नई दिल्ली:  'चलती का नाम गाड़ी' फिल्म में किशोर कुमार का एक गाना हैं 'पांच रुपया बारह आना'. आज के दौर में इस गाने पर चर्चा हो तो गाना सूर, लय और ताल की कसौटी पर बेशक खड़ा उतर जाए लेकिन टेक्निकली यह गाना गलत हो जाएगा. किशोर कुमार इस गीत में जिस 12 आने की बात कर रहे हैं वह कब का भारतीय मुद्रा प्रणाली से विदा ले चुका है. अब सिर्फ रुपयों का दौर है और इकन्नी, दुअन्नी, एक पैसे, दो पैसे, पांच, दस और बीस पैसे, 25 पैसे और 50 पैसे का दौर खत्म हो गया है. कई पुराने सिक्के बंद हो चुके हैं जबकि 10 रुपये का सिक्का सबसे नया सिक्का चलन में है.


अब भारत सरकार 20 रुपये के नोट की तरह 20 रुपये का सिक्का भी लाने जा रही है. वित्त मंत्रालय ने इस बात की घोषणा की है कि जल्द ही ये सिक्के बाजर में आ जाएंगे. इन सिक्कों को लेकर वित्त मंत्रालय ने नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है.


ऐसे में आइए आज हम सिक्कों के चलन और बंद होने के बारे में कुछ दिलचस्प बातें जानें..


ज़माना कोई भी रहा हो, समान की खरीद फरोख्त हो या लेन-देन, कोई न कोई तरीका अपनाया ही जाता रहा है. फिर एक वक्त आया जब सिक्के का चलन हुआ. पहले पहल सिक्का तांबे का बना, फिर चांदी और उसके बाद सोने ने जगह ली. भारत में प्राचीन दौर से सोने के सिक्के का चलन रहा. लेकिन देश पर मुसलमानों की हुकूमत आई तो उत्तर भारत में चांदी का दिरहम और सोने के दीनार का चलन शुरू हुआ. लेकिन शेर शाह के दौर में दिरहम और दीनार के बजाए रुपये और अशरफी का चलन शुरू हुआ, जो मुगल काम में भी चलता रहा.


भारतीय सिक्कों का पहली बार 1950 में बनाया किया गया था. तब से ही नए सिक्कों का उत्पादन किया जाता रहा है और वे भारतीय मुद्रा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण पहलू हैं. आज 1, 2, 5, और 10 रुपये के सिक्कों को बनाया जाता है. इन सिक्कों का उत्पादन भारत में कोलकाता, मुंबई, हैदराबाद और नोएडा में स्थित चार टकसालों में किया जाता है.


भारत के गणतंत्र बनने तक देश में ब्रिटिश सिक्के का चलन था. भारतीय गणराज्य में पहला सिक्का 1950 में बना. पहले भारत में 'आना' सिस्टम चला जिसमें 1 आना, 2 आना, 1/2 आना के सिक्के चलते थे. रुपये की सबसे छोटी वैल्यू का सिक्का आधा पैसा को 1947 में आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया गया. 'आना' सीरीज को प्री-डेसिमल कॉइनेज के नाम से भी जाना जाता है.


1957 में भारत दशमलव प्रणाली में स्थानांतरित हो गया. हालांकि थोड़े समय के लिए, दशमलव और गैर-दशमलव दोनों सिक्के प्रचलन में थे. 1957 और 1964 के बीच के सिक्कों को "नया पैसा'' कहा गया. इसके बाद 1 पैसा, 2 पैसा, 3 पैसा, 5 पैसा, 10 पैसा, 20 पैसा और 25 पैसा, 50 पैसा के सिक्के जारी किए जो देश में लंबे समय तक चलन में रहे.


नया पैसा शब्द को 1964 में हटा दिया गया था और एक नया मूल्यवर्ग 3 पैसे प्रचलन में लाया गया था. हालांकि 1, 2 और 3 पैसे के सिक्कों को 1970 के दशक में धीरे-धीरे खत्म किया गया. साल 1962 से 1रुपये का सिक्का चलन आज तक होता है. इसके बाद 1982 में 2 रुपए के नोट को बदलने के लिए प्रायोगिक तौर पर एक नया 2 रुपए का सिक्का पेश किया गया था. 2 रुपए के सिक्के का फिर से 1990 तक खनन नहीं किया गया था, जिसके बाद हर साल इसका खनन किया गया.


आइए जानते हैं कब कौन सा सिक्का आया चलन में और फिर कब हुआ बंद




  • 2 पैसा- 1957 में बना और 2011 में बंद हो गया.

  • 3 पैसा-1964 में बना और 2011 में बंद कर दिया गया.

  • 5 पैसा-1957 में बना और 2011 में बंद कर दिया गया.

  • 10 पैसा-भी 1957 में बना और 2011 में बंद कर दिया गया

  • 25 पैसा-1957 में बनना शुरू हुआ और 2011 में इसे बंद कर दिया गया

  • 50 पैसा- 1957 मे अब तक इस्तेमाल में है

  • 1 रुपया- 1962 से अब तक इस्तेमाल में है

  • 2 रुपया-1982 से अब तक इस्तेमाल में है

  • 5 रुपया 1992 से अब तक इस्तेमाल में है

  • 10 रुपया 2009 से अब तक इस्तेमाल में है


पहले इंडियन इकॉनमी में 1 आने की वैल्यू 6 पैसे हुआ करती थी. सन् 1950 के बाद जब 25 पैसे को लांच किया गया. तब से इसे चार आने कहा जाने लगा. शुरुआत में 25 पैसे में 1/4 लिखा होता था. पब्लिक अवेयरनेस के लिए इन सिक्कों पर अलग-अलग मैसेज देते श्लोगन्स भी लिखे गए.


बेशक 1 आने या 2 आने अब बंद हो गए हो. लेकिन कई मुहावरों और किस्सों में यह आज भी जिंदा हैं. कई मुहावरे जैसे ''चवन्नी छाप की औकात'', या 'सोलह आने सच' जैसे मुहावरे आज भी बोलते या सुनते हैं तो उसी 1 आने या 2 आने वाली दुनिया में लौट जाते हैं.