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'गरीबी हटाओ' से लेकर 'कोई भूखा नहीं सोएगा' : 52 साल में बदले 12 पीएम, इंदिरा से मोदी तक सियासी मोहरा बना गरीब?

इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक 52 साल में 12 प्रधानमंत्री बदल गए, लेकिन गरीब सियासी मोहरा ही बनकर रह गया. आंकड़ों की बाजीगरी में कभी गरीबी कम हो जाती है, तो कभी बढ़ जाती है.

साल था 1971..., चुनावी सरगर्मी के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया. इंदिरा का यह स्लोगन इतना लोकप्रिय हुआ कि वो एक मजबूत प्रधानमंत्री बन गईं.

साल 2023. संसद में बजट पेश करते हुए मोदी सरकार के वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार का एक ही लक्ष्य है- देश में कोई भी गरीब भूखा नहीं सोए. दरअसल, इस स्लोगन के जरिए सरकार 80 करोड़ लोगों को एक साथ साधना चाहती है. 

इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक. 52 साल के इस सियासी सफर में भारत को 12 प्रधानमंत्री मिले लेकिन गरीबी और भूख का मुद्दा जस का तस है. सभी प्रधानमंत्रियों ने गरीबी हटाने के पुरजोर दावे किए, लेकिन देश में गरीबी कितना हटी ये आंकड़ों तक ही सीमित है.

2022 के ग्लोबल हंगर इडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक भुखमरी के मामलों में भारत दुनिया के 121 देशों में 107वें नंबर पर है. हालांकि आंकड़ों को सरकार ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है.  

ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. 2011 में भी हंगर इंडेक्स के दावों को सरकार ने खारिज कर दिया था. देश में चुनावी मुद्दा बन चुकी गरीबी बजट आने के बाद एक बार फिर सुर्खियों में है. 

पहले जानते हैं 1971 में गरीबी क आंकड़ा क्या था?
1971 के जनगणना के मुताबिक भारत में उस वक्त करीब 54 करोड़ आबादी थी, जिसमें से 57% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे. देश में 66 फीसदी लोग अनपढ़ थे. ग्रामीण से ज्यादा शहरी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही थी. 

1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध की वजह से अनाज की भारी कमी हो गई थी, जिससे कुपोषण के मामलों में भी बढ़ गए थे.  

अब गरीबी का आंकड़ा क्या है?
साल 2020 में संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूएनडीपी ने एक रिपोर्ट जारी की थी. रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल 135 करोड़ आबादी में से 22 करोड़ लोग अब भी गरीबी रेखा के नीचे हैं. दुनिया में गरीबों की संख्या मामले में भारत का स्थान सबसे ऊपर है. हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में पिछले 20 साल में 40 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले. 

लेकिन कोरोना काल के बाद 2022 में आई ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) की सूची ने फिर से सरकार की टेंशन बढ़ा दी. भुखमरी मामले में भारत का स्थान 121 देशों में 107वें नंबर पर था. रिपोर्ट में कहा गया कि कोरोना के बाद 5 करोड़ 60 लाख भारतीय फिर से गरीबी रेखा ने नीचे आ गए. 

गरीब कौन हैं?
बुनियादी जरूरतों को अपनी कमाई से पूरा नहीं कर पाने वाले लोग या समूह गरीबी रेखा के नीचे आते हैं. इसको लेकर दुनियाभर के अलग-अलग देशों में अलग-अलग मापदंड तैयार किए गए हैं. विश्व बैंक के मुताबिक रोजाना करीब 130 रुपए नहीं कमाने वाले लोग गरीबी रेखा के नीचे आते हैं. 

वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम ने गरीबी का 4 पैमाना बताया है, जिसे पूरा नहीं कर पाने वाले लोगों को गरीब माना गया है. 
1. गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की उपलब्धता
2. टेक्नोलॉजी तक पहुंच
3. काम के अवसर, सैलरी और काम का ढंग
4. सामाजिक सुरक्षा

गरीबी कैसे बनता गया सियासी मुद्दा?
राजनीति मझधार में फंसी इंदिरा को गरीबों ने दी संजीवनी
1970 आते-आते इंदिरा गांधी के खिलाफ कांग्रेस के पुराने नेताओं ने मोर्चा खोल दिया था. के कामराज, मोरारजी देसाई जैसे नेताओं ने मिलकर अलग से कांग्रेस बना ली. 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के पुराने नेताओं के बीच कांटे की लड़ाई चल रही थी. 

इसी बीच एक रैली में इंदिरा ने कहा, 'वे (पुराने नेता) कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ'. इंदिरा का गरीबी हटाओ का स्लोगन काम कर गया और लोकसभा की 518 में से 352 सीटों पर इंदिरा कांग्रेस की जीत हुई. 

