नई दिल्लीः मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में गिव इट अप योजना के जरिए करोड़ों लोगों ने अपनी एलपीजी सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ दी और इसके बाद सरकार ने महत्वाकांक्षी उज्जवला योजना की शुरुआत की. इस योजना के जरिए सरकार ने गांव-देहात में रहने वाले लोगों को कुकिंग गैस की सुविधा मुहैया कराई और इसका फायदा उसे चुनावों में भी मिला. इसी तरह अब सरकार रेलवे में सब्सिडी छोड़ने की योजना ला रही है. इसके तहत रेल टिकट बुक करते समय यात्रियों को आंशिक या पूरी तरह सब्सिडी छोड़ने का विकल्प मिलेगा.
हालांकि आपके लिए ये जानना जरूरी है कि गिव इट अप योजना के जरिए सरकार ने कितनी बचत की है.
मार्च 2015 में गिव इट अप एलपीजी सब्सिडी मोदी सरकार के द्वारा लॉन्च की गई योजना थी. इसके जरिए ऐसे ग्राहकों को सब्सिडी छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया गया जो मार्केट रेट पर एलपीजी खरीद सकते हैं और उन्होंने अपनी सब्सिडी छोड़ दी. इस गिव इट अप कैंपेन के तहत करीब 1.04 करोड़ लोगो ने अपनी एलपीजी सब्सिडी छोड़ दी. वित्त वर्ष 2018-19 में सरकार को 2930 करोड़ की बचत हुई. इस तरह सरकारी खजाने में बड़ी रकम आई और सरकार ने 7 करोड़ 34 लाख 92 हजार और 401 गैस कनेक्शन दिए जिसपर करीब 7.34 करोड़ रुपये का खर्च आया.
रेलवे में सब्सिडी छोड़ने के आंकड़े
15 अगस्त 2016 से 31 मार्च 2018 के बीच करीब 48 लाख सीनियर सिटीजन्स ने मिलने वाली छूट को स्वेच्छा से छोड़ा जिसके परिणामस्वरुप रेलवे को करीब 78 करोड़ रुपये की बचत हुई है. फिलहाल पुरुष सीनियर सिटीजन्स को 40 फीसदी जबकि सीनियर सिटीजन्स महिलाओं को 50 फीसदी छूट रेलवे के कुल किराए पर मिलती है.
रेलवे की कुल लागत
इस समय रेलवे की हालत देखें तो भारतीय रेलवे एक टिकट पर इसकी कुल लागत का केवल 53 फीसदी ही यात्रियों से वसूलती है. बाकी बचे 47 फीसदी को यात्रियों को सब्सिडी के तौर पर मिलते हैं और इसके बारे में अब रेलवे टिकट पर लिखा भी हुआ होता है कि यात्री को एक टिकट पर कितनी सब्सिडी मिल रही है. रेलवे को हर साल 50,000 करोड़ रुपये यात्री टिकटों को बेचने से मिलते हैं. अगर गिव इट अप सब्सिडी स्कीम लागू हो जाती है तो वित्त वर्ष 2019-20 में रेलवे को 56,000 करोड़ रुपये की कमाई हो सकती है.
साफ है कि सरकार रेलवे में गिव इट अप स्कीम के जरिए बड़ी कमाई का सपना देख रही है और अगर इससे रेलवे की स्थिति में सुधार आता है तो ये रेलवे के लिए बड़ी अच्छी कवायद होगी.
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