India China Border Dispute: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने मंगलवार को संसद के दोनों सदनों में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में सीमा पर हुई घटना को लेकर बयान दिया. उन्होंने जानकारी दी कि 9 दिसंबर, 2022 को चीन की सेना (PLA) ने तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर घुसपैठ करने और एकतरफा तरीके से यथास्थिति को बदलने की कोशिश की.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि देश के सैनिकों ने पूरी मजबूती और संकल्प के साथ चीन के इस कोशिश का मुंहतोड़ जवाब दिया. इस दौरान भारत और चीन के सैनिकों के बीच हाथापाई हुई. भारतीय सेना ने बहादुरी से घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करते हुए चीनी सैनिकों को उनकी चौकियों पर लौटने को मजबूर कर दिया. इस झड़प में दोनों ही देशों के कुछ सैनिकों को चोटें आई हैं. रक्षा मंत्री ने आश्वस्त किया कि इस हाथापाई में कोई भी भारतीय सैनिक घायल या गंभीर रूप से हताहत नहीं हुआ है.
भारत ने कूटनीतिक चैनलों से भी उठाया मु्ददा
भारतीय सैन्य कमांडरों के वक्त रहते दखल की वजह से चीन के सैनिक अपने ठिकानों पर वापस चले गए. इस घटना को देखते हुए दोनों देशों के स्थानीय कमांडर के बीच 11 दिसंबर को फ्लैग मीटिंग हुई. इसमें भारत ने चीन से ऐसी हरकतों से बाज आने और सीमा पर शांति बनाए रखने को कहा गया. कूटनीतिक चैनलों के जरिए भी भारत ने इस मुद्दे को चीन के साथ उठाया है.
भारत को उकसाना चाहता है चीन
सवाल उठता है कि चीन अक्सर सीमा विवाद को क्यों बढ़ाते रहता है. ऐसे तो चीन के साथ हमारा सीमा विवाद काफी लंबे वक्त से है. लेकिन हाल के कुछ सालों में चीन एलएसी पर बीच-बीच में उकसाने वाली कार्रवाई लगातार कर रहा है. कभी सैनिकों के जरिए घुसपैठ की कोशिश, तो कभी लाइन ऑफ एक्जुअल कंट्रोल के आस-पास निर्माण कार्य के जरिए चीन भारत को उकसाने की कोशिश करता है.
चीन अपने यहां लोगों को चाहता है भटकाना
चीन फिलहाल आंतरिक स्तर पर अपने लोगों के गुस्से को झेल रहा है. कोविड की वजह से उसकी अर्थव्यवस्था बीते दो साल से चरमराते रही है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कोविड को लेकर सख्त नीतियों से भी वहां के नागरिकों में सरकार के प्रति जबरदस्त रोष है. पिछले दो महीनों से चीन के अलग-अलग इलाकों में वहां के लोग सड़कों पर उतरकर शी जिनपिंग से सत्ता छोड़ने तक की मांग कर रहे हैं. भारत से लगी सीमा पर चीन सैनिकों की उकसावे वाली कार्रवाई एक तरह से वहां के लोगों का ध्यान बांटने की कोशिश भी है. रक्षा और विदेश मामलों के जानकारों के मुताबिक तवांग वाली घटना के पीछे ये तात्कालिक कारण है.
भारत के बढ़ते रुतबे से चीन परेशान
एक और वजह है जिससे चीन चाहता है कि भारत को उलझाकर रखें. पिछले कुछ सालों से भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दुनिया की एक बड़ी ताकत के तौर पर उभरा है. चाहे अर्थव्यवस्था हो, या फिर सैन्य क्षमता, हर मामले में भारत की ताकत का लोहा अब पूरी दुनिया मानने लगी है. जिस तरह से कोविड महामारी को झेलते हुए भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी रफ्तार पर लगाम नहीं लगने दी है, ये भारत के सुपर पावर बनने की राह को दिखाता है. चाहे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध का मसला हो, जी 20 (G20) से जुड़े मुद्दे या फिर जलवायु परिवर्तन की चुनौती, हर जगह भारत की बातों को दुनिया की बड़ी शक्तियां महत्व दे रही हैं. इन मुद्दों के हल के लिए दुनिया की निगाह भारत पर टिक गई है. हाल ही में भारत ने दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी 20 की अध्यक्षता स्वीकार की है. ये सारे पहलू भारत को दुनिया का नया सिरमौर बनने की संभावना को और पुष्ट करते हैं. एक वक्त था जब कहा जाता था कि एशियाई देशों में से चीन आने वाले समय में दुनिया का सुपर पावर बनेगा, लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल गए हैं. अब एशिया से इसके लिए भारत को सबसे बड़ा दावेदार माना जाने लगा है.
