आपको पता है गीतिकाव्य का मतलब? क्या आप हिंदी में लिखते वक्त प्लास्टिक की जगह सुघट्य जैसे कठिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं? अगर नहीं तो आपको जानकर हैरानी होगी की देश के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले सिविल सर्विस परीक्षा के पेपर में इस शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है.
यूपीएससी के पिछले कुछ सालों के पेपर में हिंदी के सवाल पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि ज्यादातर सवाल को गूगल ट्रांसलेटर के माध्यम से ट्रांसलेट कर हिंदी में क्वेश्चन पेपर बना दिया जाता हैं. इसका साइड इफेक्ट भी देखा गया है.
साल 2021 का यूपीएससी रिजल्ट देखें तो पाएंगे कि सात साल के बाद हिंदी मीडियम का कोई छात्र टॉप 25 उम्मीदवारों में जगह बनाने में कामयाब हुआ. इससे पहले साल 2014 की परीक्षा में निशांत कुमार जैन 13वें स्थान पर रहे थे.
हमारे देश में एक तरफ जहां हिंदी भाषा के इस्तेमाल को बढ़ाने को लेकर पूरा जोर दिया जा रहा है. वहीं दूसरे तरफ पिछले दस सालों में देश का सबसे प्रतिष्ठित यूपीएससी के हिंदी माध्यम से सफल होने वाले छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है.
क्या कहते हैं हिंदी मीडियम में तैयारी कर रहे प्रतियोगी
हिंदी मीडियम से यूपीएससी की तैयारी कर रहे बच्चों को गाइड करने वाले कन्हैया लाल बताते हैं, "हिंदी मीडियम के बच्चों को यूपीएससी की तैयारी करने में ज्यादा मुश्किल होती है क्योंकि इसका जो प्रश्न पत्र आता है पहले अंग्रेजी भाषा में बनाया जाता है फिर हिंदी में ट्रांसलेट किया जाता है.
हिंदी मीडियम के छात्र बहुत सालों से मांग कर रहे हैं कि पेपर को ट्रांसलेट करने का काम मैनुअल होना चाहिए. लेकिन अभी भी यूपीएससी उसे कंप्यूटर से गूगल ट्रांसलेटर की मदद ट्रांसलेट करता है."
उन्होंने कहा कि यही कारण है कि कई बार कुछ अंग्रेजी शब्द की हिंदी इतनी कठिन हो जाती है कि उसे समझना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में उसे अंग्रेजी भी पढ़ना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी मीडियम का बच्चा सिर्फ एक भाषा में पढ़ता और पेपर देता है और वह है अंग्रेजी भाषा.
हालांकि इस बारे में सिविल सर्विस की तैयारी कर रही प्रिंसी का मानना बिल्कुल अलग है. प्रिंसी ने एबीपी से बातचीत के दौरान बताया, 'मेरा मानना है कि अंग्रेजी मीडियम से परीक्षा देने वाले क्षात्रों का कॉम्पटीशन ज्यादा है. मुझे ऐसा नहीं लगता कि हिंदी मीडियम से तैयारी कर रहे छात्रों को ज्यादा दिक्कत आती है.
हां ये जरूर कहूंगी जिनकी अंग्रेजी अच्छी होती है वैसे लोगों के भीतर श्रेष्ठता का भाव जागता था और वे सरकारी स्कूल वालों की 'हिन्दी मीडियम टाइप' कहते हुए उनका मजाक उड़ाते है.
प्रिंसी ने कहा कि मैंने शुरुआत से ही हिंदी मीडियम से पढ़ाई की है. लेकिन ऐसा नहीं है कि मुझे अंग्रेजी भाषा समझ नहीं आती. हां बोलने में थोड़ी दिक्कत है लेकिन भाषा किसी को श्रेष्ठ नहीं बनाता. कई बार ऐसा होता है कि दोस्तों के बीच मेरे हिंदी मीडियम होने का मजाक उड़ा दिया जाता है.
यूपीएससी की तैयारी कर रहे मयन कहते हैं कि मैंने कुछ महीने पहले ही हिंदी मीडियम से यूपीएससी की तैयारी करना शुरू किया है. इस भाषा में तैयारी करना मेरा खुद का निर्णय है.
मुझे नहीं लगता कि हिंदी भाषा में एग्जाम देना बड़ी बात है. हां ये जरूर है कि हमारे देश में अंग्रेजी भाषा को तवज्जो दिया जाता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि अंग्रेजी को ग्लोबली लोग सुनते और समझते जबकि हिंदी सिर्फ भारत में बोली जाती है.
हिंदी दिवस के दिन वो क्या सोचते हैं
प्रतियोगिता की तैयारी कर रहीं प्रिंसी कहती हैं कि हमारे देश में हर राज्य की अपनी भाषा है. लेकिन इन भाषाओं को जानते हुए भी हम अंग्रेजी पढ़ ही लेते हैं. मुझे लगता है कि हमारे देश में हिंदी को भी जरूरत की तरह पढ़ना और पढ़ाया जाना चाहिए. अब भी इंटर के बाद की साइंस की पढ़ाई के लिए हिंदी में पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं.
