'कमीकाज़े ड्रोन स्ट्राइक' के लिए तैयार है भारतीय सेना, 73वें स्थापना दिवस पर किया टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन
पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी की रखवाली के लिए सेना ने स्वदेशी कंपनी से किया 140 करोड़ के स्विच टेक्टिकल ड्रोन्स का सौदा किया है. भारतीय सेना ने नॉन-कंवेन्शन्ल वॉरफेयर के लिए कमर कस ली है. 73वें स्थापना दिवस पर सेना ने पहली बार स्वार्म-ड्रोन टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन किया.
नई दिल्ली: भारतीय सेना अब 'कमीकाज़े ड्रोन-स्ट्राइक' के लिए पूरी तरह से तैयारी में जुट गई है. शुक्रवार को थलसेना दिवस के मौके पर राजधानी दिल्ली में सेना ने आर्टिफिशियल टेकनोलोजी के जरिए स्वार्म-ड्रोन का सफल परीक्षण कर दिखाया. इसके अलावा एलएसी पर चीन से चल रही तनातनी के बीच भारतीय सेना ने एक स्वदेशी कंपनी से 140 करोड़ की डील कर कई सौ ड्रोन्स खरीदने का फैसला किया है.
ये ड्रोन दुश्मन की सीमा मे करीब 50 किलोमीटर घुसकर हमला करने में सक्षम है भारतीय सेना ने पहली बार ड्रोन टेकनोलॉजी का सफल परीक्षण किया. इस दौरान 75 ड्रोन्स के साथ दुश्मन की सीमा में घुसकर 'कमीकाज़े-स्ट्राइक' करने यानि हमला करने का फायर पावर डेमोंस्ट्रेशन दिखाया गया. आर्टिफिशियल टेक्नोलॉजी (एआई) के जरिए इन ड्रोन्स के अंदर से भी चाइल्ड-ड्रोन निकलते हुए दिखाया गया. ये ड्रोन दुश्मन की सीमा मे करीब 50 किलोमीटर घुसकर हमला करने में सक्षम है. इस दौरान थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे नें आर्टिफिशियल टेक्नोलॉजी और ड्रोन टेक्नोलॉजी को युद्धक-क्षमता का हिस्सा बनाने पर जोर दिया.
पायलट-रहित यूएवी के जरिए इन स्ट्राइक का इस्तेमाल कर रही है भारतीय सेना कमीकाज़े स्ट्राइक तकनीक का इस्तेमाल दरअसल जापान ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपने एयरक्राफ्ट्स के जरिए किया था. जापान के पायलट अपने एयरक्राफ्ट्स के जरिए दुश्मन के मिलिट्री बेस और युद्धपोतों पर आत्मघाती हमला करते थे. भारतीय सेना लेकिन पायलट-रहित यूएवी के जरिए इन स्ट्राइक का इस्तेमाल कर रही है.
नॉन-कंवेनशन्ल वॉरफेयर के लिए तैयार है भारतीय सेना थलसेना दिवस पर इस ऑफेनसिव-ड्रोन स्ट्राइक से भारत ने नॉन-कनवेनशन्ल वॉरफेयर यानि गैर-पारंपरिक युद्ध के लिए कमर कस ली है. क्यूंकि हाल ही में अर्मेनिया और अजरबेजान में हुए युद्ध के दौरान जिस तरह से आर्टिफिशियल-इंटेलीजेंस और स्वार्म-ड्रोन टेकनोलोजी का इस्तेमाल किया गया उसको देखते हुए ही भारतीय सेना भी नॉन-कंवेनशन्ल वॉरफेयर के लिए तैयार है. चीन को भी एआई और स्वार्म-ड्रोन तकनीक में महारत हासिल है.
'स्विच' टेक्टिकल ड्रोन्स का इस्तेमाल पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी की सर्विलांस के लिए होगा एलएसी पर चीन के खिलाफ ड्रोन टेक्नोलॉजी को मजबूत करने के लिए ही भारतीय सेना ने एक स्वदेशी कंपनी से 140 करोड़ रूपये का सौदा किया है. हालांकि, ये नहीं बताया गया कि इस सौदे में भारतीय सेना को कितने यूएवी मिलने हैं लेकिन माना जा रहा है कि ये संख्या कई सौ में है. आईडियाफोर्ज नाम की ये कंपनी 'स्विच' टेक्टिकल ड्रोन्स भारतीय सेना को मुहैया कराएगी. इन 'स्विच' टेक्टिकल ड्रोन्स का इस्तेमाल पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी की सर्विलांस के लिए किया जाना है.
4000 मीटर की ऊंचाई तक जाकर सर्विलांस कर सकते हैं स्विच ड्रोन्स महाराष्ट्र की इस स्वेदशी कंपनी का दावा है कि बेहद हल्के स्विच ड्रोन्स करीब 4000 मीटर की ऊंचाई तक जाकर 15 किलोमीटर के दायरे की सर्विलांस कर सकते हैं. क्यों की पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर बेहद ऊंचाई वाले पहाड़ों की एक लंबी श्रृंखला है. ऐसे में भारतीय सेना को इन पहाड़ों की सुरक्षा करना एक टेढ़ी खीर होती है और चीनी सैनिकों की घुसपैठ का खतरा बना रहता है. लेकिन इन ड्रोन्स से पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी एलएसी की रखवाली स्विच ड्रोन्स से की जाएगी.