नई दिल्ली: देश की सड़कें पैदल यात्रियों के लिए मौत का कुआं हैं. साल 2017 में देश की सड़कों पर प्रतिदिन 56 लोगों की मौत हुई. मौत की इन घटनाओं में बड़ी वृद्धि भी हुई है. जहां साल 2014 में इन घटनाओं में 12,330 राहगीरों की मौत हुई तो वहीं, पिछले साल 2017 में 20,457 पैदल यात्रियों की मौत देश की सड़कों पर हो गई.
देश की सड़कें सुरक्षा के लिहाज से सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां बचाव के लिए संसाधनों की भारी कमी है. इस तरह की घटनाओं की सूची में साइकिल वालों और बाइक चलाने वालों को भी रखा जाता है और सरकारी आंकड़ें के मुताबिक देश में पिछले साल प्रतिदिन 133 बाइक वालों और 10 साइकिल चलाने वालों की मौत सड़कों पर हुई.
सड़कों पर हो रही मौतों में तमिलनाडु राज्य की स्थिति सबसे खराब है. पिछले साल वहां हर दिन 3,507 मौतें सड़कों पर हुई हैं. तमिलनाडु के बाद महाराष्ट्र में 1,831, आंन्ध्र प्रदेश में 1,379 मौतें इन घटनाओं में हुई हैं. दोपहिए वाहनों से हुई मौतों में भी तमिलनाडु की सबसे खराब स्थिति है. वहां 6,329 लोगों की मौत सड़कों पर, यूपी में 5,699 और महाराष्ट्र में 4,569 लोगों की जानें सड़कों पर तली गई.
पैदल यात्रियों की देश की सड़कों पर बढ़ती मौत की घटनाओं पर हाली ही में परिवहन विभाग के सचिव ने कहा था कि विकसित देशों की तुलना में हमारे देश के गाड़ी चालकों के मन में पैदल यात्रियों के प्रति सम्मान कम है. देश की सड़कों पर गाड़ी पार्क करने और छोटे दुकानदारों के द्वारा अतिक्रमण करने की घटना भी आम हो गई है.
अंतरराष्ट्रीय रोड फेडरेशन के के के कपिला का कहना है कि पैदल यात्रियों की इस तरह सड़कों पर मौत की घटना की स्थिति भारत की ही तरह दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में भी है. इस समस्या का हमें समाधान ढूंढना होगा कि कैसे हम अपनी सड़कों को पैदल यात्रियों के लिए अधिक से अधिक सुरक्षित बना सकें. उन्होंने कहा कि जरूरत ये भी है कि हम पैदल चलने वालों के लिए रोड और बड़े गाड़ियों के लिए बने रोड को अलग-अलग कर दें.
विशेषज्ञों का मानना है कि गाड़ियों में ब्रेक की आधुनिक तकनीक एंटी ब्रैकिंग सिस्टम से भी इस तरह की घटनाओं से हो रही मौतों को कुछ हद तक रोका जा सकता है. उनका कहना है कि यह ब्रेक लगाने पर गाड़ी तुरंत रुक जाती है जिससे इमरजेंसी समय में दुर्घटना से बचा जा सकता है.