नई दिल्ली: सब्जियों, फल औऱ अंडों की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से महंगाई के मोर्चे पर बुरी खबर है.  नवंबर में खुदरा महंगाई दर 4.88 फीसदी पर पहुंच गयी. ये 15 महीने का सबसे ऊंचा स्तर है. अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 3.58 फीसदी थी.


खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी के साथ ही हाल-फिलहाल, नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट में किसी तरह की कमी की संभावनाओं पर फिलहाल विराम लग गया है. दरअसल, सरकार औऱ रिजर्व बैंक के बीच हुए समझौते के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर का लक्ष्य 4 फीसदी रखा गया है जिसमें दो फीसदी तक कमी-बेशी मंजूर होगी. आम भाषा में कहें तो खुदरा महंगाई दर दो से छह फीसदी के बीच होनी चाहिए, हालांकि तकनीकी तौर पर लक्ष्य चार फीसदी माना जाता है. अब चूंकि खुदरा महंगाई दर चार फीसदी से ज्यादा हो चुकी है और खुद रिजर्व बैंक भी कह चुका है कि 31 मार्च को खत्म होने वाले कारोबारी साल 2017-18 में खुदरा महगाई दर 4.3 से 4.7 फीसदी के बीच रह सकती है. ऐसे में महंगाई दर के मौजूदा चलन को देखते हुए इस कारोबारी साल के दौरान नीतिगत ब्याज दर में कमी के आसार नहीं. कर्ज नीति की अगली समीक्षा फरवरी में होगी.


क्यों बढ़ी खुदरा महंगाई दर?


खाने-पीने के सामान ने खुदरा महंगाई दर बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा की. सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि नवंबर के महीने में खाने-पीने के सामान की खुदरा महंगाई दर 4.42 फीसदी रही जबकि अक्टूबर में ये 1.9 फीसदी थी. केवल सब्जियों की बात करें तो वहां नवंबर के महीने में खुदरा महंगाई दर 22.48 फीसदी रही, वहीं फल के मामले में ये दर 6.19 फीसदी रही. परेशानी अंडे के मामले में भी दिखी जहां खुदरा महंगाई दर करीब आठ फीसदी रही. ध्यान रहे कि 5 रुपये की दर से बिकने वाला अंडा छङ से सात रुपये के बीच आजकल बिक रहा है. जाड़ा बढ़ने के साथ इसके दाम में और बढ़ोतरी की आशंका है.


चीनी की मिठास पर भी महंगाई का असर जारी रहा. नवंबर के महीने मे चीनी और कनफेक्शनरी के लिए खुदरा महंगाई दर 7.8 दर्ज की गयी. चीनी में लगातार तेजी बनी हुई है और आगे भी इसमें कमी के आसार दिख नहीं रहे.


औद्योगिक विकास दर


दूसरी ओर औद्योगिक विकास के मोर्चे पर भी अच्छी खबर नहीं है. अक्टूबर के महीने मे उद्योग के बढ़ने की रफ्तार सुस्त होकर 2.2 फीसदी पर आ गयी, वहीं सितंबर के महीने में ये दर 4 फीसदी के ज्यादा थी. अगर बीते साल अक्टूबर की बात करें तो औद्योगिक विकास दर 4.2 फीसदी ऱही.


उद्योग की रफ्तार धीमी पड़ने की बड़ी वजह विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन था. विनिर्माण यानी मैन्युफैक्चरिंग के बढ़ने की दर 2.5 ही दर्ज की गयी जबकि सितंबर के महीने मे ये 3.8 फीसदी थी. मैन्युफैक्चरिंग की सुस्त रफ्तार रोजगार के मौकों पर असर डालती है, क्योंकि यहां यदि एक को सीधे रोजगार मिलता है तो कम से कम से चार लोगो को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है.