लद्दाख: एलएसी पर चीन से चल रहे टकराव के बीच भारतीय सेना को पैंगोंग-त्सो झील में गश्त के लिए नई बोट मिलनी शुरू हो गई हैं. जानकारी के मुताबिक, ये पैट्रोलिंग बोट्स सेना और आईटीबीपी द्वारा इस्तेमाल की जा रही बोट्स और स्टीमर्स से काफी बड़ी हैं.


दरअसल, पिछले साल दिसंबर में एलएसी पर चीन से चल रहे टकराव के बीच भारत ने पैंगोंग-त्सो लेक में पैट्रोलिंग के लिए 29 नई बोट्स का ऑर्डर दिया था. इन नई बोट्स को भारत के ही दो बड़े शिपयार्ड में तैयार किया जाना था. 12 बोट्स का ऑर्डर गोवा शिपयार्ड लिमिटेड को दिया गया था और 17 बोट का ऑर्डर एक प्राइवेट शिपयार्ड को दिया गया था. गोवा शिपयार्ड में तैयार हो रही हैं फास्ट पैट्रोलिंग बोट्स मशीन-गन और सर्विलांस-गियर से लैस हैं, जिन्हें पैट्रोलिंग और निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जाना है.


जबकि प्राइवेट शिपयार्ड जो 35 फीट लंबी बोट्स बना रहा है उनका इस्तेमाल सैनिकों की फास्ट मूवमेंट यानि आवाजाही के लिए किया जाना है. इन बोट्स में करीब डेढ़ दर्जन सैनिक सवार हो सकते हैं. अब खबर है कि इन नई बोट्स की डिलीवरी शुरू हो गई है. अगले कुछ महीनों में सभी 29 बोट्स थलसेना को मिल जाएंगी.


आखिर क्यों जरूरत पड़ी इन स्पेशल बोट्स की?
पैंगोंग-त्सो झील में पैट्रोलिंग के लिए अभी जो बोट्स भारतीय सेना और आईटीबीपी इस्तेमाल करती आई थी वे बेहद छोटी बोट्स (स्टीमर) हैं. कई बार ऐसा देखने में आया है कि झील में पैट्रोलिंग के दौरान चीन की जो बड़ी बोट्स हैं वे भारत की बोट्स में टक्कर तक मार देती हैं. कुछ साल पहले ऐसी ही एक टक्कर में भारतीय बोट पलट तक गई थी.


पिछले साल मई के महीने से पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी शुरू हुए टकराव के बाद माना जा रहा था कि पैंगोंग-त्सो झील में भी तनातनी बढ़ सकती है. क्योंकि भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी इसी पैंगोंग-त्सो झील के बीच से होकर गुजरती है. इसी खतरे को देखते हुए ही पिछले साल भारतीय नौसेना की एक एक्सपर्ट टीम ने पैंगोंग-त्सो झील का दौरा किया था. नौसेना की टीम ने पैंगोंग-झील में पैट्रोलिंग और पैट्रोलिंग-बोट्स को लेकर ही अपनी राय दी थी. क्योंकि नौसेना की फास्ट पैट्रोलिंग बोट्स समंदर में समुद्री-लुटेरों और अवांछित-तत्वों के खिलाफ गश्त करती हैं. भारतीय नौसेना और कोस्टगार्ड के पास फास्ट पैट्रोलिंग बोट्स का एक बड़ा बेड़ा है.


पैंगोंग झील का 40 किमी हिस्सा भारत में
बता दें, 14 हजार फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी पैंगोंग-त्सो झील करीब 135 किलोमीटर लंबी है, जिसका एक-तिहाई भाग यानि करीब 40 किलोमीटर हिस्सा भारत के अधिकार-क्षेत्र में है और बाकी दो-तिहाई यानि करीब-करीब 95 किलोमीटर चीन के कब्जे में है. सर्दियों के मौसम में यहां तापमान माइनस (-) 30-40 डिग्री तक गिर जाता है और झील पूरी तरह से जम जाती है.   


पैंगोंग-त्सो झील के उत्तर में ही विवादित फिंगर एरिया है और दक्षिण में कैलाश हिल रेंज है. हालांकि, पहले चरण के डिसइंगेजमेंट के बाद दोनों देशों की सेनाएं दोनों ही विवादित इलाकों से पीछे हट गई हैं लेकिन तनाव बरकरार है. इसकी वजह ये है कि चीन ने पूर्वी लद्दाख से सटे बाकी विवादित इलाकों से पीछे हटने के लिए साफ इंकार कर दिया है.


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