिकारियों को कैलोरी के हिसाब से राशन मिलता था. ये नियम अशांत-क्षेत्र और शांति-क्षेत्र (यानि डिस्टर्ब एरिया और पीस-स्टेशन) के लिए लागू था. लेकिन सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के बाद अब पीस स्टेशन में तैनात अधिकारियों को (लेफ्टिनेंट और कैप्टन से लेकर कर्नल-जनरल तक) 96 रूपये मिलेंगे. ये नियम 1 जुलाई से लागू हो गया है. लेकिन जवान और जेसीओ को पीस स्टेशन में अभी भी फ्री ड्राइ-राशन मिलता रहेगा.
एक अधिकारी को पहले 2400 कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से राशन मिलता था. लेकिन अब 96 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से महीना का करीब-करीब 3000 रूपये मिलेंगे.
एक अधिकारी को 1 जुलाई से पहले तक इस हिसाब से प्रतिदिन करीब 750 मिली दूध, 50 ग्राम चीज़, 20 ग्राम मक्खन, दो अंडे, 260 ग्राम मीट, 450 ग्राम आटा, 170 ग्राम सब्जी, 230 ग्राम फल, 110 ग्राम आलू, 60 ग्राम प्याज, 150 ग्राम गैस मिलती थी.
इस मामले पर अधिकारियों का तर्क है कि सेना की यूनिट्स अधिकतर पीस स्टेशन में ही युद्धभ्यास करती हैं. अधिकारियों का अधिकतर समय यहीं पर गुजरता है. ऐसे में अधिकारी कैसे अपना राशन खुद ढूंढ कर लाएंगे.