16 दिसंबर 1971 की उस शाम को पाकिस्तानी सेना की पूर्वी कमान को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ा था. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महज 13 दिनों के भीतर ही पाकिस्तान ने भारत के सामने घुटने टेक दिए थे. पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के ढाका में पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी भारतीय सेना के सामने सरेंडर करने से पहले रो पड़े थे. जनरल नियाजी और भारतीय सेना की पूर्वी कमान के कमांडर रहे ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के बीच 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर' पर दस्तखत करते समय की तस्वीर आज भी मशहूर है. ये तस्वीर फिर से चर्चा में तब आई, जब अफगानिस्तान के तालिबानी नेता अहमद यासिर ने इसे शेयर करते हुए पाकिस्तान को धमकाया. 


दरअसल, अफगानिस्तान के तालिबानी नेता अहमद यासिर ने सोमवार (2 जनवरी) को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की तस्वीर ट्विटर पर शेयर कर पाकिस्तान का मजाक उड़ाया. अहमद यासिर ने लिखा कि 'अगर पाकिस्तान अफगानिस्तान के खिलाफ किसी सैन्य कार्रवाई के बारे में सोच रहा है, तो उसे बांग्लादेश की तरह ही शर्मनाक तरीके से आत्मसमर्पण करना पड़ेगा.' बता दें कि बीते दिनों पाकिस्तान की सरकार के मंत्री राणा सनाउल्लाह ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से निपटने के लिए अफगानिस्तान में घुसकर संगठन को निशाना बनाने की बात कही थी. इसी वजह से अफगानिस्तान के तालिबानी नेता ने पाकिस्तान को धमकाने की नीयत से 1971 के भारत-पाक युद्ध की तस्वीर शेयर की. आइए जानते हैं 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ी कुछ बातें...


जब रो पड़े थे जनरल नियाजी


'एन ओडिसी इन वॉर एंड पीस' में जनरल जेएफआर जैकब ने लिखा है कि 16 दिसंबर 1971 को वो सरेंडर का एग्रीमेंट लेकर ढाका पहुंचे. जनरल जैकब सीधे पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी के पास पहुंचे और उनके सामने सरेंडर एग्रीमेंट रख दिया. जनरल जैकब ने नियाजी से कहा कि अगर सरेंडर नहीं किया, तो मैं तुम्हारे परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले सकूंगा. सरेंडर के बारे में सोचने के लिए तुम्हारे पास 30 मिनट हैं. समय बीतने के बाद जब जनरल जैकब वापस नियाजी के पास पहुंचे, तो वो शांत थे और सरेंडर एग्रीमेंट मेज पर ही पड़ा हुआ था. इस दौरान जनरल नियाजी की आंखों में आंसू थे. इस आत्मसमर्पण के बाद ही पाकिस्तान में नियाजी शब्द को गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा था.


1970 में पड़ गई थी पाकिस्तान से अलग मुल्क बांग्लादेश की नींव


1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. इस चुनाव के नतीजों ने ही पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के बीच अलगाव की नींव रखी. दरअसल, इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग को 167 सीटें मिली थीं. 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में यह बहुमत के आंकड़े से ज्यादा था. आसान शब्दों में कहें, तो पाकिस्तान में शेख मुजीबुर रहमान की सरकार बनना तय था, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने इन चुनाव परिणामों को मानने से इनकार कर दिया. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याहया खान ने शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर जेल में डलवा दिया. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के आम नागरिकों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए. 


मुक्तिवाहिनी का गठन


मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना के बढ़ते जुल्मों के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने हथियार उठा लिए और मुक्तिवाहिनी सेना का गठन किया गया. मुक्तिवाहिनी सेना में सैनिक, अर्द्धसैनिक बलों के साथ बड़ी संख्या में आम नागरिक भी शामिल थे. इन सभी लोगों ने पाकिस्तानी सेना पर गुरिल्ला युद्ध की पद्धति अपनाते हुए हमले शुरू कर दिए. भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्तिवाहिनी के सैनिकों को ट्रेनिंग दी. इससे पाकिस्तान की सरकार जल उठी. हालांकि, पाकिस्तान ने नवंबर 1971 तक हमला नहीं किया, लेकिन 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान की इस लड़ाई को भारत-पाकिस्तान के बीच का युद्ध घोषित कर दिया.


13 दिनों में ही पाकिस्तान ने घुटने टेके


16 दिसंबर 1971 को एक नये राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ. भारतीय सेना की मदद से मुक्तिवाहिनी ने पूर्वी पाकिस्तान को एक आजाद मुल्क बना लिया. भारतीय सेना की बहादुरी और शौर्य के सामने महज 13 दिनों के भीतर ही पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए. पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी को 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ा. 


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