कालेधन के खिलाफ मोरारजी सरकार ने किया था स्ट्राइक
1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद मोरारजी देसाई की सरकार बनी. देसाई ने कालाधन खत्म करने के लिए नोटबंदी की और 1000, 5000 और 10000 के नोट बंद करने के आदेश दे दिए. 

नोटबंदी का ज्यादा असर तो नहीं हुआ, लेकिन मोरारजी देसाई की सरकार जल्द ही गिर गई. मोरारजी के बाद चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन वे भी ज्यादा दिनों तक पद पर नहीं रहे.

घुसखोरी को राजीव गांधी ने मुद्दा बनाया
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को कांग्रेस और देश की बागडोर मिली. राजीव प्रधानमंत्री बनने के बाद कई क्रांतिकारी फैसले लिए, जिसमें इनफॉर्मेशन टेक्नॉलोजी प्रमुख था.

राजीव ने घुसखोरी को बड़ा मुद्दा बनाया और कहा कि सरकार 100 रुपए भेजती तो आम लोगों के पास 19 रुपए ही पहुंचता है. राजीव का यह भाषण खूब लोकप्रिय हुआ और कई राज्यों में कांग्रेस को इसका फायदा भी मिला. 

मंडल-कमंडल के बीच राव का उदारीकरण नीति
1990 के शुरुआती दौर में भारत राजनीतिक स्थितरता से गुजर रहा था. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की सरकार बनी और नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने. 

मंडल-कमंडल के इस दौर में भारत का विदेशी खजाना पूरी तरह खाली होने के कगार पर था. राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी. सिंह उदारीकरण की नीति लेकर आए, जिससे भारत आर्थिक कंगाल होने से बच गया.

नरसिम्हा राव सरकार ने मिड-डे मिल जैसी योजना की शुरुआत की. इसमें प्राथमिक वर्ग के बच्चों को स्कूल में एक समय का भोजन दिया जाता था. 

अटल बिहारी का अंत्योदय योजना
1999 में सियासी उठापटक के बाद अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने. गरीबी के आंकड़ों में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं आया था. अटल सरकार ने गरीबों को राहत देने के लिए अंत्योदय अन्न, ग्रामोदय और रोजगार जैसी कई योजनाएं शुरू कीे. 

इन योजनाओं का धरातल पर जरूर कुछ प्रभाव दिखा, लेकिन गरीबों की संख्या में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ. 1993 में भारत में जहां 45 फीसदी लोग गरीब थे, वहीं 2004 में यह आंकड़ा 37 फीसदी के पास पहुंच गया. 

मनमोहन सिंह और मनरेगा
2004 में कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने के बाद मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. सिंह ने गरीबी हटाने के लिए मनरेगा योजना की शुरुआत की. इस स्कीम के तहत ग्रामीण लोगों को साल में 100 दिन का निश्चित रोजगार देने की बात कही गई. 

मनमोहन सरकार की यह योजना खूब लोकप्रिय हुई और 2009 में दोबारा चुनाव जीतने भी मददगार साबित हुई. 2013 में मनमोहन सरकार फूड सिक्योरिटी कानून लाई इसके तहत 80 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा के तहत कम दाम पर 5 किलो अनाज देने की घोषणा की गई.

गरीब और गरीबी को मुद्दा बनाकर आई मोदी सरकार
2014 में बीजेपी गरीबी और महंगाई को मुद्दा बनाकर केंद्र की सत्ता में आई. 2014 के चुनावी रैलियों में पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी खुद को गरीब का बेटा बताते रहे. 

सत्ता में आने के बाद शुरुआती सालों में गरीबी हटाने के लिए कई दावे किए गए. मसलन- 2022 तक सबको आवास और किसानों की दोगुनी आय करने की घोषणा. 

लेकिन 2022 जाते-जाते सरकार बैकफुट पर आ गई. सरकार ने अब फिर से 2030 तक गरीबी हटाने का लक्ष्य रखा है. छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे कई राज्यों में अब भी गरीबी सबसे ज्यादा है. जहां यह सिर्फ चुनावी मुद्दा बनता है.

हाल ही में गुजरात चुनाव के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबी को मुद्दा बनाते हुए कहा था कि कांग्रेस ने सिर्फ नारा दिया. कांग्रेस अगर काम करती तो गरीबी कब का हट गई होती.

गरीबी पर राजनीति करने में कांग्रेस भी पीछे नहीं है. पार्टी के नेता आंकड़ों के हवाले से सरकार और योजनाओं पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं. बजट आने के बाद राहुल गांधी ने मित्रों के लिए बजट बताया और कहा कि इससे सिर्फ एक फीसद लोगों को फायदा होगा.

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