Indian Navy: इंडियन नेवी दुनिया की सबसे ताकतवर नौसेनाओं में से एक है. भारतीय नौसेना देश की सुरक्षा में हर वक्त चौकस रहती है. इंडियन नेवी ने वक्त के साथ अपनी क्षमताओं को काफी विकसित किया है. यही वजह है कि हमारी भारतीय नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी नौसेनाओं में से एक है.
भारतीय नौसेना के पास न सिर्फ आधुनिक हथियार और युद्धपोत हैं, बल्कि हमारे सैनिकों में वह जज्बा भी है जिसे देखकर कोई भी दुश्मन भारत की तरफ आंख उठाने के पहले कई बार सोचता है. हम हर साल 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाते हैं. इस दिवस का संबंध 1971 युद्ध में पाकिस्तान पर जीत से है. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' में नौसेना की कामयाबी के जश्न में 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाता है. नेवी डे भारतीय नौसेना के शूरवीरों के अदम्य साहस का सम्मान है.
1971 के युद्ध से जुड़ा है नेवी डे का संबंध
1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारतीय युद्धपोतों ने कराची बंदरगाह पर हमला कर पश्चिमी तट पर पाकिस्तानी नौसेना की रीढ़ को कमजोर कर दिया था. पाकिस्तान की सेना ने 3 दिसंबर 1971 को हमारे हवाई क्षेत्र और सीमावर्ती क्षेत्र में हमला किया था. इस हमले से 1971 के युद्ध की शुरुआत हुई थी. भारतीय वायुसेना पाकिस्तान के हमले का जवाब दे रही थी. इस बीच भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' चलाया. यह अभियान पाकिस्तांनी नौसेना के कराची स्थित मुख्यालय को टारगेट बनाकर शुरू किया गया. एक मिसाइल नाव और दो युद्ध पोत के एक आक्रमणकारी समूह ने कराची के तट पर पाकिस्तानी जहाजों के समूह पर हमला कर दिया. भारतीय नौसेना के तीन मिसाइल जहाज आईएनएस निपाट, आईएनएस निर्घाट और आईएनएस वीर ने हमले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
पहली बार एंटी शिप मिसाइल से हमला
इस युद्ध में पहली बार जहाज पर मार करने वाली एंटी शिप मिसाइल से हमला किया गया था. इस हमले में पाकिस्तान के कई जहाज नीस्त-ओ-नाबूद हो गए थे और पाकिस्तान के करीब पांच सौ सैनिक मारे गए थे. इस दौरान पाकिस्तान के ऑयल टैंकर भी तबाह हो गए थे. कराची हार्बर फ्यूल स्टोरेज के तबाह हो जाने से पाकिस्तान नौसेना की कमर टूट गई थी. कराची के तेल टैंकरों में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था. कराची के तेल डिपो में लगी आग को सात दिनों तक नहीं बुझाया जा सका था. भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था. 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' ऑपरेशन की सफलता को ध्यान में रखते हुए 4 दिसंबर को हर साल नौसेना दिवस मनाया जाता है.
पाकिस्तानी नौसेना की कमर तोड़ दी
ऑपरेशन ट्राइडेंट.. 1971 के युद्ध में कराची पर भारतीय नौसेना के हमले का कोडनेम था. इसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के सबसे सफल ऑपरेशन में से एक माना जाता है. ऑपरेशन ट्राइडेंट की सफलता के बाद भारतीय नौसेना ने 1971 में आठ दिसंबर की रात 'ऑपरेशन पाइथन' शुरू किया. इसमें भारतीय नौसेना के दो युद्ध पोत से कराची के तट पर पाकिस्तानी जहाजों के समूह पर हमला किया गया. भारत को कोई नुकसान नहीं हुआ, जबकि पाकिस्तानी बेड़े के टैंकर पीएनएस डैका को भारी क्षति पहुंची और केमेरी ऑयल स्टोरेज पूरी तरह बर्बाद हो गया. इन दोनों ऑपरेशन से पूर्वी पाकिस्तान में उसकी नौसेना को भारी क्षति पहुंची.
