अरे इसे ज्यादा पढ़ाकर क्या करेंगे ? कल को शादी कर दूसरे के घर जाएगी... इस तरह के जुमले कभी न कभी एक लड़की और औरत होने के नाते आपके कानों में भी पड़े ही होंगे. भारतीय समाज का ताना-बाना ही इस कदर बुना हुआ है कि पारंपरिक तौर एक लड़की को पाला-पोसा ही ऐसे जाता है कि आगे चलकर वो एक अच्छी बीवी, मां बन सकें.
बस उनकी जिंदगी का एक अहम मकसद जैसे शादी ही हो. लेकिन धीरे-धीरे अब बदलाव की बयार बहने लगी है. बड़ी संख्या में लड़कियां अब अविवाहित रहने का विकल्प चुनकर अपने अकेले रहने और आजादी की राह चुन रही हैं. वो जैसे कह रही हों सहारा न संग साथ चाहिए हमको बस अपने वजूद की आवाज चाहिए.
सोशल मीडिया पर भी सिंगल रहने का क्रेज सिर चढ़कर बोल रहा है. बकायदा पूरे देश की अकेली महिलाओं को एकजुट करने के लिए फेसबुक पर खास पेज बनने शुरू हो गए हैं. ऐसा ही एक कम्युनिटी पेज है स्टेट्स सिंगल (Status Single) है. ये अर्बन सिंगल औरतों को जोड़ रहा है.
विडो, डिवोर्सी और अनमैरिड नहीं हमारी पहचान
हम औरत है हमें किसी खास पहचान या नाम से नहीं इंसान के तौर पर पहचाना जाए. हमें खुद के सिंगल होने पर फक्र महसूस होना चाहिए. ये कहना है लेखिका और स्टेट्स सिंगल की संस्थापक श्रीमोई पिउ कुंडू का. उनका कहना है कि हमें खुद को विधवा, तलाकशुदा और अविवाहित जैसे तमगे देने बंद करना चाहिए. इस परंपरा को तोड़ा जाना बेहद जरूरी है. वो जोर देकर कहती हैं कि चलो खुद को फक्र से केवल और केवल सिंगल कहें.
कुंडू बताती हैं उनके इस ग्रुप को बनाने का मकसद ही यही है कि अकेले अपनी जिंदगी जी रही महिलाएं किसी भी तरह से खुद को कमतर न आंके. हमारी फेसबुक कम्युनिटी की महिलाओं का गेट टुगेदर होता रहता है. इस ग्रुप की अधिकतर मेंबर्स मिडिल क्लास बैकग्राउंड से हैं. इनमें कुछ पेशे से टीचर, डॉक्टर, वकील, पेशेवर, उद्यमी, एक्टिविस्ट, लेखक और पत्रकार हैं.
कुछ शादी के बाद अलग रह रही, कुछ तलाकशुदा और विधवा हैं तो किसी ने कभी शादी ही नहीं की है. एक ऐसे देश में जो शादी को लेकर जुनूनी हो और लड़कियों का अविवाहित रहना जहां अभी भी कई मुश्किलों से घिरा हो, वहां इस तरह के समुदाय अकेले रहने वाली महिलाओं के हौसले बुलंद कर रहे हैं.
बढ़ रही सिंगल महिलाओं की आबादी
गुरुग्राम में 37 साल की ग्राफिक डिजाइनर पिंकी कहती हैं कि वो अभी शादी नहीं करना चाहती. लेकिन परिवार की तरफ से उन पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है. उनका कहना है कि जाने समाज और परिवार को ये क्यों लगता है कि शादी के बाद ही कोई महिला और लड़की सशक्त होगी. खुद के पैरों पर खड़ी एक लड़की अपनी जिंदगी अकेले जीने के लायक है समाज इस बात को पचा नहीं पाता है. उनका कहना है कि परिवार या फिर किसी भी फंक्शन में जाओ सबका एक ही सवाल होता है शादी कब कर रही हो?
पति की मौत के बाद अकेले दो बच्चों को पाल रहीं अंकिता कहती है कि बड़ा खराब लगता है जब लोग उन्हें बार-बार ये एहसास दिलाते हैं कि वो विधवा हैं. एक तरह से छुपे तौर पर उनका इशारा होता है कि विधवा है कैसे अकेली रह पाएगी. वह बताती है कि पति की मौत के बाद जब वो अपना शहर छोड़कर दूसरे शहर में पति की कंपनी में नौकरी करने जा रही थी तब बाहर वाले तो बाहर वाले उनके परिवार के लोगों ने भी उनका हौसला तोड़ा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज अपने दोनों बच्चों के साथ बेहतरीन जिंदगी गुजार रही हैं.
पेशे से टीचर शिवानी कहती हैं कि तलाकशुदा और अकेले रहना कोई पाप तो नहीं न, लेकिन लोग नजरों ही नजरों में ऐसे सवाल करते हैं कि लगता है जैसे आपने गुनाह कर डाला हो. कुछ अच्छा पहन लो. थोड़ा सा किसी से हंस के बात कर लो तो पूरे सोयाइटी में बातों का गुबार उठने लगता है. वह कहती हैं कि जरूरी नहीं कि तलाक के बाद दोबारा शादी ही आखिरी विकल्प हो. अकेले भी रहा जा सकता है.
