नई दिल्लीः कोविड -19 महामारी के कारण दुनिया भर में माइग्रेंट क्राइसिस की जैसी स्थित सामने आई, वैसी पहले कभी नहीं आई. इस महामारी ने माइग्रेंट्स की चुनौतियां और कठिनाइयां दुनिया के सामने उजागर की. भारत में पहली बार जब मार्च के अंत में अचानक लॉकडाउन लगाया गया तो लाखों प्रवासी कामगारों के सड़क पर आने के टीवी विजुअल्स अब भी हमारी मेमोरी में हैं.


इस साल इंटरनेशनल माइग्रेंट्स डे पर इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (IOM) ने विश्व समुदाय को एक साथ आने और उन शरणार्थियों और प्रवासियों को याद करने का आह्वान किया है जिन्होंने अपना जीवन खो दिया है. इंटरनेशनल माइग्रेंट्स डे हर साल 18 दिसंबर को मनाया जाता है. इस बार की थीम 'रिमैनिंग ह्यूमन मोबिलिटी' रखी गई है.


प्रवासी कौन माना जाता है
संयुक्त राष्ट्र माइग्रेशन एजेंसी के अनुसार, एक प्रवासी व्यक्ति (माइग्रेंट) वह है जो अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार या फिर देश के अंदर ही अपने निवास स्थान से दूर जाकर बस गया है. चाहे वह स्वैच्छिक रूप से या फिर दूसरे कारणों से बसा हो.


इंटरनेशनल माइग्रेंट्स डे से जुड़े तथ्य
ग्लोबल माइग्रेशन डेटा पोर्टल के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों या जन्म के देश के अलावा किसी अन्य देश में रहने वाले लोगों की संख्या 2019 में 272 मिलियन तक पहुंच गई थी. महिला प्रवासियों की संख्या कुल संख्या का 48 प्रतिशत है.
दुनिया भर में देखें तो लगभग 31 फीसदी अंतरराष्ट्रीय प्रवासी एशिया, यूरोप में 30 फीसदी, अमेरिका में 26 फीसदी, अफ्रीका में 10 फीसदी और ओशिनिया में तीन फीसदी हैं.


2000 में घोषित  हुआ था इंटरनेशनल माइग्रेंट्स डे
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2000 में 18 दिसंबर को इंटरनेशनल माइग्रेंट्स डे के रूप में घोषित किया. तब से हर साल 18 दिसंबर को इंटरनेशनल माइग्रेंट्स डे मनाया जाता है और इसकी हर बार अलग थीम रखी जाती है.


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