भारतीय नौसेना देश की समुद्री सीमा को सुरक्षित रखने के साथ ही प्राकृतिक आपदा आने पर मनावीय सहायता अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. भारतीय नौसेना की ताकत पूरी दुनिया में मशहूर है. भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है. आंतरिक सुरक्षा हो या समुद्री व्यापार भारतीय नौसेना हर विपरीत परिस्थिति से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहती है. भारतीय नौसेना के सामने चुनौतियां भी हैं.
हिंद महासागर पर दुनिया की नजर
हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में जिस तरह पूरी दुनिया की दिलचस्पी बढ़ी है, उस लिहाज से भारतीय नौसेना के लिए चुनौतियां भी आने वाले दिनों में और बढ़ने वाली है. समुद्री सुरक्षा के लिए हिंद महासगार के पूरे इलाके में भारत से बड़ा देश कोई नहीं है. ऐसे में भारतीय नौसेना को और ज्यादा आधुनिक पनडुब्बी और समुद्री जहाज बनाने की दरकार है. साथ ही वैश्विक हालात को देखते हुए सैन्य क्षमता भी बढ़ाने की जरूरत है. पिछले कुछ साल से एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं. हिंद महासागर न सिर्फ व्यापारिक लिहाज से, बल्कि सामरिक नजरिये से भी बेहद महत्वूपूर्ण है.
चीन के बढ़ते दखल से निपटने की चुनौती
हिंद महासागर में कई देशों के साथ भारतीय नौसेना साझा युद्धाभ्यास करते रहती है. दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में चीन का दखल बढ़ता जा रहा है. बीते 15 सालों से चीन की नौसेना यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में दबदबा बनाने में जुटी है. खुद नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को बड़ी चुनौती बताया है. चीन LAC के बाद अब समुद्री सीमा में भी भारत के लिए बड़ी चुनौती बन रहा है. अमेरिका ने भी इसका बार-बार जिक्र किया है. हाल ही में पेंटागन से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपने परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ा रहा है. चीन के पास अगले 13 साल में 1,500 से ज्यादा खतरनाक परमाणु हथियार होंगे. अमेरिकी रिपोर्ट में जिबूती बेस का भी जिक्र किया गया है, जहां से चीन हिंद महासागर में अपनी ताकत को कई गुना बढ़ा सकता है.
स्वदेशी विमानवाहक पोत बढ़ाने की चुनौती
पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के पास तीन ऐसे एयरक्राफ्ट कैरियर हैं, जिनकी क्षमताएं अलग-अलग हैं जबकि भारतीय नौसेना के पास सिर्फ दो ही बड़े एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. इनमें से एक रूस में बना आईएनएस विक्रमादित्य है, दूसरा आईएनएस विक्रांत है, जिसे पूरी तरह से ऑपरेशनल होने में अभी कुछ महीने और लग सकते हैं. भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत (IAC-1) को सितंबर में नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया. इस विमानवाहक पोत पर करीब 23,000 करोड़ रुपये का खर्च आया था. इंडियन नेवी का समुद्र में चीन की बढ़ती ताकत और महासागर में उसके बढ़ते दबदबे से निपटने के लिए तीन विमान वाहक पोत हासिल करने पर जोर रहा है. हालांकि, इंडियन नेवी के लिए तीसरे IAC को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है.
हिंद महासागर में होते हैं 60 से ज्यादा जहाज
हिंद महासागर में चीन के साथ ही दूसरे देशों के कई जहाज एक समय में ही ऑपरेट होते रहते हैं. इनमें कई जासूसी जहाज भी हो सकते हैं. इंडियन नेवी हमेशा सतर्क रहती है कि इनमें से कोई भी जहाज देश के एक्सक्लुसिव इकोनॉमिक जोन (EEZ) में दाखिल न हो जाए. इंडियन नेवी महासागर क्षेत्र में चीन के सैन्य और जासूसी पोत की आवाजाही पर कड़ी नजर रखती है. हिंद महासागर में चीन के दखल और जिबूती के सैन्य बेस पर चीनी नौसेना के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए भारत 'सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन' (SAGAR) नीति पर आगे बढ़ रहा है. इस नीति के तहत भारत ने मित्र-देशों को जहाज और हेलीकॉप्टर तक मुहैया कराए हैं और हिंद महासागर के देशों में सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार किया जा रहा है.
