नई दिल्ली: टाटा ट्रस्ट और विभिन्न एनजीओ द्वारा संकलित आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर पूरे देश में लोगों को न्याय दिलाने में महाराष्ट्र सबसे टॉप पर है. वहीं आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश न्याय दिलाने में सबसे खराब राज्य है. सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा और सूचना का उपयोग करके मानव संसाधन, कार्यभार, विविधता और बुनियादी ढांचे में रुझानों का विश्लेषण करने वाली रिपोर्ट बताती है कि 29 राज्यों में से केवल आधे ने पुलिस, न्यायपालिका और जेलों में रिक्तियों को कम करने का प्रयास किया है. मालूम हो कि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है.


न्याय प्रदान करने की क्षमता के आधार पर राज्यों की रैंकिंग से पता चलता है कि महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु और पंजाब बड़े राज्यों में शीर्ष प्रदर्शन करते हैं जबकि गोवा, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश छोटे राज्यों के बीच सम्मानजनक स्थिति में हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड की बड़े राज्यों में सबसे कम रैंकिंग है, जबकि अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिज़ोरम की छोटे राज्यों में खराब रैंकिंग है. रिपोर्ट से पता चलता है कि 2017 में केवल 7% फोर्स का गठन करते हुए महिलाओं को पुलिस में खराब प्रतिनिधित्व दिया गया है.


उच्च स्तर पर हैं पदों को लेकर रिक्तियां


रिपोर्ट के मुताबिक न्यायिक प्रणाली में पदों को लेकर रिक्तियां भी उच्च स्तर पर हैं. पुलिस विभाग में 22%, जेलों में 33-38.5% और न्यायपालिका में 20-40% तक की रिक्तियां हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जेलों में क्षमता से अधिक लोग हैं और 68% बंदी ऐसे हैं जो जांच, पूछताछ या ट्रायल का इंतजार कर रहे हैं.


कानूनी सहायता प्रणाली यह कहती है कि 80% भारतीय आबादी मुफ्त कानूनी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए पात्र है. लेकिन दुर्भाग्य से 1.25 बिलियन की आबादी में से केवल 15 मिलियन ही 1995 से इसका लाभ उठा पाए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च 2017-18 में सिर्फ 0.75 पैसे था. पंजाब एकमात्र बड़ा राज्य है जहां पुलिस, जेल और न्यायपालिका का खर्च अन्य राज्यों के कुल खर्च की तुलना में तेजी से बढ़ा है.


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