Indo-US maneuvers: एलएसी पर चीन से चल रहे तनाव के बीच भारतीय सेना का अमेरिकी सेना के साथ अलास्का में चल रहा साझा 'युद्धभ्यास' (14-28 अक्टूबर) खत्म हो गया है. वैलिडेशन फेज़ में दोनों देशों की सेनाओं ने दुनिया के सबसे ऊंचाई और ठंडे आर्कटिक रीजन में इस मिलिट्री एक्सरसाइज को अंजाम दिया.


ऊंची चोटियों पर हुई फाइनल एसॉल्ट की ड्रिल


भारत और अमेरिका की सेनाओं की टुकड़ियों ने एक्सरसाइज के आखिरी चार दिन (25-28 अक्टूबर) दो ऊंची चोटियों पर फाइनल एसॉल्ट यानि आखिरी प्रहार की ड्रिल की. इस दौरान बेहद ऊंचाई और बर्फ से ढके दो पहाड़ों पर दोनों देशों की सेनाओं ने हमला किया. जानकारी के मुताबिक, इस दौरान दोनों देशों की चार मिलीजुली टुकड़ियां तैयार की गईं. चारों टुकड़ियों को प्रहार करने के लिए दो-दो दिन का वक्त दिया गया था. 


इस अभ्यास के लिए अमेरिकी सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर्स और मिलिट्री-व्हीकल्स के जरिए चारों टुकड़ियों को वॉर-जोन में इंसर्ट किया गया. फिर भारत और अमेरिका के सैनिकों ने इन दोनों काल्पनिक सम्मिट, जेरोनिमो और साइट-सम्मिट पर हमला कर अपना अधिकार किया. चार टुकड़िय़ों में से दो के कमांडर अमेरिकी सेना के अधिकारी थे और बाकी दो के भारतीय सैन्य-अधिकारी.


एक्सरसाइज का उद्देश्य


इस एक्सरसाइज का उद्देश्य पहले दस दिनों में ठंडे मौसम में युद्ध-कौशल को वेलिटेड करना था. साथ ही आर्कटिक क्षेत्र में सैनिकों की सर्वाइवल-प्रैक्टिक्स और मिलिट्री-ट्रेनिंग को अंजाम देना था ताकि दोनों देशों की सेनाएं छोटी-छोटी टुकड़ियों में अत्यधिक ठंड में युद्ध का अभ्यास कर सकें. 


भारत और अमेरिका की इस ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज का नाम युद्धाभ्यास ही है. पिछले 14 दिनों में फाइनल एसॉल्ट के साथ-साथ दोनों देशों की टुक़डियों ने काउंटर अनमैनड एरियल सिस्टम यानि काउंटर ड्रोन और काउंटर-आईईडी ड्रिल का भी अभ्यास किया.


योग और फिजीकल-एक्सरसाइज का भी किया अभ्यास


इसके अलावा ठंडे मौसम और बर्फ में दोनों देशों की सेनाओं ने योग और फिजीकल-एक्सरसाइज का भी अभ्यास किया. दोनों देशों के सैनिकों ने एक दूसरे की राइफल और दूसरे हथियारों पर भी हाथ अजमाए. 


युद्धाभ्यास भारत और अमेरिका की सालाना होने वाली मिलिट्री एक्सरसाइज है जो एक साल भारत मे होती है और एक साल अमेरिका में. इस साल ये एक्सरसाइज अमेरिका के अलस्का में हुई है तो अगले साल भारत में होगी. इस साल इस एक्सरसाइज में भारतीय सेना की मद्रास रेजीमेंट ने हिस्सा लिया था. जबकि अमेरिकी सेना की तरफ से एयरबोर्न 1-40 स्कॉवड्रन ने भाग लिया था.


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