Uttarkashi Avalanche: उत्तराखंड के एवलांच की पूरी कहानी, इंस्ट्रक्टर की जुबानी, जानिए क्या हुआ था उस रात
Avalanche Story: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 4 अक्टूबर को द्रौपदी का डांडा 2 पीक पर आए एवलांच में 29 लोगों की मौत हो गई. एवलांच से बचकर आए अनिल कुमार ने बर्फीले तूफान की आपबीती एबीपी न्यूज़ से शेयर की.
Uttarkashi Avalanche: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 4 अक्टूबर को द्रौपदी का डांडा 2 पीक पर आए एवलांच में 29 लोगों की मौत हो गई. इसमें अब तक 26 लोगों की डेड बॉडी रिकवर की जा चुकी है, जबकि 3 लोग अब भी लापता हैं. इस हादसे में कुल 45 लोग में से सिर्फ 16 ही बच पाए.
एवलांच में जिंदा बचकर आए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माउन्टेनियरिंग (NIM) के इंस्ट्रक्टर अनिल कुमार ने बर्फीले तूफान की आपबीती एबीपी न्यूज़ से शेयर की. अनिल अपने साथ चार और लोगों को भी मौत के मुंह से निकाल लाए. अनिल कुमार भारतीय सेना में नायक सूबेदार के पद पर कार्यरत हैं. वह 2009 से पर्वतारोहण कर रहे हैं और 2019 से NIM में तैनात हैं.
हादसे के बारे में क्या बोले अनिल
अनिल ने बताया कि वो लोग सुबह 3:00 बजे द्रौपदी डांडा पर्वत के पीक की ओर निकले. आमतौर पर बर्फीले पहाड़ पर ग्लेशियर के बीच में स्पेस बन जाता है जो कि गहरी खाई का रूप ले लेता है. द्रौपदी का डंडा पर्वत के पीक से पहले कुछ फीट की दूरी पर ही एक बहुत गहरी खाई थी. वो लोग गहरी खाई से साइड से होकर ऊपर की तरफ निकले.
आमतौर पर जब माउंटेनर माउंटेनिंग करते हैं तो रस्सी का सहारा लेकर ऊपर की तरफ जाते हैं. रस्सी को बर्फ की चट्टान में गाड़ देते है जिससे कि वो बाहर की ओर ना खुल सके. अनिल द्रौपदी डांडा पर्वत के सबसे ऊपर तक गए. तभी उनके नीचे की तरफ एक स्लैब अचानक से टूट कर गिर गई. सभी लोग एक रस्सी में बंधे हुए थे.
रस्सी जिस स्लैब से बंधी थी वह पूरा का पूरा स्लैब टूट गया. जितने लोग थे सब घिसटते हुए खाई में जा गिरे. खाई करीब 12 फीट चौड़ी रही होगी. अनिल भी घिसट कर खाई के किनारे जा लगे.
लोगों की जान बचाने गहरी खाई में उतरे
खाई की गहराई इतनी ज्यादा थी कि जब पूरी स्लैब टूट कर गिरी और कुछ लोग उस बर्फ के नीचे गिरे तब भी खाई की गहराई 50 फीट के करीब थी. जब अनिल ने नीचे की तरफ देखा की लोग खाई में गिर गए हैं वहां से चिल्लाने की आवाजें आ रही थी. वो दूसरे रस्सी के सहारे खाई में कुछ लोगों के साथ उतरे. जब उन्होंने अंदर देखा तो करीब 4 लोग की गर्दन बाहर दिखाई दे रही थी.
बाकी कोई भी नहीं दिखाई दे रहा था. एक लड़का गर्दन तक दबा हुआ था उसका सिर्फ एक हाथ बाहर था और चिल्ला रहा था. उन्होंने फटाफट बर्फ को खोदना शुरू किया. उसका हाथ बाहर निकाला. उसका हाथ निकालने के बाद पता चला कि एक शख्स का भी पैर दिखाई दे रहा है. वो भी छटपटा रहा था.
इंस्ट्रक्टर नवमी रावत और सविता कंसवाल की हुई हादसे में मौत
इस हादसे में इंस्ट्रक्टर नवमी रावत और सविता कंसवाल की भी मौत हो गई. नवमी रावत को निकालने के बाद सीपीआर दिया गया लेकिन जान नहीं बच पाई. फिर बाकी लोगों को निकालना शुरू किया गया. जब सविता कंसवाल को बाहर निकाला गया तो उनके दोनों हाथ मुंह पर थे. सविता कंसवाल ने एयर पॉकेट बनाने की कोशिश की थी जो ट्रेनिंग में सिखाया जाता है लेकिन वह नाकामयाब रहीं, क्योंकि बर्फ की सिल्ली बहुत ज्यादा मोटी थी, जिससे एयर पॉकेट नहीं बन सका और उनकी मृत्यु हो गई.
खाई का तापमान माइनस 10 से 11 डिग्री था
जिन लोगों की गर्दन नीचे की तरफ थी. वे मारे जा चुके थे. जो 4 लोग बचे, उनका सिर बाहर था. इन लोगों को निकालते निकालते करीब 3 से 4 घंटे लग गए. खाई के अंदर टेंपरेचर माइनस 10 से 11 डिग्री के करीब था. जो 4 लोग जिंदा निकाले थे, उन्हें काफी ज्यादा ठंड लग गई थी तो उन्हें जैकेट पहना कर जान बचाने की कोशिश की गई.
रात के एक बज चुके थे. मौसम भी और खराब होने लगा था. इस बीच बेस कैंप से निकली रेस्क्यू टीम दूसरे रास्ते से उन तक पहुंच गई, जिसकी वजह से उनका हौसला बढ़ पाया और खराब मौसम से सभी लड़ पाए.
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