भारत का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विक्रांत लगभग तैयार है. आज विक्रांत पांच दिन के समुद्री-ट्रायल के बाद कोच्चि हार्बर वापस लौट आया. भारत का स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, विक्रांत अगले साल यानि 2022 तक भारतीय नौसेना की जंगी बेड़े में शामिल हो जाएगा.
रविवार को विक्रांत पांच दिन के समुद्री-ट्रायल के बाद कोच्चि हार्बर वापस लौट आया. पहले समुद्री-ट्रायल सफल होने पर नौसेना ने बयान जारी कर बताया कि अगले कुछ महीनों तक विक्रांत के कुछ और परीक्षण किए जाएंगे. परीक्षण पूरे होने के बाद अगले साल यानि साल 2022 में जब देश आजादी के 75 साल मनाएगा तब विक्रांत भी नौसेना कै जंगी बेड़े में शामिल हो जाएगा.
आईएनएस विक्रांत पहली बार 4 अगस्त को कोच्चि स्थित बेसिन से निकलकर अरब सागर में परीक्षण के लिए गया था. इन पांच दिनों में उस पर एएलएच और दूसरे हेलीकॉप्टर के ऑपरेशन्स के परीक्षण किए गए.
बुधवार को भारतीय नौसेना ने बयान जारी कर बताया था कि ये ऐतिहासिक और गर्व करने वाला दिन है जब भारत उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है जिनके पास ऐसी बेहतरीन तकनीक है जो स्टेट ऑफ द आर्ट विमान-वाहक युद्धपोत के डिजाइन से लेकर निर्माण करने और उसे हथियारों तक से लैस कर सकता है. नौसेना के मुताबिक, 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' का भी ये एक नायाब नमूना है. क्योंकि विक्रांत देश का अबतक का सबसे बड़ा युद्धपोत है, जिेसेका निर्माण खुद भारत ने ही किया है.
स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, विक्रांत का निर्माण कोचिन-शिपयार्ड ने किया है. नौसेना के मुताबिक, कोविड महामारी की चुनौतियों के बावजूद कोचिन शिपयार्ड ने सी-ट्रायल को शुरू कर एक मील का पत्थर हासिल किया है. स्वदेशी विमान-वाहक युद्धपोत को उसी आईएनएस विक्रांत का नाम दिया है, जिसने 1971 के जंग में पाकिस्तान के खिलाफ विजय में एक अहम भूमिका निभाई थी.
आपको बता दें कि मौजूदा विमान-वाहक युद्धपोत. आईएनएस विक्रांत अपने तय-समय से पीछे चल रहा है. वर्ष 2009 में विक्रांत का निर्माण-कार्य शुरू हुआ था और वर्ष 2013 में पहली बार समंदर में 'लॉन्च' किया गया था. विक्रांत में 75 प्रतिशत स्वदेशी उपकरण लगे हैं. इसके लिए खासतौर से स्टील अथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने ऐसी स्टील तैयार की है जिसपर जंग नहीं लग सकती है. इसके लिए करीब 2300 टन की खास तरह की स्टील तैयार की गई है.
गौरतलब है कि वर्ष 2013 में एबीपी न्यूज ने सेल के प्लांट में बनने वाली खास स्टील और कोच्चि में विक्रांत के लॉन्च होने पर विशेष कवरेज की थी. स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर में करीब 2500 किलोमीटर लंबी इलेक्ट्रिक केबिल लगी हैं और 150 किलोमीटर लंबे पाइप और 2000 वॉल्व लगे हैं. पिछले 11 सालों से करीब 2000 इंजीनियर, वर्कर्स और टेक्निशियन्स की टीम इसे बनाने में दिन-रात जुटी हैं. इसके अलावा कम्युनिकेशन सिस्टम, नेटवर्क सिस्टम, शिप डाटा नेटवर्क, गन्स, कॉम्बेट मैनेजमेंट सिस्टम इत्यादि सब स्वदेशी है. विक्रांत को बनाने में करीब 20 हजार करोड़ का खर्चा आएगा. विक्रांत को बनाने से 50 से ज्यादा भारतीय कंपनियां और करीब 40 हजार अप्रत्यक्ष रोजगार मिल पाया है.