चंद्रयान-2 ने कुछ महीने पहले ही सूर्य के आंतरिक भाग की तस्वीर ली थी, अब भारतीय वैज्ञानिकों ने सूर्य के वायुमंडल से विस्फोट के चुबंकीय क्षेत्र का मापा है. हमारे सोलर सिस्टम के सबसे चमकीले तारे सूरज के अंदर के कार्य को अध्ययन करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने इंटरनेशनल वैज्ञानकों के साथ मिलकर सूर्य के अंदर की झलक पाने के लिए अध्ययन किया.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) के वैज्ञानिकों ने पहली बार विस्फोटित प्लाज्मा से जुड़े कमजोर थर्मल रेडियो उत्सर्जन का अध्ययन किया, जो चुंबकीय क्षेत्र और विस्फोट की अन्य भौतिक स्थितियों को मापता है. टीम ने मई 2016 में हुई कोरोनल मास इजेक्शन का अध्ययन किया था.
कोरोनल मास इजेक्शन सूर्य की सतह पर हुए सबसे बड़े विस्फोटों में से एक है. इसमें अंतरिक्ष में कई मिलियन मील प्रति घंटे की गति से एक अरब टन पदार्थ हो सकता है. सूर्य के यह पदार्थ इंटरप्लेनेटरी माध्यम से प्रवाहित होती है, जो किसी भी ग्रह यो अंतरिक्ष यान को प्रभावित करती है. जब एक मजबुत सीएमई धरती के सतह के पास से गुजरती है तो यह हमारे कई इल्कट्रॉनिक्स सैटेलाइट और रेडियो कमनिकेशन को नुकसान पहुंचाती है.
जियोफिजकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि कोरोनल मास इजेक्शन सूर्य के दूर की ओर, लेकिन उसके अंग के पास गतिविधि के कारण हुआ था.
कर्नाटक के गौरीबिदनूर में IIA के रेडियो दूरबीनों की मदद से उत्सर्जन का पता लगाया गया, इसके साथ कुछ स्पेस बेस्ड टेलिस्कोप ने सूर्य के एक्सट्रीम अल्ट्रावॉयलेट और उजरी रौशनी को देखा. इसने शोधकर्ताओं को सीएमई में निकाले गए गैस के ढेर से थर्मल (या ब्लैकबॉडी) विकिरण नामक एक बहुत कमजोर रेडियो उत्सर्जन का पता लगाने की इजाजत दी. वह इस विस्फोट के पोलराइजेशन को मापने में सक्षम थे, जो उस दिशा का संकेत है जिसमें तरंगों के विद्युत और चुंबकीय घटक दोलन करते हैं.
इन सीएमई का आमतौर पर दृश्य प्रकाश में अध्ययन किया जाता है, लेकिन क्योंकि सूर्य की डिस्क इतनी तेज होती है, हम इन सीएमई का पता लगा सकते हैं और उनका पालन तभी कर सकते हैं जब उन्होंने सूर्य की सतह से परे यात्रा की हो। हालांकि, थर्मल उत्सर्जन के रेडियो अवलोकन, हमारे अध्ययन की तरह, हमें सतह से ही सीएमई का अध्ययन करने देता है", अध्ययन के सह-लेखक ए. कुमारी ने कहा.
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