सेना ने दिया ऐतिहासिक गया ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी को बंद करने का प्रस्ताव, रक्षा मंत्रालय लेगा अंतिम फैसला
बिहार के गया में ऐतिहासिक महत्व वाले ओटीए गया को भारतीय सेना ने बंद करने का प्रस्ताव दिया है. इस प्रस्ताव पर रक्षा मंत्रालय को अंतिम निर्णय लेना है.
गया: बिहार के गया से शनिवार को भारतीय सेना के ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (ओटीए) से देश-विदेश के 43 अधिकारी पास आउट हुए. अब ये अधिकारी सेना में अपनी सेवा देंगे. इसी दौरान अब ये खबर आई है कि सेना ने सरकार से बिहार के गया स्थित ओटीए को बंद करने का प्रस्ताव दिया है. अभी रक्षा मंत्रालय के पास ये प्रस्ताव लंबित है. सूत्रों के मुताबिक, रक्षा बजट के 'विवेकपूर्ण इस्तेमाल' के लिए सेना ने ये प्रस्ताव दिया है क्योंकि ओटीए गया को करीब 750 अधिकारियों (जैंटलमैन कैडेट्स) की ट्रेनिंग के लिए वर्ष 2011 में स्थापित किया गया था लेकिन पिछले आठ सालों में यहां से हर साल 250 से ज्यादा अधिकारी तैयार नहीं हो पा रहे हैं.
हालांकि, सेना ने यह प्रस्ताव ऐसे समय में दिया है जबकि थलसेना सैन्य अधिकारियों की कमी से जूझ रही है. गया स्थित ओटीए को देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) में अधिकारियों की संख्या ट्रेनिंग के दौरान ज्यादा हो जाने के कारण ही स्थापित किया गया था. लेकिन अब जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक गया ओटीए में ट्रेनिंग लेने वाले ऑफिसर्स को देहरादून स्थित आईएमए में ट्रांसफर किया जा सकता है.
इस बारे में जब एबीपी न्यूज ने ओटीए गया के कमांडेंट, लेफ्टिनेंट जनरल सुनील श्रीवास्तव से सवाल पूछा तो उन्होनें कहा कि ये मात्र एक प्रस्ताव है जिसपर फिलहाल विचार चल रहा है. इस पर अभी निर्णय नहीं लिया गया है. दरअसल, शनिवार को जब ओटीए गया में टीईएस और एससीओ अधिकारियों की पासिंग आउट परेड हुई तब एबीपी न्यूज की टीम भी वहां मौजूद थी. टीईएस कोर्स के सभी अधिकारी इंजीनियर होते हैं और टेक्नो-वॉरियर्स के तौर पर अपनी सेवाएं देते हैं जबकि एससीओ कोर्स में सेना के वो जवान (नॉन कमीशंड अधिकारी जैसे सिपाही, नायक, हवलदार इत्यादि) जो अपनी काबलियत के आधार पर अधिकारी बनने में सक्षम होते हैं.
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आपको बता दें कि कुछ साल पहले सेना के ही एक वरिष्ट लेफ्टिनेंट जनरल के जे सिंह (अब रिटायर) ने गया ओटीए को एशिया की उन देशों के कैडेट्स को ट्रेनिंग देने का नोडल सेंटर बनने का प्रस्ताव दिया था जहां बौद्ध धर्म को ज्यादा माना जाता है क्योंकि प्राचीन काल से बिहार का गया महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली के तौर पर जाना जाता है. बता दें कि महात्मा बुद्ध ने यहां महाबोधि वृक्ष के नीचे बैठकर ही ज्ञान की प्राप्ति की थी. आज भी चीन, तिब्बत, कोरिया, भूटान और श्रीलंका जैसे देशों से हजारों तीर्थयात्री महाबोधि मंदिर का दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं.
गया ओटीए को बंद करने के सेना के प्रस्ताव को विरोध भी शुरू हो गया है. बिहार के सांसदों ने ये मुद्दा संसद में उठाया है. आपको बता दें कि भारतीय सेना की ट्रेनिंग कमांड (आरट्रैक-आर्मी ट्रेनिंग कमांड) शिमला में है जो तीन बड़े ट्रेनिंग संस्थान संचालित करती है जहां नए अधिकारी तैयार किए जाते हैं. इसमें पहला आईएमए देहरादून, दूसरा ओटीए चेन्नई और तीसरा ओटीए गया है. ओटीए चेन्नई में शॉर्ट सर्विस कमीशन प्राप्त अधिकारी ट्रेनिंग प्राप्त करते हैं. आईएमए देहारादून में एनडीए से पास आउट थलसेना के अधिकारी कमीशन प्राप्त करते हैं.
'शौर्य, ज्ञान और संकल्प' के मोटो वाले गया ओटीए को भले ही 2011 में यहां स्थापित किया गया हो लेकिन इस छावनी का इतिहास बेहद पुराना है. 1971 के युद्ध के दौरान यहां बंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों के लिए बंदी-कैंप स्थापित किया गया था. उस वक्त यहां एक बिग्रेड हेडक्वार्टर था. बाद में यहां आर्मी सर्विस कोर का रेजीमेंटल सेंटर बना दिया गया लेकिन ओटीए की स्थापना से पहले उसे बेंगलुरू शिफ्ट कर दिया गया था लेकिन अभी ये साफ नहीं है कि अगर गया ओटीए यहां से देहरादून शिफ्ट हो गया तो सेना इतने बड़े कैंपस का इस्तेमाल किस तरह करेगी क्योंकि ओटीए गया पूरे 800 एकड़ में फैला हुआ है जहां ड्रिल ग्राउंड, स्टेडियम और फायरिंग रेंज भी है.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने इस जगह को जापान के खिलाफ बर्मा (म्यांमार) के ऑपरेशन्स के कमांड सेंटर के तौर पर इस्तेमाल किया था. उस दौरान ब्रिटिश सेना (एलाइड फोर्सेज़) के कमांडर इन चीफ, ए वॉवेल भारत की आजादी के ठीक पहले देश के गर्वनर-जनरल यानि वायसराय भी रहे थे (1944-47).
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