Indian Politics: देश की राजनीति में इन दिनों परिवर्तन का दौर जारी है. तमाम सियासी दल पार्टी को मजबूत करने के लिए कई बड़े बदलाव कर रहे हैं. इसी कड़ी में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) ने पार्टी को मजबूत करने के लिए शुक्रवार को नई रणनीति के तहत कई बदलावों की घोषणा की. अकाली दल ने युवाओं, महिलाओं के साथ-साथ समाज के अन्य वर्गों को और अधिक स्थान देने का फैसला किया है और ‘एक परिवार से एक टिकट’ का फार्मूला अपनाया है.
चंडीगढ़ में सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि अब शिरोमणी अकाली दल एक परिवार को एक ही टिकट देगा और जिलाध्यक्ष को मैदान में नहीं उतारा जाएगा. उन्होंने ये भी कहा कि जल्द ही संसदीय बोर्ड का गठन किया जाएगा ताकि पार्टी में अनुशासन बनाया जा सके. सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी में युवा चेहरों को तवज्जो देने की बात भी कही. उन्होंने महिला कार्यकर्ताओं को भी शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी में शामिल किए जाने की बात कही.
अकाली दल हर धर्म को साथ लेकर चलेगा- सुखबीर सिंह बादल
सुखबीर सिंह बादल ने ये भी कहा कि पार्टी हर धर्म को साथ लेकर चलेगी. युवा अकाली दल में अब 35 साल से कम उम्र के युवाओं को शामिल क्या जाएगा जबकि पार्टी में 50 साल से कम आयु वालों के लिए 50 सीटें रिजर्व होंगी. उन्होंने सिख स्टूडेंट फेडरेशन को पुनर्जीवित करने की बात भी कही और कहा कि सभी फैसले 30 नवंबर तक लागू कर दिए जाएंगे.
पंजाब में ‘वन विधायक वन पेंशन’ कानून लागू कर किया गया बड़ा बदलाव
इससे पहले पंजाब की भगवंत मान सरकार ने जनता के बीच अपनी छवि और मजबूत करने के लिए ‘वन विधायक वन पेंशन’ कानून लागू कर बड़ा बदलाव किया था. एक विधायक एक पेंशन कानून के लागू होने के बाद अब एक विधायक को सिर्फ एक ही पेंशन मिल रही है. इससे पहले नियम ये था कि अगर कोई विधायक पांच बार चुनाव जीतता है तो वह पांच बार के हिसाब से पेंशन सेवा का लाभ उठा सकता था. लेकिन भगवंत मान सरकार ने वन विधायक वन पेंशन कानून बनाकर इस नियम को पूरी तरह खत्म कर दिया है. अब विधायकों को केवल एक कार्यकाल के लिए ही पेंशन मिलेगी.
कांग्रेस ने ‘एक परिवार एक टिकट’ नियम किया था लागू
शिरोमणि अकाली दल से पहले कांग्रेस पार्टी ने ‘एक परिवार एक टिकट’ का नियम लागू किया था. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी कहलाने वाली कांग्रेस की हालत आज खस्ता हो गई है. हालांकि पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिए आलाकमान द्वारा नई-नई रणनीति अपनाई जा रही है. उदयपुर में हुए चिंतन शिविर के दौरान भी कांग्रेस ने कई सुधारों और बदलावों की सिफारिश की थी. इसमें टिकट बंटवारे का नया फार्मूला निकाला गया था और ‘एक परिवार एक टिकट’ के नियम को मंजूरी दी गई थी.
इसके साथ ही ये भी तय किया था कि परिवार के दूसरे सदस्य को पार्टी तभी टिकट देगी जब उसने संगठन में कम से कम पांच साल काम किया हो. साथ ही पार्टी में अब कोई भी नेता किसी भी पद पर 5 साल से ज़्यादा नहीं रहेगा. अगर ऐसे किसी व्यक्ति को किसी पद पर वापस लाया जाना हो तो उसे कम से कम 3 साल का कूलिंग पीरियड अनिवार्य होगा. कांग्रेस ने अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए ये फैसले लिए थे.
क्यों बदल रहा है राजनीति का पैटर्न
अब सवाल ये उठता है कि आखिर राजनीति का पैटर्न क्यों बदल रह है. दरअसल तमाम सियासी दलों पर परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं. बीजेपी अक्सर हर मंच से इस मुद्दे को लेकर कई पार्टियों पर निशाना साधती रही है. खासतौर पर कांग्रेस पार्टी और शिरोमणी अकाली दल परिवारवाद के आरोपों से भेदी जाती रही है. ऐसे में कांग्रेस ने पहले ही पार्टी में ‘एक परिवार एक टिकट’ का बदवाल कर इस परिवारवाद के कलंक को धोने की कोशिश शुरू की थी. वहीं अब शिरोमणी अकाली दल ‘एक परिवार से एक टिकट’ का फार्मूला लेकर आई है.
बादल परिवार का चुनावों में काफी दबदबा रहा है. फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में ही शिरोमणी अकाली दल के टिकट पर चार परिवार (पिता-पुत्र) चुनाव लड़े थे. वहीं शिरोमणी अकाली दल में परिवारवाद होने का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा था. इसी कारण बीजेपी के परिवारवार के मुद्दे की काट को ढूंढने के लिए देश की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणी अकाली दल ने ‘एक परिवार से एक टिकट’ के फॉर्मूले को अपनाया है.
ऐसे में साफ लग रहा है कि अब राजनीति का पैटर्न बदल रहा है. सियासी दल अपनी पार्टी को मजबूत करने और अपनी छवि सुधारने की दिशा में इस तरह की रणनीति अपना रहे हैं. वैसे ये देखने वाली बात होगी कि इन पार्टियों की ये स्ट्रैटजी आने वाले भविष्य में इनके लिए कितनी कारगर साबित होती है.
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