पेशे से पत्रकार रामेश्वरी कहती हैं कि जब वो 12 साल पहली बार ट्रांसफर होकर नोएडा आई थीं तो उन्हें किराए का रूम ढूंढना लोहे के चने चबाने सा लगा था. कोई भी उन्हें किराए पर कमरा देने को राजी नहीं था, लेकिन अब माहौल धीरे-धीरे बदल रहा है. वहीं 70 साल की रिटायर्ड अधिकारी अविवाहित सुलेखा कहती हैं कि उनके दौर में एक लड़की का सिंगल रहना बेहद मुश्किल भरा था. अब वक्त बदल रहा है और सिंगल रहने वाली औरतों की तादाद में इजाफा हो रहा है. ये एक अच्छा संकेत है.
वह कहती हैं कि भले ही अभी सिंगल रहने वाली महिलाओं की तादाद कम हो, लेकिन बूंद-बूंद से ही तो घड़ा भरता है. उनका कहना है कि 50 के दशक में पारंपरिक तौर से सभी बातचीत पुरुष केंद्रित होती. घर में भाईयों तो शादी के बाद पति के करियर और बच्चों पर बात होती थी, लेकिन अब दौर बदल रहा है. अब लड़कियों और औरतों के करियर की तरफ भी बातचीत का रुख मुड़ा है.
आर्थिक अवसरों की बन रही तस्वीर
शहरों में रहने वाली अमीर महिलाओं को बाजार भी आर्थिक अवसरों की तरह ले रहा है. यही वजह है कि बैंक, ज्यूलरी मेकर्स ट्रैवल एजेंसियां उन्हें लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं. कई प्रोडेक्ट्स के विज्ञापन तक उन्हें आकर्षित करने की थीम वाले होते हैं. इतना ही नहीं बॉलीवुड भी इस सिंगलनेस को पर्दे पर उतारने से गुरेज नहीं कर रहा है.
बॉलीवुड फिल्म क्वीन,पीकू जैसी फिल्में इसी वर्ग को ध्यान में रहकर बनाई गई हैं और इन फिल्मों ने अच्छा पैसा बनाया. क्वीन फिल्म ने तो साफ संदेश दिया कि महिलाओं की इच्छाएं पुरुषों की मोहताज नहीं हैं. पीकू में दीपिका पादुकोण के किरदार ने साबित कर दिया कि बगैर शादी के भी लड़की रह सकती है.
अविवाहित औरतों के हक में अक्टूबर 2022 का सुप्रीम कोर्ट का सुनाया फैसला भी रहा, जिसमें शादीशुदा औरतों की तरह ही अविवाहित औरतों को भी गर्भपात का हक दिया गया. इसके बावजूद अभी भी अकेली महिलाओं के लिए समाज का रवैया सख्त ही है, फिर चाहे वो बेहद अमीर सिंगल महिला हो या मिडिल क्लास.
पितृसत्तात्मक समाज है बना हुआ
स्टेट्स सिंगल की संस्थापक श्रीमोई कुंडू कहती हैं कि भारत में बड़े पैमाने पर पितृसत्तात्मक समाज अब भी बना हुआ है. आज भी 90 फीसदी शादियां परिवार की मर्जी से तय होती हैं. इस मामले में कुछ कहने या अपनी राय जाहिर करने का हक लड़कियों को कम ही मिलता है. कम ही होता है कि उनकी पसंद पूछी जाए या उनकी पसंद से उनकी शादी की जाए. भारत के गांवों में आज भी अविवाहित महिलाओं को अक्सर उनके परिवार एक बोझ की तरह लेते हैं. वहां अविवाहित रहने वाली लड़कियों की संख्या भी न के बराबर होती है. विधवाओं को रहने के लिए वृंदावन और वाराणसी जैसे पवित्र शहरों में भेज दिया जाता है.
जारी है सिंगल शेमिंग
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में अविवाहित महिलाओं की आबादी 71.4 मिलियन है. इनमें अविवाहित, तलाकशुदा और विधवा सभी शामिल हैं. साल 2001 के 52.2 मिलियन के मुकाबले इसमें साल 2011 में इसमें 39 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी. ये ब्रिटेन या फ्रांस की पूरी आबादी से भी बड़ी संख्या है. श्रीमोई कहती हैं कि इसके बावजूद महिलाओं का अकेला या सिंगल रहना समाज पचा नहीं पाता.
उनका कहना है कि सिंगल शेमिंग का उस देश में कोई मतलब नहीं है यहां सिंगल महिलाओं की इतनी अधिक आबादी हो. वो कहती हैं कि 2021 की जनगणना में कोविड-19 महामारी की वजह से देरी हुई है, लेकिन अब तक सिंगल महिलाओं की संख्या 100 मिलियन को पार कर गई होगी.
वो कहती हैं कि सिंगल आबादी में हुई कुछ बढ़ोतरी को ऐसे समझा जा सकता है कि देश में शादी करने की उम्र बढ़ गई है. इसका मतलब किशोरावस्था के आखिर तक या 20 वर्ष की शुरुआत में बड़ी संख्या में अकेली महिलाओं के होने से लिया जा सकता है. इसमें बड़ी संख्या में विधवाओं का होना ये सही साबित करता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक वक्त तक जीवित रहती हैं.