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INS Vikrant: दुश्मन के छक्के छुड़ाने की है ताकत, 2 सितंबर को पीएम मोदी देश को करेंगे समर्पित

India First Aircraft Carrier INS Vikrant: आईएनएस विक्रांत को बनाने में पिछले 13 सालों से करीब 2000 इंजीनियर, वर्कर्स और टेक्निशियन्स की टीम दिन-रात जुटी थी.

Indigenous Aircraft Carrier INS Vikrant: देश के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) के भारतीय नौसेना (Indian Navy) के जंगी बेड़े में शामिल होने के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) भी मौजूद रहेंगे. केरल के कोच्चि में 2 सितंबर को आईएनएस विक्रांत की कमीशनिंग के वक्त पीएम मुख्य अतिथि होंगे. भारतीय नौसेना ने इस बात का ऐलान खुद गुरुवार को राजधानी दिल्ली में किया.

आईएनएस विक्रांत की कर्टन रेजर प्रेंस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए भारतीय नौसेना के वाइस चीफ (सह-प्रमुख), वाइस एडमिरल एस एन घोरमडे ने बताया कि 2 सितंबर को ऐतिहासिक दिन है. भारत दुनिया के उन छह चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जो 40 हजार टन का एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की क्षमता रखते हैं. बाकी पांच देश हैं अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और इंग्लैंड. वाइस एडमिरल के मुताबिक, आईएनएस विक्रांत के भारत के जंगी बेड़े में शामिल होने से इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने में मदद मिलेगी.

विक्रांत पर 30 एयरक्राफ्ट तैनात होंगे

वाइस एडमिरल ने बताया कि विक्रांत पर 30 एयरक्राफ्ट तैनात होंगे, जिनमें 20 लड़ाकू विमान (Fighter Plane) होंगे और 10 हेलीकॉप्टर होंगे. उन्होंने बताया कि फिलहाल विक्रांत पर मिग-29के फाइटर जेट तैनात होंगे और उसके बाद डीआरडीओ (DRDO) और एचएएल (HAL) द्वारा टीईडीबीएफ यानि टूइन इंजन डेक बेस्ड फाइटर जेट तैनात होंगे. क्योंकि टीईडीबीएफ के पूरी तरह से तैयार होने में कुछ साल लग सकते हैं इसलिए इस बीच में अमेरिका का एफ-18ए सुपर होरनेट या फिर फ्रांस के रफाल (एम) को तैनात किया जा सकता है. इन दोनों फाइटर जेट के ट्रायल शुरु हो चुके हैं और फाइनल रिपोर्ट आने के बाद तय किया जाएगा कि कौन सा लड़ाकू विमान तैनात किया जाएगा. वाइस चीफ घोरमडे ने बताया कि इस साल नवंबर के महीने से मिग-29 के फाइटर जेट विक्रांत पर तैनात होने शुरु हो जाएंगे.

दरअसल, किसी भी विमान-वाहक युद्धपोत की ताकत होती है उसपर तैनात किए जाने वाले लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर. समंदर में एयरक्राफ्ट कैरियर एक फ्लोटिंग एयरफील्ड के तौर पर काम करता है. उसपर तैनात फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर कई सौ मील दूर तक समंदर की निगरानी और सुरक्षा करते हैं. दुश्मन का कोई युद्धपोत तो क्या पनडुब्बी तक भी उसके आसपास फटकने की जुर्रत नहीं करती है. विक्रांत की टॉप स्पीड 28 नॉट्स है और ये एक बार में 7500 नॉटिकल मील की दूरी तय कर सकता है यानि एक बार में भारत से निकलकर ब्राजील तक पहुंच सकता है. इस पर तैनात फाइटर जेट्स भी एक-दो हजार मील की दूरी तय कर सकते हैं.