भारत को सीमा विवाद में उलझाना मकसद
भारत की इस बढ़ती ताकत से चीन को खतरा है. चीन चाहता है कि भारत को वो सीमा विवाद में उलझाकर रखे. हालांकि ये सिर्फ चीन की सोच है. विदेश मामलों के एक्सपर्ट का कहना है कि चीन अपने इस मंशा में कभी भी कामयाब नहीं हो सकता. चीन चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, भारत आर्थिक के साथ ही अब दुनिया की एक बड़ी सैन्य शक्ति भी है और सीमा पर चीन के किसी भी कायरतापूर्ण कार्रवाई का जवाब देने में भारत पूरी तरह से समर्थ है. भारत पीछे हटने वालों में से नहीं है. सैन्य के साथ-साथ कूटनीतिक तरीके से भी भारत इस मुद्दे को सुलझाने में हमेशा सफल रहा है और आगे भी रहेगा.
हर कार्रवाई का भारत देता है माकूल जवाब
गलवान की घटना के बाद ही भारत ने चीन को चेतावनी भरे लहजे में बता दिया था कि सीमा पर किसी भी तरह के उकसावे वाली कार्रवाई का भारत मुंहतोड़ जवाब देगा. उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए, भारत पूरी मजबूती से देश की एक एक इंच जमीन और देश के स्वाभिमान की रक्षा करेगा. उन्होंने कहा था कि भारत हमेशा शांति का पक्षधर रहा है, लेकिन भारत को उकसाने पर हर हाल में माकूल जवाब दिया जाएगा. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी हाल में कई बार ये बात कही है कि भारत-चीन के सीमावर्ती इलाकों में तब तक शांति का माहौल नहीं बनेगा, जब तक चीन शांति बहाली से जुड़े समझौतों का पालन नहीं करेगा और एलएसी पर यथास्थिति को बदलने के एकतरफा प्रयास को रोक नहीं देता है. विदेश मंत्री ने स्पष्ट लहजों में कह दिया था कि चीन को अहसास होना चाहिए कि सीमा पर तनाव उसके हित में नहीं है.
भारत-चीन के बीच सीमा वाले राज्य
भारत और चीन 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. भारत की चीन के साथ सीमा केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के साथ ही हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणालच प्रदेश से लगी है.
भारत-चीन सीमा को तीन सेक्टर में बांट सकते हैं:
1. पश्चिमी सेक्टर - इसमें लद्दाख का इलाका है. इन इलाके में चीन के साथ 1,597 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.
2. मध्य या मिडिल सेक्टर - इसमें हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से लगी सीमा है. इन इलाकों में चीन के साथ 545 किलोमीटर की सीमा लगती है. इसमें उत्तराखंड से 345 किमी और हिमाचल से 200 किमी सीमा है.
3. पूर्वी सेक्टर - इसमें सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से लगे इलाके आते हैं. इन इलाकों में 1346 किलोमीटर की सीमा लगती है. इसमें सिक्किम से 220 किमी और अरुणाचल से 1126 किमी की सीमा है.
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC)
विवाद की जड़ का मूल कारण है कि भारत और चीन के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है. कई इलाकों को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद है. भारत का हमेशा से यही कहना है कि दोनों देशों के बीच की सीमाएं ब्रिटिश राज में तय हो गई थी और भारत इसे मानता भी रहा है. हालांकि चीन ब्रिटिश राज में हुए फैसलों को मानने से इंकार करते रहा है. विवाद की वजह से भारत-चीन के बीच सही तरीके से कभी भी सीमा का निर्धारण नहीं हो पाया. यथास्थिति बनाए रखने के लिए Line of Actual Control टर्म का इस्तेमाल होने लगा. हालांकि दोनों देश अपने-अपने हिसाब से इस लाइन को बताते रहे हैं.
दोनों देशों के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर ही झड़प की घटनाएं होती रहती हैं. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर कई ग्लेशियर, पहाड़ और नदियां होने की वजह से सीमा का रेखांकन बेहद मुश्किल है. 1962 के युद्ध के बाद वास्तविक नियंत्रण लाइन (LAC) अनौपचारिक रूप से बनाई गई थी. 2 मार्च 1963 को हुए समझौते में पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को दे दी. ये भी भारत का ही हिस्सा है.
