नई दिल्ली: बिहार के गया में भारतीय सेना के ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी यानि ओटीए में शनिवार को टेक्निकल अधिकारियों की पासिंग आउट परेड है. खास बात ये है कि इस बैच के सभी अधिकारी इंजीनियर्स हैं.‌ लेकिन ये अधिकारी सेना की इंफेंट्री से लेकर ईएमई और टैंक रेजीमेंट में तैनात किए जा सकते हैं. इन सभी अधिकारियों में शौर्य के साथ साथ तकनीकी ज्ञान भी कूट-कूट कर भरा है ताकि साईबर वॉरफेयर से लेकर स्पेस वॉरफेयर और इंफोर्मेशन वॉरफेयर तक से लड़ने में इन्हें महारत हो. यही वजह है कि इन्हें सेना 'टेक्नो-वॉरियर्स' के तौर पर देख रही है. यानि आधुनिक तकनीक में कौशल ऐसे यौद्धा जो देश की सेवा और सुरक्षा के लिए ओटीए गया में तैयार हो रहे हैं जो देश की आन बान और शान के लिए सर्वोच्च बलिदान से भी पीछे नहीं हटते.


शनिवार की पासिंग आऊट परेड (पीओपी) के बाद ये सभी‌ सेना के कमीशंड‌ अधिकारी बन जाएंगे. इस समारोह में वियतनाम की सेना की डिप्टी चीफ मुख्य अतिथि हैं. लेकिन इससे पहले ही एबीपी न्यूज की टीम ओटीए गया पहुंची और जाना कि आखिर ये अधिकारी सेना के बाकी अधिकारियों ‌से कैसे अलग हैं. क्योंकि ये‌ सभी अधिकारी सेना की टीईएस यानि टेक्नीकल एंट्री स्कीम के तहत शामिल हुए हैं.


ओटीए गया का ये 16वां बैच है


ये सेना की टेक्नीकल एंट्री स्कीम का 34वां बैच जरूर है जिसके 43 जेंटलमैन कैडेट्स अधिकारी बन गए हैं, लेकिन ओटीए गया का ये 16वां बैच है. क्योंकि ओटीए गया को साल 2011 में स्थापित किया गया था. पहले यहां के अधिकारी सिर्फ सेना की इंजीनियरिंग कोर, ईएमई‌ या फिर सिग्नल कोर जैसी तकनीकी यूनिट्स में ही शामिल हो सकते थे.‌ लेकिन आधुनिक युद्धकला में साईबर वॉरफेयर, इंफोर्मेशन वॉरफेयर, साईक्लोजिकल वॉरफेयर और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इतना इस्तेमाल हो रहा है कि आज के सैन्य अधिकारियों को शूरता और वीरता के साथ-साथ तकनीकी ज्ञान की भी बहुत जरूरत है. यही वजह है कि सेना के सबसे अहम आर्म्स विंग जैसे इंफेंट्री, आर्मर्ड और आर्टेलेरी यानि तोपखाने को भी तकनीकी तौर से निपुण इंजीनियर्स की जरूरत आन पड़ी.‌ इसीलिए इस बैच के 65 प्रतिशत अधिकारी ईएमई, इंजीनियरिंग कोर और सिग्नल कोर में जाते है और बाकी 35 प्रतिशत‌ इंफेंट्री इत्यादि में.


प्राचीन काल से बिहार का गया ज्ञानस्थली के तौर पर जाना जाता है, जहां महात्मा बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति की थी, लेकिन अब यहां सेना के अधिकारियों को खास‌ तौर का तकनीकी ज्ञान दिया जाता है. ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी, गया के कमांडेंट, लेफ्टिनेंट जनरल सुनील श्रीवास्तव के मुताबिक, ओटीए गया का मोटो यानि उद्देश्य ही है शोर्य, ज्ञान और संकल्प. क्योंकि आज के समय‌ में सेना के अधिकारियों को शौर्य के साथ-साथ ज्ञान यानि तकनीकी ज्ञान भी बेहद जरूरी है.