बड़े यूनिवर्सिटी और रिसर्च जैसी जगहों को तो छोड़ ही दीजिये. इसके अलावा इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई आज भी अंग्रेज़ी में होती है.
वहीं कन्हैया लाल का कहना है कि हिंदी को हमारे देश में बस एक ऐसी भाषा की तरह लिया जाता है जिसे बोलना नहीं आए तो बड़ी बात नहीं है. कई बार तो हिंदी बोलना नहीं आना लोग गर्व के तौर पर लेते हैं. सूचना क्रांति के इस दौर में कम्प्यूटर विज्ञान की कोई मानक हिंदी शब्दावली अब तक नहीं बनी है. अच्छे रोजगार हासिल करने के अधिकतर रास्ते आज भी अंग्रेजी से होकर गुज़रते हैं.
सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम का इतिहास
ब्रिटिश शासन काल में जब सिविल सेवा परीक्षा की शुरुआत हुई थी तब यह परीक्षा केवल अंग्रेज़ी मीडियम में ही कराई जाती थी. लेकिन इमरजेंसी के बाद मोरारजी देसाई की सरकार ने सिविल सेवा परीक्षा में सुधार के लिये कोठारी समिति का गठन किया था जिसके बाद फैसला लिया गया कि सिविल सेवा परीक्षा में उम्मीदवार अंग्रेज़ी के साथ हिंदी भाषा में भी एग्जाम दे सकते हैं.
इस फैसले के बाद भी साल 1990 तक हिंदी माध्यम में न के बराबर छात्र परिक्षा देने आते थे जिसके चलते तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह ने देसाई सरकार में गठित मंडल कमीशन की घोषणा को लागू कर दिया, और साल 1993 से सिविल सेवा परीक्षा में अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाने लगा.
जिसके बाद हिंदी मीडियम का परिणाम सुधरना शुरू हुआ. पहली बार साल 2000 में यूपीएससी पास करने वाले शीर्ष 10 परिक्षार्थी में छठवें और सातवें स्थान पर हिंदी मीडियम के छात्र रहे. साल 2002 में टॉप 100 में 20-25 अभ्यर्थी हिंदी माध्यम से थे. वहीं साल 2008 में तीसरे स्थान पर हिंदी माध्यम का दबदबा रहा था.
2011 के बाद से हिंदी माध्यम के परिणाम में आई गिरावट
- साल 2010 तक हिंदी मीडियम के लगभग 45 प्रतिशत अभ्यर्थी मुख्य परीक्षा में बैठते थे. और लगभग 20-22 प्रतिशत साक्षात्कार में शामिल होते भी थे.
- साल 2011 में सीसैट (सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट) लागू होने के बाद मुख्य परीक्षा में बैठने वाले इन अभ्यर्थियों की संख्या घटकर आधे से भी कम (करीब 15 फीसदी) हो गई.
- आमतौर पर मानविकी सब्जेक्ट होने के कारण हिंदी मीडियम के छात्रों का साइंस वालों की तुलना में नुकसान हुआ.
- 2015 में सी-सैट क्वालिफाइंग हुआ, लेकिन तब तक हिंदी का काफी नुकसान हो चुका था. आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 2011 और 2012 में हिंदी माध्यम का परिणाम करीब 3.5- 4 फीसदी ही रहा.
विश्व हिंदी दिवस का इतिहास
विश्व हिंदी दिवस को 10 जनवरी को मनाए जाने की घोषणा 10 जनवरी साल 2006 में भारत सरकार द्वारा की गई थी. इसे लेकर सबसे पहले विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में किया था.
इसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे. फिलहाल भारत समेत पोर्ट लुईस, स्पेन, लंदन, न्यूयॉर्क, जोहानिसबर्ग जैसे देशों में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा चुका है.
हिंदी दिवस से क्यों अलग है विश्व हिंदी दिवस
अक्सर लोगों को हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस को लेकर यह भ्रम रहता है कि दोनों एक ही हैं. लेकिन हिंदी दिवस को 14 सितंबर के दिन राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है, जबकि विश्व हिंदी दिवस को 10 जनवरी के दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है.
विश्व हिंदी दिवस मुख्य रूप से हिंदी भाषा के प्रचार पर केंद्रित है तो वहीं हिंदी दिवस विशेष रूप से भारत में हिंदी की मान्यता पर केंद्रित है.
हमारे देश में कई भाषाएं बोली और लिखी जाती हैं. लेकिन आजाद भारत के बाद विविधताओं वाले इस देश को जोड़ने और एकजुट करने के लिए सोच-विचार पर देवनागरी लिपि वाली भाषा हिंदी का राष्ट्रभाषा के रूप में चुनाव किया गया.