Indian Army Super-30: सरहदों की सुरक्षा के साथ Super-30 के ज़रिए कश्मीर के युवाओं का भविष्य भी संवार रही सेना
Indian Army Super-30: श्रीनगर स्थित सेना के चिनार कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी पी पांडे की अगुवाई में इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी.
Indian Army Super-30: सरहदों की सुरक्षा के साथ साथ जम्मू-कश्मीर के युवाओं का भविष्य भी संवारने में मदद कर रही है सेना. सुपर-30 के नाम से चलाए जा रहे शिक्षा अभियान के ज़रिए सेना पिछले तीन सालो में 68 छात्रों का भविष्य संवार चुकी है. इस अभियान का लाभ केवल कश्मीरी छात्र ही नहीं बल्कि जम्मू और लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों के छात्र भी उठा रहे हैं.
15 जून 2018 को शुरू किए गए SUPER-30 कार्यक्रम की सफलता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले साल इसमें शामिल होने के लिए 1400 छात्रों ने परीक्षा दी थी, लेकिन 2019 में खराब हालात के बावजूद 3000 से ज्यादा छात्र इस परीक्षा में शामिल होने के लिए आए और 2020 में कोरोना महामारी के बावजूद यह आंकड़ा बढ़ कर 4000 के पार चला गया, जिनमें से हर साल 10 प्रतिशत छात्रों का कोचिंग के लिए चयन किया गया.
श्रीनगर स्थित सेना के चिनार कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी पी पांडे की अगुवाई में इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी. पहले इसमें सिर्फ लड़कों के लिए कोचिंग का प्रबंध था, लेकिन अब प्रोजेक्ट कि सफलता के बाद आने वाले दिनों में 20 लड़कियों को भी हर साल कोचिंग दी जाएगी. अगले एक महीने में ही 20 लड़कियों का चयन किया जाएगा और इस कार्यक्रम का नाम सुपर 50 हो जाएगा.
पिछले तीन सालो में चुने गए छात्रो में से 68 छात्र सफल होकर विभिन्न मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में पढाई कर रहे हैं. जबकि तीसरे बैच के 35 छात्र इसी महीने NEET-JEE की परीक्षा देकर अब रिजल्ट का इंतज़ार कर रहे हैं. यह वही छात्र हैं, जिनकी कोचिंग का ज़िम्मा सेना ने अपने जिम्मे लिया था.
श्रीनगर के हफ्त-चिनार इलाके में चल रहे इस प्रोजेक्ट में 17 साल का सैयद अहमद मलिक भी पिछले साल शामिल हुआ. उत्तरी कश्मीर के आतंकवाद ग्रस्त हंदवारा के रहने वाले मलिक के लिए कोचिंग लेना न मुमकिन था, उसके पिता की मृत्यु कई साल पहले हो गई थी और उसके चार और भाई -बहन भी शिक्षा हासिल कर रहे थे. ऐसे में सेना का SUPER-30 कार्यक्रम वरदान बन कर आया.
सैयद अहमद मलिक ने कहा, "मेरा परिवार गरीब था और बाकी भाई बहन की भी पढ़ाई का खर्चा था. फिर मुझे सुपर 30 का पता चला और आज 11 महीने के कठिन परिश्रम के बाद मुझे उम्मीद है कि मेरा किसी प्रोफेशनल कॉलेज में एडमिशन हो जाएगा"
बंदिपोर के रहने वाले मुबश्शिर हुसैन के अनुसार सेना ने 11 महीने तक उनका रहने-खाने और कोचिंग का इंतज़ाम किया और ऐसा अवसर प्रदान किए, जिससे उसका भविष्य रोशन किया. सेना के ऐसे प्रयास आने वाले समय में जम्मू कश्मीर छात्रों के लिए काफी लाभदायक
होंगे.
कोचिंग सेंटर के इंचार्ज डॉ रोहित श्रीवास्तव के अनुसार इस प्रोग्राम में घाटी के कोने-कोने से छात्र आते हैं, जो आमतौर पर गरीब होते हैं. एक छात्र की मिसाल देते हुए श्रीवास्तव ने बताया कि ये लद्दाख के दुर्गम ज़नास्कार से आया है और यह छात्र सुपर 30 कोचिंग के ज़रिये मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है और ज़नास्कर का पहला डॉक्टर होगा.
जम्मू के सरहदी इलाके से आए सौरव थापा की कहानी भी कुछ अलग नहीं. गरीब परिवार और दूर दराज़ के गांव का रहने वाला यह छात्र सुपर 30 के दूसरे बैच में आया था और आज जम्मू के मेडिकल कॉलेज में MBBS की पढ़ाई कर रहा है.
सौरव ने कहा कहा, "सुपर-30 नहीं होता तो में शायद आज मेडिकल कॉलेज में नहीं होता."
सुपर 30 प्रोग्राम के तहत हर वर्ष घाटी के होनहार छात्रों को नीट की परीक्षा के लिए तैयार किया जाता है. इस प्रोग्राम में शामिल होने के लिए कुछ मानदंड हैं, जिनमें से एक है कि छात्र ने 12वीं की परीक्षा में 60 प्रतिशत अंक हासिल किए हों और साथ ही उसके परिवार की सालाना इनकम (कमाई) 3.5 लाख रुपये से कम हो. इसके बाद वो इस सुपर-30 के रिटन एग्जाम में बैठ सकता है. रिटन पास करने वाले को एप्टीट्यूड टेस्ट क्वालीफाई करना है, तब जाकर वो इसका लाभ उठा सकता है.
पहले साल में सुपर-30 कार्यक्रम में 35 छात्र शामिल थे, जिसमें से 19 एमबीबीएस में सिलेक्ट हुए. उसके बाद दूसरे साल में 33 छात्र थे, जिनमें से 6 एमबीबीएस, 7 बच्चे बीडीएस, 2 बीवीएससी और भारत सरकार के आयुष प्रोग्राम के तहत आने वाले बीयूएमएस में 5 बच्चे सेलेक्ट हुए थे. तीसरे बैच में 38 छात्र हैं और इन तीन सालों में यहां का सक्सेस रेट अभी तक का काफी अच्छा रहा है.
सीमाओं की सुरक्षा के साथ साथ अब सेना सद्भावना कार्यक्रम के तहत जम्मू कश्मीर में सुधार के कई कार्यक्रम चलाती है. इसी कार्यक्रम में सेना ने जम्मू कश्मीर के छात्रों के भविष्य को सुधारने का अभियान भी छेड़ा है.
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