अक्साई चिन से जुड़ा विवाद
भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन पर अपना दावा करता है, अभी ये इलाका चीन के कब्जे में है. 1962 के युद्ध में चीन ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया था. इसके कुछ हिस्से पर चीन ने 1957 से 59 के बीच भी कब्जा किया था. अक्साई चीन में करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर का हिस्सा आता है. अक्साई चीन लद्दाख का उत्तर-पूर्वी हिस्सा है. ब्रिटिस राज में 1865 में बनाई गई जॉनसन लाइन के मुताबिक अक्साई चिन को भारत का हिस्सा बताया गया था. वहीं 1893 में बनाई गई मैकडॉनल्ड्स लाइन में इसे चीन के हिस्से के तौर पर दिखाया गया था. भारत जॉनसन लाइन को सही मानता है और चीन मैकडॉनल्ड्स लाइन को.
अरुणाचल प्रदेश से जुड़ा विवाद
पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश को लेकर विवाद रहा है. चीन इस पर अपना दावा करता है और वो अरुणाचल को भारत के हिस्से के तौर पर मान्यता देने से इंकार करते रहा है. चीन अरुणाचल के 90 हजार वर्ग किलोमीटर एरिया पर अपना दावा करता है. चीन इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते रहा है. यहीं वजह है कि वो अरुणाचल प्रदेश में मैकमोहन रेखा को नहीं मानता है.
मैकमोहन लाइन (McMahon Line) की कहानी
मैकमोहन लाइन अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा का निर्धारण करता है. दरअसल 1914 में भारत और तिब्बत के बीच स्पष्ट सीमा बनाने के लिए शिमला में एक संधि हुई. उस संधि के जरिए मैकमोहन लाइन अस्तित्व में आया. 1914 के वक्त तिब्बत एक आज़ाद मुल्क था. इस संधि में ब्रिटिश इंडिया, तिब्बत और चीन के प्रतिनिधि शामिल हुए. मैकमोहन लाइन के जरिए ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची गई. इस लाइन के जरिए ही अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन के बीच सीमा तय होती है. शिमला संधि करवाने में उस वक्त के ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमहोन ( Henry McMahon) की महत्वपूर्ण भूमिका थी. उन्होंने ही ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच सीमा का निर्धारण किया. इसी वजह से इसे मैकमोहन लाइन के नाम से जाना जाने लगा.
मैकमोहन लाइन के तहत अरुणाचल भारत का हिस्सा
इस लाइन के मुताबिक अरुणाचल भारत का हिस्सा बताया गया. आजादी के बाद भारत ने इस लाइन को माना, लेकिन चीन ने इससे इंकार कर दिया. चीन दावा करने लगा कि अरुणाचल तिब्बत का हिस्सा है और 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. चीन ये भी कहता है कि 2014 की संधि के वक्त उसे मैकमोहन लाइन के बारे में जानकारी नहीं दी गई और तिब्बत के प्रतिनिधि लोनचेन शातरा और हेनरी मैकमहोन के साथ गुपचुप तरीके से बातचीत कर इस लाइन को तय कर दिया गया. भारतीय सर्वेक्षण विभाग के एक मानचित्र में 1937 में मैकमोहन रेखा को आधिकारिक तौर से अरुणाचल में भारत-चीन सीमा के तौर पर दिखाया गया.
भारत-चीन सीमा से जुड़े विवादित जगहों में पूर्वी लद्दाख का गोगरा-हॉटस्प्रिंग क्षेत्र, पैंगोंग झील के इलाके, गलवान घाटी, सिक्किम बॉर्डर के करीब मौजूद डोकलाम, अरुणाचल प्रदेश का तवांग और नाथूला प्रमुख हैं.
गोगरा-हॉटस्प्रिंग क्षेत्र में पेट्रोलिंग पिलर-15 का विवाद
पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉटस्प्रिंग क्षेत्र में पेट्रोलिंग पिलर-15 (PP-15) लद्दाख में LAC के साथ 65 पेट्रोलिंग पॉइंट बिंदुओं में से एक है. अप्रैल 2020 से यहां पर दोनों देशों की सेना के बीच गतिरोध चल रहा था. इस साल उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन से पहले दोनों देशों की सेना पेट्रोलिंग पिलर-15 से पीछे हटने लगी.
