भारत की जियो-स्ट्रेटेजिक सैटेलाइट भी सेनाओं की सभी जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही हैं. ये खुलासा किया है भारतीय वायुसेना के वाइस चीफ, एयर मार्शल वी आर चौधरी ने. सह-वायु‌सेना प्रमुख (वाइस चीफ) के मुताबिक, भारत में पूरा स्पेस इको-सिस्टम 'सिविल' प्रणाली का है. इसमें मिलिट्री-भागीदारी की कमी है.


ऐसे में देश में सशस्त्र सेनाओं के लिए नेक्सट-जेनरेशन स्पेस टेक्नोलॉजी का अभाव है. सह-वायु‌सेना प्रमुख (वाइस चीफ), एयर मार्शल वी आर चौधरी मंगलवार को राजधानी दिल्ली में 'स्पेस टेक्नोलॉजी एंड मिलिट्री एप्लीकेशन' नाम के एक वेबिनार को संबोधित कर रहे थे. इस वेबिनार का आयोजन फिक्की यानि फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने किया था.


20 सैटेलाइट्स में से 08 का सैन्य-इस्तेमाल किया जा रहा


एयर मार्शल चौधरी के मुताबिक, पहली बार भारत को मिलिट्री सैटेलाइट्स की कमी करगिल युद्ध के बाद लगी थी. यही वजह है कि इस समय इंडियन स्पे‌स रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) की कुल 20 सैटेलाइट्स में से 08 का सैन्य-इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन ये सभी जियो-स्ट्रेटेजिक सैटेलाइट्स के अगले संस्करण में आने में कभी-कभी चार साल का लंबा समय लग जाता है. यही वजह है कि ये सैटेलाइट्स सशस्त्र सेनाओं की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती हैं.


वाइस चीफ ने इसरो के इंडियन रिजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम यानि आईआरएनएसएस के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि इससे सेना के मिलिट्री-ऑपरेशन्स 'कॉम्प्रेमाइज़' नहीं होने चाहिए. सह-वायुसेना प्रमुख के मुताबिक, देश में हाल में स्थापित 'डिफेंस साइबर एजेंसी' सश‌स्त्र सेनाओं की इन कमियों को पूरा करने में मददगार साबित हो सकती है. डिफेंस साइबर एजेंसी एक ट्राइ-सर्विस एजेंसी है जिसमें थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों की भागीदारी है, लेकिन उसकी कमान एयरफोर्स के पास है. इसका मुख्यालय बेंगलुरू में है.


5 और मिलिट्री सैटेलाइट लॉन्च करने जा रही हैं


वाइस चीफ ने बताया कि निकट भविष्य में इसरो सशस्त्र सेनाओं के लिए 05 और मिलिट्री सैटेलाइट लॉन्च करने जा रही हैं. उन्होनें कहा कि इस समय वायुसेना का कमान एंड कंट्रोल सिस्टम हो या एवैक्स टोही विमान सभी सैटेलाइट से जुड़े हैं. लेकिन उन्होनें कहा कि अभी भी एयर और स्पेस के पूरी तरह 'इंटीग्रेट' होने की सख्त जरूरत है.


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