नई दिल्ली: ब्लू वॉटर नेवी बनने में जुटी भारतीय नौसेना अब तेजी से स्वदेशी युद्धपोतों को अपने जंगी बेड़े में शामिल करनी में जुट गई है. सोमवार को प्रोजेक्ट 17ए के तहत कोलकता स्थित गार्डन रिच शिपयार्ड इंजीनियर्स (जीआरएसई) में पहला फ्रीगेट युद्धपोत समंदर में लॉन्च किया गया.
इस मौके पर चीफ ऑफ डिफेंस जनरल बिपिन रावत की मौजूदगी में उनकी पत्नी मधुलिका रावत ने सैन्य पंरपरा के तहत इस युद्धपोत को लॉन्च किया. आपकों बता दें कि भारतीय नौसेना के 41 युद्धपोत फिलहाल देश के अलग-अलग शिपयार्ड्स में बन रहे हैं.
नौसेना के पास करीब 150 छोटे-बड़े युद्धपोत हैं
प्रोजेक्ट 17ए के तहत भारतीय नौसेना के कुल 07 फ्रीगेट बनाए जाने हैं. इनमें से चार मुंबई स्थित मझगांव डॉकयार्ड में बनने हैं और तीन जीआरएसई में. जीआरएसई में फिलहाल इस तरह के दो फ्रीगेट्स का निर्माण शुरू हो चुका है. सोमवार को जिस फ्रीगेट को लॉन्च किया है वो नौसेना में शामिल होने के बाद'आईएनएस हिमगिरी' के नाम से जाना जाएगा. मझगांव डॉकयार्ड में भी इस प्रोजेक्ट के तीन युद्धपोत का निर्माण शुरू हो चुका है. ये सभी 'नीलगिरी क्लास' युद्धपोत हैं.
आपको बता दें कि भारतीय नौसेना को वर्ष 2030 तक करीब 200 युद्धपोत और पनडुब्बियों की जरूरत है. इस समय नौसेना के पास करीब 150 छोटे-बड़े युद्धपोत हैं. लेकिन नौसेना में जंगी जहाजों के शामिल करने का काम तेजी से चल रहा है. नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने नौसेना दिवस के मौके पर जानकारी दी थी कि फिलहाल 43 युद्धपोत, एयरक्राफ्ट कैरियर और पनडुब्बियों के निर्माण का काम चल रहा है. जिनमें से 41 देश के ही अलग-अलग शिपायर्ड में बनाए जा रहें हैं. जीआरएसई, एमडीएल, गोवा स्थित जीएसएल, कोच्चि स्थित कोचिन शिपायर्ड और विशापट्टनम स्थित हिंदुस्तान शिपायर्ड में.
तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत
सरकारी डॉकयार्ड के अलावा अब निजी क्षेत्र की कंपनियां भी नौसेना और कोस्टगार्ड के लिए जहाज बना रही हैं. नौसेना के आंकड़ों की माने तो पिछले छह साल में जितने भी युद्धपोत और पनडुब्बिया नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल हुई हैं वे सभी भारत में ही तैयार की गई हैं. आपको बता दें कि पूरे हिंद महासागर क्षेत्र के साढ़े सात करोड़ वर्ग किलोमीटर की सुरक्षा और निगहबानी के लिए भारतीय नौसेना को एक बड़े जंगी बेड़े की जरूरत है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सागर' प्लान यानि सिक्युरेटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रिजन के तहत हिंद महासागर के लिए भारतीय नौसेना एक 'नेट-सिक्योरिटी प्रोवाइडर' है. इसके अलावा इंडियन ओसियन रिजन के सभी मित्र-देशों की सुरक्षा हो या कोई प्राकृतिक आपदा उन सभी की मदद करना भारतीय नौसेना की जिम्मेदारी.
यही वजह है कि भारतीय नौसेना पूरी तरह से 'ब्लू-वॉटर नेवी' बनने के लिए एक तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की मांग कर रही है. अभी भारतीय नौसेना के पास रूस से लिया एक एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विक्रमादित्य है. इसके अलावा एक स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत कोच्चि स्थित कोचिन शिपयार्ड में जल्द बनकर तैयार होने वाले है. लेकिन नौसेना प्रमुख साफ कह चुके हैं कि हिंद-प्रशांत महाक्षेत्र में ओपरेट करने के लिए तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है.
लेकिन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने हाल ही में कहा था कि नए एयरक्राफ्ट कैरियर के लिए नौसेना को एक बड़े रकम की जरूरत पड़ सकती है. इसलिये अंडमान निकोबार कमान को भी एक एयरक्राफ्ट कैरियर की तरह हिंद महासागर में 'स्टेटिक' एयरक्राफ्ट कैरियर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
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