पैंगोंग झील से जुड़ा विवाद
लद्दाख की पैंगोंग झील दुनिया की सबसे खूबसूरत झीलों में से एक है. ये हिमालय में लगबग 14 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर है. इस झील का 45 किलोमीटर हिस्सा भारत में पड़ता है और 90 किलोमीटर हिस्सा चीन में पड़ता है. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल इस झील के बीच से गुजरती है. पश्चिम सेक्टर में चीन सैनिकों की ओर से घुसपैठ की कोशिशों का एक तिहाई मामला पैंगोंग झील के आस-पास ही होता रहा है. इसकी वजह है कि दोनों ही देश अपने-अपने हिसाब से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल मानते हैं. चीन इस झील के अपनी ओर सड़क बनाने की कोशिश करते रहा है, जिसका भारत ने लगातार विरोध किया है.
गलवान घाटी का विवाद
गलवान घाटी का इलाका भी अक्साई चिन में आता है. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली है. ये इलाका सामरिक नजरिए से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. 1962 के युद्ध में यही इलाका प्रमुख केंद्र था. गलवान घाटी में भी चीन निर्माण कार्य करने की कोशिश करते रहता है. भारत इसे गैर-कानूनी बताता है. भारत का कहना है कि दोनों देशों के बीच एलएसी के आस-पास नए निर्माण कार्य नहीं करने को लेकर समझौता हो रखा है, लेकिन चीन इस समझौते का पालन नहीं कर रहा है. तवांग से पहले पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें भारतीय सेना के कर्नल समेत 20 सैनिक शहीद हो गए थे. चीन के भी काफी सैनिक इसमें मारे गए थे. हालांकि चीन ने इसका कोई ब्यौरा जारी नहीं किया था. गलवान की घटना पिछले 6 दशक में भारत-चीन के बीच सीमा पर संघर्ष की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी.
डोकलाम से जुड़ा विवाद
2017 में हम डोकलाम विवाद के बारे में सुन चुके हैं. डोकलाम चीन और भूटान के बीच का मसला है. ये इलाका सिक्किम बॉर्डर के करीब है. एक तरह से ये भारत, चीन और सिक्किम के लिए ट्राई-जंक्शन प्वाइंट है. इस वजह से ये इलाका भारत के सामरिक नजरिए से बेहद संवेदनशील है. अगर यहां चीन सड़क बना लेता है, तो ये भारत के 'चिकन नेक' इलाके के नजरिए से सही नहीं होगा. 'चिकन नेक' इलाके की चौड़ाई 20 किलोमीटर है और ये दक्षिण में बांग्लादेश और उत्तर भूटान की सीमा के बीच का इलाका है. यही इलाका भारत के पश्चिमी हिस्से को पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ता है. 2017 में भारत-चीन के बीच डोकलाम विवाद काफी लंबा चला था. उस वक्त चीन इस पठारी इलाके में सड़क बनाने की कोशिश कर रहा था. भारत ने इसका विरोध किया. रक्षा मामलों के जानकारों का मानना है कि ये हिमालय में ऐसी जगह है जिससे भारतीय सेना भलीभांति परिचित है. भारत को यहां ऊंचाई का फायदा मिलता है. भारत के लिए ये सामरिक फायदे वाली जगह है.
अरुणाचल के तवांग से जुड़ा विवाद
अरुणाचल प्रदेश का तवांग इलाका भारत-चीन सीमा के पूर्वी सेक्टर का हिस्सा है. इस इलाके पर चीन की बुरी नजह हमेशा बनी रहती है. चीन दावा करते रहता है कि तवांग तिब्बत का हिस्सा है. तवांग के जरिए चीन तिब्बत पर पकड़ मजबूत बनाने की मंशा रखता है. तवांग बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण धर्मस्थल है. चीन दोहरी नीति के तहत तवांग पर अपना दावा करता रहा है. इसमें तिब्बत और बौद्ध धर्मस्थलों पर पर पकड़ शामिल हैं. 9 दिसंबर को यही चीन ने अतिक्रमण करने की कोशिश की.
नाथूला से जुड़ा मसला
नाथूला 14,200 फीट की उंचाई पर हिमालय की गोद में बसा एक पहाड़ी दर्रा (mountain pass) है. ये भारत के सिक्किम राज्य और दक्षिण तिब्बत के चुम्बी घाटी को जोड़ता है. सिक्किम की राजधानी गंगटोक से ये मजह 54 किलोमीटर पूर्व में है. भारत के नजरिए से ये दर्रा बेहद खॉास है. यहां से होकर ही तिब्बत क्षेत्र में स्थित कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा के लिए भारतीयों का जत्था जाता है. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद इस दर्रा को बंद कर दिया गया था. 2006 में दोनों देशों के बीच हुए द्विपक्षीय व्यापर समझौतों के बाद इसे खोला गया. 1890 की संधि के कारण भारत और चीन के बीच नाथूला सीमा पर कोई विवाद नहीं रहा है. हालांकि मई 2020 में इस दर्रे के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प की खबरें सामने आई थीं.