साझा युद्धाभ्यास पर भारतीय नौसेना का फोकस
भारत ने हाल के वर्षों में हिंद महासागर के इर्द-गिर्द बसे कई देशों के साथ नौसेना का साझा अभ्यास किया है. इनमें मालदीव, मॉरीशस, सेशेल्स, इंडोनेशिया, म्यांमार और बांग्लादेश बेहद अहम हैं. चीन की शक्ति कम करने के उद्देश्य से अमेरिका और जापान ने भी इस काम में भारत की मदद की. क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए भारतीय नौसेना ने साझेदार देशों के साथ कई मैरीटाइम अभ्यास में हिस्सा लिया है.
नेवी के लिए तटीय सुरक्षा है बड़ी चुनौती
भारत की साढ़े सात हजार किलोमीटर लंबी तटीय सीमा के अलावा हजारों किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा भी है और इसकी सुरक्षा के लिए नौसेना के पास आधुनिक तकनीक की सख्त जरूरत है. 26/11 के मुंबई हमले के बाद तटीय सुरक्षा का मामला बेहद अहम हो गया है. नेवी के लिए आतंकवाद के साथ ही नशीले पदार्थों की तस्करी और इस तरह के अन्य खतरे से पूरी मुस्तैदी से निपटने की चुनौती है. इंडो-पैसिफिक में कई चुनौतियां हैं जिनसे नेवी को निपटना है. एडमिरल आर हरि कुमार ने खुद माना है कि समुद्री डकैती, समुद्री रास्ते से ड्रग्स और हथियारों की तस्करी, अवैध मछली शिकार और समुद्री आतंकवाद ने सुरक्षा मैट्रिक्स को जटिल बना दिया है.
पनडुब्बियों की संख्या बढ़ाने की जरुरत
मजबूत नौसेना के लिए आधुनिक पनडुब्बी को बेहद अहम माना जाता है. दिसंबर 2017 से पहले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से भारतीय नौसेना में एक भी नई पनडुब्बी शामिल नहीं हुई थी. दिसंबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीजल-इलेक्ट्रिक युद्धक पनडुब्बी आईएनएस कलवरी राष्ट्र को समर्पित की. देश की पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी INS अरिहंत ने भी नौसेना की ताकत बढ़ी है लेकिन जानकारों का मानना है कि इस मोर्चे पर और ज्यादा काम करने की दरकार है.
हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते वर्चस्व पर अंकुश लगाने के नजरिेये से स्कोर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियां बेहद कारगर साबित हो सकती हैं. भारतीय नौसेना को ऐसी पनडुब्बियों की संख्या बढ़ाने की जरुरत है, जिनमें लंबे वक्त तक पानी के नीचे रहने की क्षमता हो. भारत जिस तरह इन दिनों पनडुब्बियों को देश में ही बनाने पर जोर दे रहा है, उससे यह उम्मीद है कि आने वाले दिनों में आधुनिक तकनीकों से लैस पनडुब्बियों की संख्या और बढ़ेगी.
इंडिजीनस एयरक्राफ्ट कैरियर बढ़ाने की चुनौती
अमेरिका और चीन सुपर एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. भारत को वर्तमान में समुद्री चुनौतियों का सामना करने के लिए कम से कम 6 से 8 स्वदेशी विमानवाहक पोत यानी इंडिजीनस एयरक्राफ्ट कैरियर (IAC) की जरूरत है, जिनमें एक परमाणु शक्ति से लैस एयरक्राफ्ट कैरियर भी हो.
