भारत और अमेरिका के बीच हुए नए स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस समझौते ने भारतीय उपग्रहों को नया रक्षा कवच दे दिया है. अमेरिका के साथ हुए इस समझौते के सहारे जहां भारत को अंतरिक्ष कचरे से अपने संचार उपग्रहों को बचाने में मदद मिलेगी. वहीं एंटी सेटेलाइट एक्शन से लेकर विदेशी उपग्रहों की अनावश्यक ताक-झांक से बचने के उपाय भी मिल सकेंगे.
भारत और अमेरिका के बीच 2+2 रणनीतिक वार्ता के हाशिए पर भारत के इसरो और अमेरिकी रक्षा विभाग के बीच हुए समझौते पर दस्तखत हुए. सूत्रों के मुताबिक इस समझौते के सहारे भारत को अपने सैटेलाइट सिस्टम्स को स्पेस डेबरीज़ यानि अंतरिक्ष में घूमते कचरे की जानकारी हासिल कारने में मदद मिलेगी. यह कचरा उपग्रह संचार के लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि जानकारी न होने पर यह कचरा सैटेलाइट से टकरा सकता है.
इतना ही नहीं भारतीय सैटेलाइट के करीब ताक-झांक की नीयत से आने वाले विदेशी उपग्रहों के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी. ध्यान रहे कि इसमें खासतौर पर चीनी के टोही उपग्रहों और जासूसी की नीयत से अधिक करीब आने वाले सैटेलाइट के बारे में जनकारी अमेरिका का निगरानी तंत्र भारत से साझा कर सकेगा.
अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने जहां अंतरिक्ष को दोनों देशों की साझेदारी का अहम क्षेत्र करार दिया. वहीं स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस एग्रीमेंट को इस कड़ी का अहम पड़ाव करार दिया. इस बीच ABP न्यूज़ के सवाल पर ऑस्टिन ने कहा, स्पेस और साइबर सुरक्षा जैसे अहम मोर्चो पर अमेरिका जहां अपनी क्षमता बढ़ा रहा है, वहीं अपने अहम साझेदारी देशों की क्षमताओं को मजबूत करने पर ज़ोर दे रहा है.
रक्षा और विदेश मंत्रियों की बातचीत के बाद जारी साझा बयान में भी अंतरिक्ष साझेदारी पर खासा ज़ोर दिया है. संयुक्त बयान के मुताबिक नासा और इसरो मिलकर सिंथेटिक अपर्चर रडार सैटेलाइट विकसित कर रहे हैं. यह सैटेलाइट जलवायु परिवर्तन की निगरानी करेगा. इस उपग्रह को 2023 में लॉन्च किया जाना है.
देश में इतने फीसदी लोगों की मातृभाषा है हिंदी, हर साल हो रहा आंकड़े में इजाफा