1959 के बाद विवाद और बढ़ा
भारत और चीन के बीच 1954 में पंचशील समझौते हुए. इसके तहत भारत ने तिब्बत पर चीन के दावे को मान्यता दी. 1958 में तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हो गया. इसके बाद 1959 में भारत ने दलाई लामा को शरण दी. चीन ने इसे नापंसद करते हुए भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. यहीं से दोनों देशों के बीच संबेध तेजी से बिगड़ते गए. इसी का नतीजा था कि 20 अक्टूबर 1962 को दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया. इस दिन चीन की सेना ने लद्दाख और मैकमोहन रेखा दोनों जगह हमले शुरू कर दिए. दोनों देशों के बीच 1962 में युद्ध हुआ. 1967 में नाथूला में चीन और भारत के कई सैनिक मारे गए थे. 1975 में अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर भारतीय सेना के गश्ती दल पर चीनी सेना ने हमला किया था. ये सिलसिला 2020 के गलवान घाटी में भी जारी रहा और अब इसमें अरुणाचल का तवांग भी जुड़ गया है.
सीमा विवाद सुलझाने के प्रयास
भारत का हमेशा से यही कहना है कि दोनों देशों के बीच की सीमाएं ब्रिटिश राज में तय हो गई थी और भारत इसे मानता भी रहा है. हालांकि चीन ब्रिटिश राज में हुए फैसलों को मानने से इंकार करते रहा है. चीन के प्रीमियर ज्होऊ एनलाई ने 1960 में एक पेशकश की थी. इसके तहत अरुणाचल प्रदेश पर भारत की संप्रभुता और अक्साई चीन पर चीन के कब्जे को मान्यता देने की बात कही गई थी. उस वक्त भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था.
विवाद सुलझाने के नजरिए से 1993 में दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण पहल हुई. पहली बार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भरोसा पैदा करने वाले उपायों को लागू करने के लिए भारत और चीन के बीच 1993 में समझौता हुआ. 1996 में इस समझौते को और मजबूती मिली. 1962 युद्ध के बाद 24 जुलाई, 1976 को भारत-चीन के बीच राजनयिक संबंध दोबारा बहाल हुए. उसके 20 साल बाद पहली बार चीन के राष्ट्रपति भारत दौरे पर आए. नवंबर 1996 में चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन भारत की तीन दिन के दौरा पर आए थे. उस वक्त चीन इस पर राजी हुआ था कि दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर एक-दूसरे के खिलाफ आक्रमण नहीं करेंगे और न ही इसको पार करने की कोशिश करेंगे. सीमा पर से सैनिकों और हथियारों को कम करने पर भी चीन ने सहमति जताई थी.
शांति बहाली के लिए वार्ता भी जारी
पिछले कुछ साल से सीमा पर शांति बहाली के लिए दोनों देशों के बीच कई स्तर की वार्ताएं भी जारी है. दोनों देशों ने 2012 में सीमा पर शांति बनाए रखने के मकसद से वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसलटेशन एंड कॉर्डिनेशन (WMCC) की स्थापना की थी. इस साल अक्टूबर तक इसकी 28 बैठकें हो चुकी है. इसके अलावा सैन्य कमांडर स्तर पर 16 दौर की वार्ता हो चुकी है. मई, 2022 WMCC की बैठ में ही दोनो देशों ने गोगरा-हॉटस्प्रिंग क्षेत्र में पेट्रोलिंग पिलर-15 से सैनिकों की वापसी का फैसला किया था. मई 2014 से जून 2020 के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जनिपिंग के बीच कई बार मुलाकाते हुईं और इसमें सीमा विवाद को बातचीत से सुलझाने पर ज़ोर भी रहा. सीमा पर शंति बहाली के लिए चीन को उकसावे की कार्रवाई रोककर समाधान निकालने पर फोकस करना चाहिए. तभी दोनों देशों के हितों को नुकसान पहुंचाए बिना भविष्य में इसका कोई ठोस हल निकल सकता है.
ये भी पढ़ें: Parliament Attack: संसद पर आतंकी हमले के 21 साल, सुरक्षाबलों ने आतंकियों को किया था ढेर, जानें उस दिन की कहानी