अधिकारी बनने के बाद भी एक साल इंजीनियरिंग करनी होती है


इस‌ खास टीईएस बैच के लिए सेना,‌ स्कूल से पास आऊट हुए छात्रों को चुनती है और फिर उन्हें एक साल तक बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग देने के बाद‌ तीन साल की इंजीनियरिंग के लिए पुणे, सिकंदाराबाद और महू में अपने इंजीनियरिंग कॉलेज में भेज देती है. तीन साल के इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद ये ओटीए गया में एक बार फिर से पहुंचते हैं. यहां उनकी पासिंग आऊट परेड होती है जिसके बाद ये सेना में कमीशन होकर लेफ्टिनेंट रैंक के अधिकारी बन जाते हैं. यहां पर वे अलग-अलग विंग में चले जाते है. लेकिन अधिकारी बनने के बाद भी उन्हें एक साल इंजीनियरिंग करनी होती है ताकि वे अपनी यूनिट्स से जुड़ी बारीकियों को जान सकें.


ओटीए के आला-अधिकारियों ने बताया कि ये जो टेक्नो वॉरियर्स यानि योद्धा यहां तैयार किए जाते हैं वो किसी भी तरह की लड़ाई लड़ सकें इसके लिए उन्हें शारीरिक तौर से बेहद मजबूत किया जाता है. सेना की भाषा में इसे 'रगड़ा' कहा जाता है. क्योंकि सेना के अधिकारियों को फ्रंट से लीड करना होता है. इसके लिए उन्हें लंबी दौड़, रस्सी के जरिए ऊंचाई पर चढ़ना और अन-आर्म्ड कॉम्बेट यानि बिना हथियारों की लड़ाई की ट्रैनिंग दी जाती है.


इन नए अधिकारियों को ओटीए में रगड़ा तो दिया जाता ही है साथ ही शूटिंग और जंगल वॉरफेयर में प्रशिक्षण‌ दिया जाता है. आसमान में उड़ती चिड़िया को भी ये कैडेट्स निशाना बना सकते हैं. लेकिन इस ट्रैनिंग के लिए ये किसी पक्षी पर निशाना नहीं लगाते बल्कि एक मिट्टी की बॉल को हवा में उड़ाकर निशाना लगाते हैं. क्योंकि भारतीय सेना वन बुलेट वन एनेमी यानि एक गोली से एक दुश्मन को ढेर करने में विश्वास रखती है. इससे अलावा जंगल में किस तरह ऑपरेशन्स किए जाते हैं उसका भी इन्हें खास प्रशिक्षण दिया गया है. क्योंकि भारतीय सेना को कश्मीर हो या उत्तर-पूर्व राज्य, जंगलों में ही अपने ऑपरेशन और मिशन को अंजाम देना होता है. भारतीय‌ सेना के कैडेट्स के‌‌ अलावा भूटान, श्रीलंका, म्यांमार और वियतनाम के भी कैडेट्स‌ इसी टीईएस में ट्रैनिंग ले रहे हैं.


घुड़सवारी की भी खास ट्रेनिंग


इस‌ सबके अलावा इन जेंटलमैन कैडेट्स को घुड़सवारी में भी खास ट्रेनिंग दी जाती है. ताकि जिस तरह से 100 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से भागते घोड़े पर बैठकर भी ये निशाना लगा सकते हैं वैसे ही ये अपने काम के प्रति हमेशा फोकस्ड रहें. यही वजह है कि सेना मुख्यालय ने पिछले कुछ सालों में पाया है कि युद्धकला के साथ-साथ लड़ाई के मैदान में भी ये टेक्नो-वॉरियर्स बाकी अधिकारियों से बेहतर परफार्म कर रहे हैं. यही वजह है कि सेना में इस एंट्री ‌से हिस्सा लेने वाले अधिकारियों को प्रोत्साहित कर ज्यादा से ज्यादा शामिल किया जा‌ सके. ताकि‌ ये हमेशा देश की‌ सेवा और सुरक्षा का संकल्प लेकर ओटीए से बाहर निकल सकें. अपनी चार साल की ट्रेनिंग के बाद जब ये सभी टेक्नो-वॉरियर्स ओटीए से पास आऊट हो रहें है तो इन सभी के चेहरे पर वो जोश साफ दिखाई पड़ रहा है जिसमें दुश्मन को मात देना का माद्दा साफ दिखाई पड़ता है‌‌.