दुश्मन की पनडुब्बियों पर खास नजर

विक्रांत पर जो रोटरी विंग एयरक्राफ्ट्स होंगे, उनमें छह एंटी-सबमरीन हेलीकॉप्टर्स होंगे, जो दुश्मन की पनडुब्बियों (Submarines) पर खास नजर रखेंगे. भारत ने हाल ही में अमेरिका से ऐसे 24 मल्टी-मिशन हेलीकॉप्टर, एमएच-60आर यानि रोमियो हेलीकॉप्टर का सौदा किया है. इनमें से दो (02) रोमियो हेलीकॉप्टर भारत को मिल भी गए हैं. इसके अलावा दो टोही हेलीकॉप्टर और दो ही सर्च एंड रेस्कयू मिशन में इ‌स्तेमाल किए जाने वाले होंगे.

भारतीय नौसेना के विक्रांत एयरक्राफ्ट कैरियर के फ्लाई-डेक यानि रनवे को स्कीइंग तकनीक पर तैयार किया गया है. इस तकनीक को शॉर्ट टेकऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी यानि स्टोबार भी कहा जाता है. इसके मायने ये है कि छोटे रनवे से स्कीइंग के जरिए टेकऑफ. क्योंकि इसका रनवे मात्र 250 मीटर का है. इसलिए इस पर अरेस्टेड रिकवरी तकनीक से फाइटर जेट्स को लैंड कराया जाएगा. विक्रांत पर तैनात कुल 30 एयरक्राफ्ट्स में से 10 एक समय में फ्लाइट-डेक पर होंगे और बाकी 20 विक्रांत में ही बने एक बड़े से हैंगर में होंगे. हैंगर से फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर्स को फ्लाईट-डेक तक लाने के लिए दो विशालनुमा लिफ्ट बनाई गई हैं. विक्रांत पर 32 मीडियम रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल (एमआरसैम) और एके630 गन (तोप) भी तैनात होंगी.

दो फुटबॉल ग्राउंड से भी बड़ा रनवे

किसी भी एयरक्राफ्ट कैरियर की ताकत उसका फ्लाइट-डेक होता है यानि उसका रनवे. विक्रांत का रनवे करीब 262 मीटर लंबा है, यानि दो फुटबॉल ग्राउंड से भी बड़ा. भारतीय नौसेना के मुताबिक विक्रांत के रनवे पर ओलंपिक के 10 स्विमिंग-पूल बनाए जा सकते हैं. आईएनएस विक्रांत की चौड़ाई है करीब 62 मीटर और ऊंचाई है 50 मीटर. 

स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत का मोटो यानि आदर्श वाक्य है, 'जयेम सम युधि स्पृधा:'. ऋगवेद से लिए गए इस सूक्ति का अर्थ है अगर कोई मुझसे लड़ने आया तो मैं उसे परास्त करके रहूंगा. इस‌ नए विक्रांत को भारतीय नौसेना के रिटायर हो चुके एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत के नाम पर ही नामकरण किया गया है, जिसने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर विजय में एक अहम भूमिका निभाई थी.

भारत को दो एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत

भारत (India) को कम से कम दो एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत इसलिए है, क्योंकि देश की करीब सात हजार किलोमीटर लंबी समुद्री सीमाएं दो तरफा हैं. एक है पूर्व में बंगाल की खाड़ी से सटी और दूसरी है पश्चिम में अरब सागर से सटी. ऐसे में भारत को दो अलग-अलग मोर्चों पर दो विमान-वाहक युद्धपोत की जरूरत थी. इसके अलावा हिंद महासागर में भारत का करीब 23 लाख वर्ग मील का स्पेशल ईकनोमिक जोन है, उसकी सुरक्षा करने के लिए भारत को दो एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है. हाल ही में भारत का आईएनएस विराट एयरक्राफ्ट कैरियर भी डिकमीशन यानि रिटायर हो गया था. ऐसे में भारतीय नौसेना के पास फिलहाल आईएनएस विक्रमादित्य एयरक्राफ्ट कैरियर है जो भारत ने रूस से वर्ष 2013 में लिया था.

