नई दिल्ली: गुजरात की युवा त्रिमूर्ति यानी पाटीदार आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल, दलित अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी वर्ग की राजनीति करने वाले अल्पेश ठाकोर पर जातिवादी राजनीति करने का आरोप लगता रहा है. इनमें से अल्पेश और जिग्नेश ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर ली है. इन तीनों के सहारे कांग्रेस ने गुजरात की सत्ता से बीजेपी को बेदखल करने की असफल कोशिश की. पीएम मोदी ने चुनाव नतीजों के बाद इसे जातिवादी राजनीति की हार और विकास की जीत बताया.
जातिवादी राजनीति करने का आरोप झेल रहे अल्पेश ठाकोर ने अपनी शादी में जाति का बंधन तोड़ दिया था. बीस साल पहले अल्पेश ने अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था. अल्पेश ठाकोर जहां क्षत्रिय ठाकोर जाति से आते हैं, वहीं उनकी पत्नी किरण ठाकोर ब्राह्मण जाति से हैं. 42 साल के अल्पेश ने 1997 में किरण से शादी की थी. अल्पेश ने बताया कि वो और किरण एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. अल्पेश के मुताबिक शादी में जाति बंधन आड़े नहीं आई. उनके दो बेटे हैं. बड़ा बेटा 19 साल का है. किरण ने कहा कि उनके पति पर जातिवाद का आरोप लगाना गलत है, उन्हें सबका समर्थन हासिल है.
अल्पेश ठाकोर पाटन जिले के राधनपुर सीट से विधायक बने हैं. उन्होंने 2011 में गुजरात क्षत्रिय ठाकोर सेना और 2015 में ओबीसी एससी-एसटी एकता मंच नाम के दो संगठन खड़े किए. 2011 से पहले वो कांग्रेस में सक्रिय थे. लेकिन 2011 में दलगत राजनीति से अलग होकर खुद का संगठन बनाया और अब उनकी पहुंच सीधे राहुल गांधी तक है. उनके पिता और दादा भी राजनीति में रहे हैं.
ये रोचक बात है कि अल्पेश ठाकोर का परिवार पहले जनसंघ और बीजेपी की राजनीति से जुड़ा था लेकिन 1995 में अल्पेश के पिता खोडाजी ठाकोर ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. पिता के नक्शे कदम पर बेटे ने भी कांग्रेस की ही राजनीति की.
जातिवादी राजनीति के आरोप पर अल्पेश उल्टा बीजेपी पर ही जाति-धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाते हैं. अल्पेश ने कहा कि वो समाज के हक की बात करते हैं. गांवों का विकास करना उनका लक्ष्य है. यूं तो हर गुजराती शख्स की बोली से मिठास टपकती है लेकिन अल्पेश और भी लुभावने तरीके से अपनी बात रखते हैं.
दिल्ली जा कर देश की राजनीति करने के सवाल पर अल्पेश मुस्कुरा कर बोले 'राहुल भईया चाहेंगे तो जरूर जाऊंगा'. लेकिन अल्पेश के लिए दिल्ली अभी दूर है क्योंकि पहले उन्हें राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी करवानी है. इस बार मौका कांग्रेस के हाथ आया लेकिन मुंह ना लगा. अल्पेश कहते हैं कि 'अगर हमारे बड़े नेताओं ने अपनी सीट जीत ली होती तो हम सरकार में होते, इसका मलाल रहेगा'. हालांकि बड़े कांग्रसियों की हार अल्पेश के लिए बड़ा मौका भी है. वो अब राज्य कांग्रेस के अहम नेताओं में शामिल हो गए हैं जिन पर विधानसभा में नजर रहेगी.