बेंगलुरू: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा आदेश देते हुए सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया था. महिलाओं को और अधिक सशक्त करने के लिए सेना में इस साल से महिलाओं को जवान के पद पर भर्ती किया गया है और इनकी ट्रेनिंग भी शुरू हो गई है.



पिछले 28 साल से महिलाएं सेना में सिर्फ अफसर के पदों पर तो थीं लेकिन निचले स्तर‌ पर नहीं थीं. वहीं अब महिला जवानों के पहले दस्ते की भर्ती पूरी हो चुकी है और बेंगलुरू में ट्रेनिंग भी शुरू हो गई है. 8 मार्च यानि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से ठीक पहले एबीपी न्यूज़ की टीम सेना की पहली महिला-सैनिकों के बैच का जज्बा, जुनून और जोश जानने के लिए बेंगलुरू के कोर ऑफ मिलिट्री पुलिस यानि सीएमपी सेंटर पहुंची.

सबसे पहले पीटी ग्राउंड में दौड़

सीएमपी सेंटर में दिन निकलने से पहले ही महिला दस्ते की ट्रेनिंग शुरू हो जाती है. सबसे पहले पीटी ग्राउंड में दौड़ और शारारिक व्यायाम होता है. देश के अलग अलग राज्यों और परिवेश से आईं ये युवतियां अपने पुरुष साथियों जैसी ही ट्रेनिंग करती हैं. किसी भी तरह से वे पुरुष साथियों से हल्की या कम शारारिक वर्जिश नहीं करतीं.


7-9 हफ्तों की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है


सीएमपी सेंटर के डिप्टी कमांडेंट आर एस दलाल ने एबीपी न्यूज को बताया कि साल 2017 में ये फैसला लिया गया था कि महिलाओं को जवान के रैंक यानि सिपाही और हवलदार के पद पर तैनात किया जाए. इसके लिए एक लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2019 में अलग अलग रिक्रूटमेंट सेंटर्स से कुल 101 महिलाओं को चयनित किया गया था. अब महिला सैनिक दस्ते की 7-9 हफ्तों की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है.

61 हफ्तों तक होगी ट्रेनिंग 


इस महिला दस्ते की कुल 61 हफ्तों की ट्रेनिंग है. शुरुआत के 19 हफ्ते बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग दी जाएगी जो भारतीय सेना के सभी जवानों को भर्ती के बाद दी जाती है. इसके बाद इन महिलाओं को प्रोवोस्ट और एडवांस मिलिट्री-पुलिस की ट्रेनिंग दी जाएगी. सीएमपी सेंटर के इंस्ट्रक्टर, लेफ्टिनेंट कर्नल संतोष भाग बताते हैं कि सेना-पुलिस का काम सेना की सभी छावनियों और कैंट में नियम-कानून लागू करने से लेकर ट्रैफिक-व्यवस्था संभालना, वीआईपी गेस्ट्स को एस्कोर्ट करना और क्राइम इंवेस्टीगेशन है. इसके लिए भी बेंगलुरू में ट्रेनिंग के दौरान उन्हें खास प्रशिक्षण दिया जाएगा.


'आंखों पर पट्टी बांधकर हथियार चलाना सीख गईं'

युद्ध के दौरान कोर ऑफ मिलिट्री पुलिस का एक अहम कार्य है जिनेवा-संधि के तहत युद्धबंदियों की देखभाल करना. इसके लिए भी इन महिला सैनिकों को खास तौर से प्रशिक्षण लेना होगा. 1971 की जंग में पाकिस्तानी सेना के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी सहित बाकी 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों की कस्टडी भी मिलिट्री-पुलिस के हवाले थी. बेंगलुरू स्थित सीएमपी सेंटर में सुबह-सवेरे फिजीकल-ट्रेनिंग के बाद महिला-रिक्रूट वैपल-हैंडलिंग यानि हथियार चलाने की ट्रेनिंग के लिए पहुंचती हैं. आंखों पर पट्टी बांधकर भी ये महिला सैनिक हथियार को चलाना सीख गई हैं.

'पिता से प्रेरणा लेकर लिया सेना में आने का फैसला'

इस दौरान एबीपी न्यूज़ ने इन महिला-रिक्रूट से जानना चाहा कि आखिर क्यों वे सेना में शामिल हुई हैं. वो भी तब जबकि सेना में एक कड़ी ट्रैनिग और दुश्मन से मुकाबला करते वक्त जान तक जोखिम में डालनी पड़ सकती है. पंजाब की एक मात्र महिला-रिक्रूट बताती हैं कि उनके पिता सेना में थे जिनसे प्रेरणा लेकर वे फौज में भर्ती हुई हैं. कुछ महिला रिक्रूट एनसीसी में सेना की लाइफ और रोमांच से प्रेरित होकर इस मुकाम तक पहुंची हैं. लेकिन सबके दिल में देश प्रेम की जबरदस्त भावना हैं और देश पर मर मिटने के लिए तैयार हैं. इसीलिए एक महिला कैडेट कहती हैं, "सर खतरा कहां नहीं है, फिर देश की सुरक्षा के लिए क्यों ना जान जोखिम में डालें?"


