जंग में हथियार पहुंचाएंगे ये रोबोटिक म्यूल, जोखिम भरे इलाकों में आएंगे काम, भारतीय सेना ने दिया ऑर्डर
Mule In Indian Army: खच्चरों के लिए कोई भी सड़क या इलाका जोखिम भरा नहीं होता है. कारगिल युद्ध से पहले, कारगिल युद्ध के दौरान और उसके बाद भी खच्चरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
Indian Army Robotic Mule: भारतीय सेना अब तेजी से हाईटेक होती जा रही है. सेना 'ड्रोन' से लेकर 'जेट पैक सूट' तक खरीद रही है. इसी के साथ, अब भारतीय सेना का प्लान 'रोबोटिक म्यूल' यानी 'रोबो खच्चर' खरीदने का भी है. ये बड़े ही काम की चीज़ होती है. सेना ने सहायक उपकरणों के साथ 100 'रोबोटिक म्यूल' (Robotic Mule) की खरीद प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. चलिए आपको इसकी खासियत के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.
दरअसल, लद्दाख के पथरीले इलाके में अंतिम मील तक भोजन, उपकरण और अन्य जरूरतों की आपूर्ति के लिए सैनिकों को बहुत प्रयास करना पड़ता है. वहीं भारतीय सैनिकों की इसमें मदद करते हैं खच्चर. खच्चरों के लिए कोई भी सड़क या इलाका जोखिम भरा नहीं होता है. कारगिल युद्ध से पहले, कारगिल युद्ध के दौरान और उसके बाद भी खच्चर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वहीं अब आपको मन में सवाल होगा कि फिर रोबो खच्चर की क्या जरूरत है?
लद्दाख में कैसे फायदेमंद साबित होंगे रोबोटिक म्यूल?
भारतीय सेना अब हाईटेक हो रही है और लद्दाख जैसे इलाकों में रोबो खच्चर बेहद फायदेमंद साबित हो सकते हैं. इन रोबो खच्चरों को स्वदेशी कंपनियों से ही खरीदा जाएगा. रोबो खच्चर बिल्कुल जानवर की तरह ही चार पैरों वाला होगा. जानकारी के मुताबिक, इसकी लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई 1 मीटर होगी. रोबो खच्चर का वजन 60 किलो तक होगा और इसे 4000 मीटर की ऊंचाई में इस्तेमाल किया जा सकेगा. ये करीब 10 साल तक चल सकेगा.
जानवरों की तुलना में रोबोटिक खच्चर कितना आगे?
सामान्य तौर पर एक खच्चर को उसके शरीर के वजन का 20% या लगभग 90 किग्रा (198 पौंड) तक डेडवेट के साथ पैक किया जा सकता है. हालांकि यह अलग-अलग जानवरों पर निर्भर करता है. माना जाता है कि सेनाओं के प्रशिक्षित खच्चर 72 किग्रा (159 पौंड) तक वजन उठाने और आराम किए बिना 26 किमी (16.2 मील) चलने में सक्षम हैं. हालांकि, रोबोटिक खच्चर की सहनशक्ति और गति बहुत अधिक होती है.
खच्चरों का इस्तेमाल
भारत और पाकिस्तान के इलाके एक दूसरे से अलग नहीं हैं. भारतीय सेना और पाकिस्तान सेना दोनों ही बड़े पैमाने पर खच्चरों का इस्तेमाल करती हैं. हालांकि, खच्चरों की क्षमता सीमित है और अतिरिक्त प्रशिक्षण के साथ उन्हें इससे थोड़ा अधिक धकेला जा सकता है. वहीं अब भारतीय सेना ने खुद को आधुनिक बनाने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है और आने वाले समय में जानवरों की बजाय पहाड़ों पर रोबोटिक खच्चरों का इस्तेमाल तय है.
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