भारत के युवा उद्यमी और कम्प्यूटर विज्ञानी गजानन साखरे, वही शख़्स हैं, जिन्होंने दिल्ली पुलिस के महिला सुरक्षा कार्रवाई की ख़ातिर हिम्मत एप्लीकेशन बनाया था. कोरोना काल में फेफड़ों की सेहत को लेकर भारत ही नहीं दुनिया भर में बढ़ी फ़िक्र के बीच गजानन और उनकी टीम ने एक ऐसी मशीन बनाई जो कुछ ही देर में आपके फेफड़ों की जांच कर रिपोर्ट दे देता है. इतना ही नहीं, इस डिवाइज़ के ज़रिए घर पर ही फेफड़ों की जांच भी की जा सकती है और स्मार्टफोन एप्लीकेशन के जरिए उसकी रिपोर्ट भी हासिल की जा सकती है.
यह महंगी विदेशी मशीनों के मुकाबले भारत में बना नया स्पायरोमीटर बेहतर भी है और किफायती भी. इस स्पायरोमीटिर के लिए बीते साल गजानन साखरे को भारत की फार्मास्यूटिकल उत्पादक कंपनियों के संगठन OPPI ने सम्मानित भी किया. लेकिन अक्सर यही होता है कि भारतीय प्रतिभाओं को विदेशी पारखी बेहतर सुविधाओं के साथ अपने यहां ले जाते हैं.
सो, गजानन साखरे कुछ माह पहले डेनमार्क सरकार के न्यौते पर पुणे से कोपनहेगन आ गए. डेनमार्क साखरे के नए स्पायरोमीटिर का व्यापक उत्पादन कर दुनिया के अन्य बाज़ारों में ले जाना चाहता है. इसके लिए बाकायदा उनकी कंपनी ब्रायोटा को 50 फीसद फंडिंग भी मुहैया कराई गई है.
हालांकि साखरे कहते हैं कि उन्होंने भारत छोड़ा नहीं है. बल्कि बेहतर रिसर्च और प्रोडक्शन की सुविधाओं के लिए भारत से बाहर अपना बस एक और बेस बनाया है. साथ ही बताते हैं कि उनका स्पायरोमीटिर खासतौर पर भारतीय फेफड़ों की क्षमताओं के सैंपल के आधार पर तैयार किया गया है. लिहाज़ा भारत में बढ़ते प्रदूषण और खासतौर पर अस्थमा की परेशानियों के इलाज में कारगर साबित हो सकता है.
आंकड़े बताते हैं कि अस्थमा भारत ही नहीं दुनिया में तेजी से बढ़ती हुई बीमारी है. वायु प्रदूषण पर बने विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी समूह के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में करीब 30 करोड़ लोग अस्थमा से परेशान हैं और करीब ढाई लाख लोग हर साल इस बीमारी से जान गंवाते हैं. माना जाता है कि भारत में करीब 5-10 फीसद आबादी इस बीमार से प्रभावित हैं. इनमें से एक बड़ा हिस्सा उन लोगों का भी है जिन्हें इस बारे में सही जानकारी भी नहीं है कि वो अस्थमा से पीड़ित हैं.
दरअसल, हवा में घुलते प्रदूषण के ज़हर से अस्थमा की शिकायत बढ़ती जा रही है. अस्थमा का पता स्पायरोमीटर टेस्ट से किया जाता है. इसमें पीड़ित व्यक्ति फेफड़ों में हवा भर स्पायरो मीटिर में फूंकता है. इससे उसके फेफड़ों की क्षमता का पता लगाया जा सकता है. अस्थमा के कारकों में प्रदूषण के अलावा, एलर्जी से लेकर खाने-पीने के सामान में कृत्रिम रंगों के इस्तेमाल समेत कई कारण हैं.
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