बार-बार होने वाले हादसों से निपटने की चुनौती
इंडियन नेवी के सामने जहाजों और पनडुब्बियों में होने वाले हादसों से निपटने की भी बड़ी चुनौती है. नियंत्रक और महालेखापरीक्षक यानी CAG की रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 से लेकर 2017 के दौरान भारतीय नौसेना की पनडुब्बियों और जहाजों को मिलाकर कुल 38 हादसे हुए. इनमें 33 नौसेना अधिकारियों और जवानों की मौत हुई. इन हादसों से होने वाले नुकसान को रोकने पर काम करना होगा. रक्षा एक्सपर्ट्स का मानना है कि हादसों को रोकने के लिए सही रख-रखाव और ट्रेनिंग को बेहतर करने पर और ज्यादा ध्यान देना होगा.
नौसेना में पहली बार महिलाओं की भर्ती
भारतीय नौसेना अभी निचले स्तर पर जवानों की कमी से भी जूझ रही है. नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने 3 दिसंबर को जानकारी दी है कि नेवी में करीब 3,000 अग्निवीर शामिल किए गए हैं. इनमें 341 महिलाएं हैं. नौसेना में पहली बार महिलाओं को शामिल किया गया है. अगले साल से नौसेना में महिला ऑफिसरों की भी भर्ती की जाएगी.
2047 तक आत्मनिर्भर हो जाएगी इंडियन नेवी
भारतीय नौसेना आत्मनिर्भर बनने की राह पर है. नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने कहा है कि इंडियन नेवी 2047 तक आत्मनिर्भर बन जाएगी. बीते सात साल में कमीशन किए गए 29 जहाज देश में ही बने हैं. इसके अलावा निर्माणाधीन 40 जहाजों में से 38 भारतीय शिपयार्ड में ही बनाए जा रहे हैं. नेवी के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में Project 75 बेहद अहम है.
मेड इन इंडिया के तहत पनडुब्बियों का निर्माण
Project 75 के तहत छह स्कोर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों को भारत में ही बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया. ये अत्याधुनिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत अब तक चार पनडुब्बी (Submarines) नेवी के बेड़े में शामिल हो चुकी हैं जोकि कलवरी (Kalvari), खंडेरी (Khanderi), करंज (Karanj) और वेला (Vela) हैं. कलवरी पनडुब्बी को 14 दिसंबर 2017 और खंडेरी को 28 सितंबर 2019 को कमीशन किया गया था. करंज को 10 मार्च 2021 और चौथी पनडुब्बी वेला को 25 नवंबर 2021 को कमीशन किया गया था. ये सभी पनडुब्बियां मेड इन इंडिया हैं. पांचवी पनडुब्बी वगीर (Vagir) और छठी स्कॉर्पीन पनडुब्बी वागशीर (Vagsheer) है. अगले साल तक ये सभी आधुनिक पनडुब्बियां नौसेना के बेड़े में शामिल हो जाएंगी.
इंडियन नेवी का इतिहास
भारत में युद्धक जहाजों का पहला स्क्वाड्रन 5 सितम्बर 1612 को पहुंचा. इसे ईस्ट इंडिया कंपनी की समुद्री सेना ने बुलाया था. 1668 में ईस्ट इंडिया कंपनी की समुद्री सेना का नाम 'बंबई मरीन' कर दिया गया था. 1830 में बंबई मरीन को 'हर मेजेस्टीर इंडियन नेवी' का नया नाम दिया गया. 1892 में इसे 'रॉयल इंडियन मरीन' कहा जाने लगा. इस वक्त तक इसमें 50 से अधिक जहाज शामिल थे. सूबेदार लेफ्टिनेंट डीएन मुखर्जी इस नेवी में पहले भारतीय के रूप में कमीशन किए गए शख्स थे. वह एक इंजीनियर अधिकारी के रूप में 1928 में रॉयल इंडियन मरीन में शामिल हुए थे. रॉयल इंडियन मरीन को 1934 में 'रॉयल इंडियन नेवी' बना दिया गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रॉयल इंडियन नेवी में आठ युद्धपोत शामिल किए गए. इस युद्ध के आखिर तक 117 युद्ध पोत हो गए. 22 अप्रैल 1958 को वाइस एडमिरल आरडी कटारी ने नौसेना के पहले भारतीय चीफ के रूप में पद ग्रहण किया था.
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