नई दिल्ली: खुदरा महंगाई दर पूरे एक फीसदी बढ़ गयी है. हालांकि उद्योग की हालत में सुधार हुआ है. इसी के साथ अगले महीने रिजर्व बैंक गवर्नर की अगुवाई में मौद्रिक नीति समिति की बैठक मे नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट में कमी की उम्मीद थोड़ी घट गयी है.


केद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने मंगलवार को महंगाई दर और औद्योगिक उत्पादन से जुड़े आंकड़े जारी किए. महंगाई दर के आंकड़े जहां अगस्त के हैं, वहीं औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े जुलाई के है. ये दोनो ही आंकड़े नीतिगत ब्याज दर की दशा-दिशा तय करने में खासा मदद करते हैं.


अगले महीने 3 और 4 तारीख को रिजर्व बैंक गवर्नर की अगुवाई में मौद्रिक नीति समिति की बैठक होगी जिसमें नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट (वो दर जिसपर रिजर्व बैंक थोड़े समय के लिए बैंकों को कर्ज देता है) की समीक्षा करेगी. वैसे तो खुदरा महंगाई दर सरकार और रिजर्व बैंक बीच हुए समझौते के मुताबिक तय लक्ष्य (कम से कम दो फीसदी और ज्यादा से ज्यादा छह फीसदी) से कम है, फिर भी इस बात की उम्मीद कम है कि एक झटके से आए उछाल के बाद समिति ब्याज दर घटाने का फैसला करे.


खुदरा महंगाई दर
अगस्त के महीने मे खुदरा महंगाई दर 3.36 फीसदी पर पहुंची, जबकि जुलाई में ये दर 2.36 फीसदी थी. अगर केवल खाद्य पदार्थों की खुदरा महंगाई दर की बात करें तो ये (-)0.36 फीसदी से बढ़कर 1.52 फीसदी पर आ गयी. अगस्त के दौरान महंगाई दर बढ़ाने में चीनी के साथ-साथ फल और सब्जियों की अहम भूमिका रही. चीनी व कनफेक्शनरी के लिए खुदरा महंगा ईदर जहां 7.35 फीसदी रही, वहीं सब्जियों के मामले में ये 6.16 फीसदी और फल के मामले में 5.29 फीसदी रही. वैसे राहत की बात ये है कि दाल के दाम में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है.


खुदरा महंगाई दर में उछाल लाने में जहां एक ओर कपड़े औऱ जुते-चप्पल ने भूमिका निभाई, वहीं पान-तंबाकू और नशे की चीजों के दाम बढ़े. ध्यान रहे कि पहली जुलाई से जीएसटी लागू होने के बाद 1000 रुपये से ज्यादा के सिले-सिलाये कपड़े और 500 रुपये से ज्यादा से चप्पल जूतों पर टैक्स की दर ऊंची रखी गयी. इसकी वजह से दाम बढ़ने की आशंका जतायी गयी थी. अब खुदरा महंगाई दर के आंकड़े इस बात की तस्दीक कर रहे हैं. इसी तरह पिछले महीने सिगरेट पर सेस बढ़ा दिया गया.


औद्योगिक उत्पादन दर
बहरहाल, जुलाई के महीने में उद्योग की हालत कुछ बेहतर हुई और ये ‘निगेटिव’ से ‘पॉजिटिव’ हो गया. जुलाई के महीने में औद्योगिक विकास दर 1.2 फीसदी रही जबकि जून के महीने में ये (-)0.1 फीसदी थी. इस सुधार में बड़ी भूमिका खनन और बिजली की रही जहां विकास दर क्रमश: 4.8 और 6.5 फीसदी रही. लेकिन चिंता की बात ये है मैन्युफैक्चरिंग की हालत में ज्यादा सुधार नहीं है. यहां विकास दर 0.1 फीसदी रही.


मैन्युफैक्चरिंग की विकास दर में सुधार नहीं होना चिंता का विषय है, क्योंकि इस क्षेत्र का जितना ज्यादा विस्तार होगा, नौकरी के उतने ही मौके बनेंगे.