भारतीय नौसेना को आईएनएस विक्रांत की इसलिए भी जरूरत है, क्योंकि एलएसी पर चीन से चल रहे विवाद का असर हिंद महासागर में भी देखने को मिल रहा है. चीन के युद्धपोत और पनडुब्बियों की गतिविधियां इंडिसन ओसियन रीजन में काफी बढ़ गई हैं. ऐसे में दुश्मनों की गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए विक्रांत की सख्त जरूरत है. विक्रांत जब भारत के जंगी बेड़े में शामिल होकर समंदर में तैनात होगा तो उसके साथ कई और युद्धपोत भी ऑपरेट करेंगे. विक्रांत एक कैरियर बैटल ग्रुप यानि सीबीजी के तौर पर भारत की समुद्री सीमाओं के पार जाकर भारत का 'पावर प्रोजेक्शन' भी करेगा.

विक्रांत का निर्माण इतना आसान नहीं था

गुरूवार को नौसेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजदू कोचिन शिपयार्ड के सीएमडी, मधु नायर ने एबीपी न्यूज से खास बातचीत में बताया कि एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत का निर्माण भारत के लिए एक ऐतिहासिक और गर्व करने वाला पल है, क्योंकि भारत उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके पास ऐसी बेहतरीन तकनीक है, जो स्टेट ऑफ द आर्ट विमान-वाहक युद्धपोत के डिजाइन से लेकर निर्माण करने और उसे हथियारों तक से लैस कर सकता है. स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, विक्रांत का निर्माण कोचिन-शिपयार्ड ने किया है, जबकि विक्रांत का डिजाइन नौसेना के नेवल डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है. 

मधु नायर के मुताबिक, विक्रांत का निर्माण इतना आसान नहीं था. नौसेना के मुताबिक, कोविड महामारी की चुनौतियों के बावजूद कोचिन शिपयार्ड ने सी-ट्रायल को शुरू कर एक मील का पत्थर हासिल किया है. आपको बता दें कि मौजूदा विमान-वाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत अपने तय-समय से पीछे चल रहा है. वर्ष 2009 में विक्रांत का निर्माण-कार्य शुरू हुआ था और वर्ष 2013 में पहली बार समंदर में 'लॉन्च' किया गया था. विक्रांत में 76 प्रतिशत स्वदेशी उपकरण लगे हैं. इसके लिए खासतौर से स्टील अथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने ऐसी स्टील तैयार की है जिसपर जंग नहीं लग सकती है.

13 सालों इस टीम ने किया तैयार

स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर में करीब ढाई हजार किलोमीटर लंबी इलेक्ट्रिक केबिल लगी है. यानि अगर इसमें लगी केबिल को बिछाया जाए तो वो कोच्चि से दिल्ली तक पहुंच सकती है. विक्रांत में 150 किलोमीटर लंबे पाइप और 2000 वॉल्व लगे हैं.  पिछले 13 सालों से करीब 2000 इंजीनियर, वर्कर्स और टेक्निशियन्स की टीम इसे बनाने में दिन-रात जुटी थी. इसके अलावा कम्युनिकेशन सिस्टम, नेटवर्क सिस्टम, शिप डाटा नेटवर्क, गन्स, कॉम्बेट मैनेजमेंट सिस्टम इत्यादि सब स्वदेशी है. विक्रांत को बनाने में करीब 20 हजार करोड़ का खर्चा आया है. कोचिन शिपयार्ड के सीएमडी के मुताबिक, विक्रांत को बनाने से कोचिन शिपयार्ड से जुड़ी 50 से ज्यादा भारतीय कंपनियां और करीब 40 हजार लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिल पाया.

आईएनएस विक्रांत करीब 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है. इसमें 14 डेक यानि फ्लोर हैं और 2300 कपार्टमेंट हैं. इसपर 1700 नौसैनिक तैनात किए जा सकते हैं. महिला अधिकारियों और महिला अग्निवीरों के लिए स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर में खास व्यवस्था की गई है. यानि यहां महिला नौसैनिकों को भी तैनात किया जा सकता है. सी-ट्रायल के दौरान इस पर छह महिला ऑफिसर तैनात थी. नौसेना के मुताबिक, विक्रांत की किचन में एक दिन में 4800 लोगों का खाना तैयार किया जा सकता है और एक दिन में 10 हजार चपाती यानि रोटियां सेंकी जा सकती हैं.

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