भारतीय सेना में कुल 6892 सैन्य महिला अधिकारी हैं


बता दें कि इस वक्त भारतीय सेना में कुल 6892 सैन्य महिला अधिकारी हैं, लेकिन जवान के रैंक पर पहली बार भर्ती की गई हैं. सेना में महिला अधिकारियों की भर्ती 1992 में शुरू हुई थी. उस वक्त महिला सिर्फ शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत ही चुनिंदा विंग और ब्रांच में ही कार्य कर सकती थीं. वे अधिकतर, सेना की कांबेट-आर्म यानि इंफेंट्री, आर्मर्ड और आर्टलरी को सपोर्ट करने वाली कांबेट सपोर्ट आर्म्स जैसे आर्मी-एविएशन, एयर-डिफेंस, एजुकेशन, सिग्नल, इंजीनीयर्स, लीगल इत्यादि जैसी कुल दस ब्रांच में ही काम कर सकती थी. शॉर्ट सर्विस कमीशन होने के चलते वे सिर्फ लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक ही पहुंच सकती थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने स्थाई कमीशन देने का दिया था आदेश

पिछले साल यानि साल 2019 से सेना ने महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने का ऐलान किया था. इस साल से सेना में शामिल होने वाली महिला अधिकारियों को इस फैसले का फायदा होने वाला था, लेकिन उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने उन 332 महिला अधिकारियों को भी स्थाई कमीशन देने का आदेश दे दिया जो पिछले कई सालों से सेना में अपनी सेवाएं दे रही थीं.


परमानेंट यानि स्थायी कमीशन के मायने ये हैं कि अब सेना में महिला अधिकारी भी कर्नल ब्रिगेडियर या फिर जनरल रैंक के पद तक पहुंचने के लिए योग्य मानी जाएंगी. अभी तक शॉर्ट सर्विस कमीशन यानि 20 साल से पहले ही उन्हें रिटायर कर दिया जाता था और वे लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से आगे नहीं बढ़ पाती थीं. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से वे अब सेना की बटालियन की कमान भी संभालने के योग्य मानी जाएंगीं. पिछले साल से सेना ने जवानों के पद पर भी महिलाओं की भर्ती शुरू कर दी. शुरुआत में महिलाओं को मिलिट्री-पुलिस में काम करने का मौका मिलेगा. उसके बाद माना जा रहा है कि धीरे-धीरे कर वे दूसरी ब्रांच और विंग में भी तैनान की जाएंगी.

महिला अधिकारी को बनाया इंचार्ज

बेंगलुरू में इन महिला-जवानों को प्रशिक्षण दे रहीं लेफ्टिनेंट कर्नल जूली सिंह बताती हैं कि उन्हें एक महिला-अधिकारी होने के नाते उनका प्रशासनिक-इंचार्ज बनाया गया है. उनका कहाना है कि इस बैच को ट्रेनिंग देने वाले इंस्ट्रकटर्स तक को 'जेंडर-सेंसेडाइजेशन' की ट्रेनिंग दी गई थी, क्योंकि अभी तक पुरूष-इंस्ट्रकटर्स का व्यवहार पुरूष-सैनिकों से थोड़ा सख्त और रूखा होता था. यहां तक की इन इंस्ट्रकटर्स को महिला-जवानों को किस तरह देखना है उस तक का प्रशिक्षण दिया गया.

2030 तक 1700 महिला सैनिक होंगी सेना में शामिल

भारतीय सेना साल 2030 तक करीब 1700 महिला सैनिकों को कोर ऑफ मिलिट्री पुलिस में शामिल करने का प्लान बना रही है ताकि धीरे-धीरे कर उन्हें सेना का अहम हिस्सा बनाया जा सके. हालांकि, महिलाओं को कॉम्बेट रोल यानि यौद्धा के तौर पर तैनात करने के लिए सेना फिलहाल हिचकिचा रही है. सेना का मानना है कि ऐसा करने से पहले समाज को महिलाओं के प्रति अपनी सोच को बदलनी होगी. महिलाओं को कॉम्बेट रोल देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट भी सेना और सरकार के साथ ही खड़ी दिख रही है.

लेकिन सीएमपी सेंटर में इन नई महिला जवानों को बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग देने वाले इंस्ट्रक्टर, लेफ्टिनेंट कर्नल संतोष का साफ कहना है कि मिलिट्री-पुलिस में शामिल होने से इन महिलाओं का कॉम्बेट रोल के लिए दरवाजा खुल चुका है, क्योंकि निकट-भविष्य में '71 की तरह जंग हुई और दुश्मन देश के सैनिकों को बंदी बनाया गया तो उन युद्धबंदियों को संभालने की जिम्मेदारी इस महिला दस्ते को ही निभानी होगी.