कनाडा से लौटे भारत के उच्चायुक्त संजय वर्मा ने कहा कि जिस देश को भारत मित्रवत लोकतांत्रिक देश मानता है उसने पीठ में छुरा घोंपा है और सबसे ज्यादा अनप्रोफेशनल रवैया अपनाया है.  उन्होंने कहा कि मुट्ठीभर खालिस्तान समर्थकों ने इस विचारधारा को एक आपराधिक उपक्रम बना दिया है जो मानव तस्करी और हथियार तस्करी जैसी अनेक गतिविधियों में लिप्त हैं और इस सबके बावजूद कनाडा के अधिकारियों ने आंखें मूंद रखी हैं क्योंकि ऐसे कट्टरपंथी स्थानीय नेताओं के लिए वोट बैंक होते हैं.


न्यूज एजेंसी पीटीआई के साथ इंटरव्यू में संजय वर्मा ने कहा कि कनाडा का ये व्यवहार बेहद घटिया है. यह द्विपक्षीय संबंधों के प्रति सर्वाधिक गैर-पेशेवर रवैया है. उन्होंने कहा कि अगर कनाडा को लगता है कि यह उनके लिए भी एक व्यापक रिश्ता है तो राजनयिक के पास अन्य कूटनीतिक साधन होते हैं. चीजों का संतोषजनक समाधान निकालने के लिए इन साधनों का इस्तेमाल किया जा सकता था.


उन्होंने कहा, 'वो सारी घटिया चीजें जिनके बारे में आप सोच सकते हैं, वे उनमें संलिप्त हैं.' संजय वर्मा ने पिछले कुछ दिन के घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि वह 12 अक्टूबर को टोरंटो हवाई अड्डे पर थे जब उन्हें कनाडा के विदेश मंत्रालय से उसी दिन आने के लिए संदेश मिला. वह उस दिन यात्रा कर रहे थे, इसलिए उन्होंने 13 अक्टूबर का समय मांगा और भारतीय उप उच्चायुक्त के साथ ग्लोबल अफेयर्स कनाडा (कनाडा के विदेश मंत्रालय के दफ्तर) पहुंचे.


भारतीय राजनयिक ने कहा, 'थोड़ी बातचीत के बाद उन्होंने मुझे बताया कि मैं, पांच अन्य भारतीय राजनयिक और अधिकारी निज्जर की हत्या की जांच में निगरानी की श्रेणी में हैं. और, इसलिए मेरी और मेरे सहकर्मियों की राजनयिक छूट को समाप्त करने का अनुरोध किया गया, ताकि वहां की जांच एजेंसी रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) हमसे पूछताछ कर सके. इसलिए, मैंने इसे एक संदेश के रूप में लिया.'


संजय वर्मा ने उस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम का विस्तार से जिक्र किया जिसके बाद उन्हें और उनके सहकर्मियों को हड़बड़ी में कनाडा छोड़कर आना पड़ा. उन्होंने कहा, 'कूटनीति में ऐसा नहीं होता. आम तौर पर, शुरुआत में किसी तरह का संदेश दिया जाता है. मुझे वह भी नहीं मिला और, अचानक यह हमें सौंप दिया गया. इसलिए, मैं कहूंगा कि यह अविश्वास को दर्शाता है, यह एक तरह से पीठ में छुरा घोंपने के समान है जो कनाडा में हमारे बहुत ही पेशेवर सहयोगियों द्वारा हमारे साथ किया गया था.'


संजय वर्मा ने कहा, 'दोनों लोकतंत्र हैं, दोनों कानून व्यवस्था वाले देश हैं. कनाडा में भारतीय मूल के लोगों को लेकर हमारे व्यापक हित हैं. हम अच्छे कारोबारी साझेदार, निवेश साझेदार हैं. इसलिए, हम कुल मिलाकर हमारे द्विपक्षीय संबंधों के समग्र आयाम में अच्छा काम कर रहे थे और इस सबसे मैं स्तब्ध था.' संजय वर्मा ने इस घटना को किस तरह लिया, इस सवाल पर वह बताते हैं, 'मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं थे. चिंता की एक लकीर तक नहीं थी. मुझे इस बात को लेकर खुशी थी कि मैंने उन्हें यह महसूस नहीं होने दिया कि यह आदमी तो दुखी है या डरा हुआ है.'


उन्होंने कहा, 'जो बच्चा सबसे ज्यादा रोता है, मां सबसे पहले उसका पेट भरती है. इसी तरह, उन लोगों (खालिस्तान समर्थकों) की संख्या मुट्ठीभर ही है, लेकिन वे सबसे ज्यादा चिल्लाते हैं और कनाडा के नेताओं का उन पर सबसे अधिक ध्यान जाता है.' संजय वर्मा ने कहा कि कनाडा में घोर कट्टरपंथी खालिस्तानियों की संख्या महज करीब 10,000 है और करीब आठ लाख की सिख आबादी में उनके समर्थकों की संख्या संभवत: एक लाख है.


उन्होंने कहा कि खालिस्तानी समर्थन हासिल करने के लिए वहां आम सिखों को धमकाते हैं जिसमें इस तरह की धमकियां शामिल हैं कि हमें पता है कि तुम्हारी बेटी कहां पढ़ रही है. संजय वर्मा ने कहा, 'खालिस्तानियों ने कनाडा में खालिस्तान को एक कारोबार बना लिया है. खालिस्तान के नाम पर वे मानव तस्करी करते हैं, मादक पदार्थों की तस्करी करते हैं, हथियारों की तस्करी करते हैं और ऐसे सारे काम करते हैं. वे इससे बहुत धन जुटाते हैं और गुरुद्वारों के माध्यम से भी पैसा जुटाते हैं तथा इसका कुछ हिस्सा अपने सभी घृणित कृत्यों में खर्च करते हैं.'


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