टूट की कगार पर आम आदमी पार्टी, जानें पहले कब-कब टूटी पार्टी?
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नई दिल्ली: दिल्ली एमसीडी के चुनाव में हार के बाद से ही केजरीवाल की पार्टी में कलह मच गई है. पार्टी दो गुटों में बंटी नजर आ रही है, एक खेमा केजरीवाल के साथ खड़ा है तो दूसरा कुमार विश्वास के साथ को समर्थन देता नजर आ रहा है.
जामिया नगर से केजरीवाल खेमे के विधायक अमानतुल्ला, कुमार विश्वास पर पार्टी तोड़ने और पार्टी को हड़पने का आरोप लगा रहे हैं. कुमार विश्वास पर अमानतुल्लाह ने हमले किये तो पार्टी के अंदर से ही उनपर कार्रवाई की मांग उठने लगी.
अन्ना आंदोलन की उपज है आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 2011 के अन्ना आंदोलन की उपज है. अन्ना आंदोलन ने जैसे जैसे पार्टी का रूप लिया बारी बारी से पूरी टीम बिखड़ गई. एक एक करके पार्टी से जुड़े कई बड़े चेहरे पार्टी को बाय-बाय कह गए.
फरवरी 2014 में शुरू केजरीवाल के खिलाफ गोलबंदी आम आदमी पार्टी की स्थापना 26 नवंबर 2012 को हुई. 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 28 सीटों पर जीती और 2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कोई सीट नहीं मिली. फरवरी 2014 में केजरीवाल ने सीएम पद से इस्तीफा दिया और यहीं से उनके खिलाफ पार्टी में गोलबंदी शुरू हो हई.
सबसे पहले किरण बेदी ने साथ छोड़ा जनवरी 2015 में सबसे पहले किरन बेदी ने आप का साथ छोडकर बीजेपी का दामन थाम लिया. अन्ना आंदोलन के वक्त किरन बेदी की भूमिका इस बात से समझी जा सकती है कि अन्ना के एक तरफ केजरीवाल होते थे तो दूसरी ओर किरन बेदी ही रहती थी. वक्त साथ दोनों में मतभेद इतना बढ़ गया कि किरन बेदी ने अलग राह पकड ली.
दूसरा झटका: शाजिया इल्मी ने AAP को बाय बाय कर दिया किरण बेदी के बाद शाजिया इल्मी ने भी आम आदमी पार्टी को बाय बाय कर दिया. शाजिया 2014 में गाजियाबाद से आप के टिकट पर चुनाव लड़ी थी और पार्टी में बड़ा मुस्लिम चेहरा बन गईं थीं. पार्टी में बात नहीं बनने की वजह से उन्हें बाहर जाना पड़ा.
तीसरा और सबसे बड़ा झटका आम आदमी पार्टी के शुभचिंतकों को बड़ा झटका उस वक्त लगा जब पार्टी ने प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे संस्थापक सदस्यों को ही पार्टी से निकाल दिया. 2015 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जब केजरीवाल सीएम बन गये तब आरोप लगा कि भूषण और योंगेंद्र ने चुनाव में पार्टी के खिलाफ काम किया है. दिल्ली के कापसहेड़ा में पार्टी की बैठक हुई, हंगामा हुआ, आरोप प्रत्यारोप लगे और योगेंद्र-प्रशांत सहित चार बड़े नेताओं को 21 अप्रैल 2015 को पार्टी से निकाल दिया गया.
इसके बाद बागी नेताओं की लाइन लग गई इसके बाद पंकज पुष्कर, देंवेद्र सहरावत जैसे विधायक बागी हुए, बवाना के विधायक वेद प्रकाश बीजेपी में चले गए. पूर्व स्पीकर मनिंदर सिंह धीर भी बीजेपी में शामिल हुए.
पंजाब में जाकर AAP का मामला फंस गया महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक के कई बड़े नेताओं ने केजरीवाल से किनारा कर लिया. इस बीच पार्टी के कई विधायक और मंत्री अलग अलग तरह के आरोपों से घिरे. केजरीवाल और उनकी पार्टी ने विवादित नेताओं को खुलकर बचाव भी किया लेकिन मामला फंस गया पंजाब जाकर.
2014 में पंजाब से आप के 4 सांसद जीते थे, 2 सांसदों को पार्टी ने बाहर निकाल दिया. विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश संयोजक सुच्चा सिंह की छुट्टी कर दी. नतीजा हुआ कि आप पंजाब में विधानसभा हार गई.
दिल्ली एमसीडी चुनाव में हार के बाद आरोप लग रहे हैं कि केजरीवाल तानाशाह की तरह पार्टी चला रहे हैं. कुमार विश्वास को लेकर पार्टी दो गुटों में बंट चुकी है. केजरीवाल पब्लिक के सामने विश्वास को छोटा भाई बता रहे हैं लेकिन पर्दे के पीछे की रणनीति या तो वो जानते हैं या उनके खास लोग.
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