S Jaishankar On China: ‘चीन ने किया समझौते का उल्लंघन', गलवान घाटी की झड़प पर और क्या बोले एस जयशंकर?
S Jaishankar In Japan: विदेश मंत्री एस जयशंकर फिलहाल जापान के दौरे पर हैं. टोक्यो में एक कार्यक्रम में संबोधित करते हुए उन्होंने चीन पर भारत के साथ लिखित समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाया है.
S Jaishankar Attacked China: जापान के दौरे पर मौजूद केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर चीन पर निशाना साधा है. गुरुवार (7 मार्च) को उन्होंने कहा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति, संपन्नता व स्थिरता के लिए जापान भारत का एक स्वभाविक साझेदार देश है. जयशंकर ने कहा कि चीन ने भारत के साथ लिखित समझौते का उल्लंघन किया है, जिसकी वजह से पूर्वी लद्दाख के इलाके में दोनो देशों की सेनाओं के बीच खूनी झड़प हुई थी.
गुरुवार को उन्होंने जापान के विदेश मंत्री कामीकावा योको के साथ भारत-जापान रणनीतिक वार्ता की अध्यक्षता की. इस वार्ता में बुलेट ट्रेन, सेमीकंडक्टर, वीजा प्रदान करने में सहूलियत देने समेत हिंद प्रशांत क्षेत्र की स्थिति पर भी काफी विस्तार से चर्चा हुई है. जयशंकर ने इस बैठक में कहा कि भारत और जापान हिंद प्रशांत क्षेत्र के दो महत्वपूर्ण देश हैं और दोनों ही इस क्षेत्र की चुनौतियों के मद्देनजर अपना कर्तव्य का दायित्वपूर्ण तरीके से निभाने को तैयार हैं.
वैश्विक मुद्दे पर क्या बोले जयशंकर?
जयशंकर ने रायसीना डायलाग के टोक्यो संस्करण को संबोधित किया. इसमें उन्होंने कहा कि वैश्विक व्यवस्था आज पहले से ज्यादा अस्थिर है. वैश्विक समुदाय में आम राय बनाना पहले से ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है. वैश्विक जोखिम भी बढ़ रहा है. यह यूरोप की स्थिति और एशिया में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का हो रहे उल्लंघन, मध्य पूर्व की स्थिति और हथियारों की होड़ से समझा जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग
इस संदर्भ में जयशंकर ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार करने की मांग की. एक प्रश्न का जवाब देते हुए भारतीय विदेश मंत्री ने चीन पर परोक्ष तौर पर आरोप लगाया कि उसकी तरफ से दोनों देशों के बीच पहले किये गये समझौते का पालन नहीं किये जाने की वजह से वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख इलाके में भारत व चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें हुई थी।
जयशंकर ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थित शक्तियों में बड़ा बदलाव हुआ है. उन्होंने कहा, "दुर्भाग्य से पिछले एक दशक में चीन के साथ भारत का अनुभव ऐसा नहीं रहा कि जिससे यह कहा जाए कि चीजों को स्थिर रखने की कोशिश की गई हो. दो देश कई मुद्दों पर असहमत हो सकते हैं लेकिन जब कोई देश अपने पड़ोसी देश के साथ किये गये लिखित समझौते को नहीं मानता है तो यह रिश्तों की स्थिरता और देश की मानसिकता पर सवाल उठाता है.
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