International Women's Day 2019: साहिर लुधियानवी, वह शायर जिसने कभी लिखा- औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
साहिर को हालातों ने सिखाया था कि दुनिया भर में जितनी भी रौनकें हैं वह औरतों के दम से हैं. जितने भी रास्ते रौशन हैं वह औरतों की वजह से ही है.
![International Women's Day 2019: साहिर लुधियानवी, वह शायर जिसने कभी लिखा- औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया International Women's Day 2019: sahir ludhianvi birthday special International Women's Day 2019: साहिर लुधियानवी, वह शायर जिसने कभी लिखा- औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2019/03/08084357/sahirludhyanvi.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
नई दिल्ली: वह शायर जिसने अपनी तबाहियों और ग़म में भी मोहब्बत ही लिखा. वह शायर जिसने जिंदगी का माहौल ख़ुश-गवार नहीं होने पर भी मोहब्बत का ही पैगाम दिया. वह शायर जिसने ताउम्र शबनम को शोलों पे मचलते देखा लेकिन लफ्जों से कभी अंगार की बातें नहीं की. वह जब लिखते थे तो लगता था जैसे ज़िंदगी को कागज पर उसी रूप में लिख दिया गया हो. उस शायर का नाम है साहिर लुधियानवी. साहिर और ग़म का साथ ऐसा रहा जैसे ज़िंदगी और सांसों के बीच का सबंध हो. यह उनके हालात ही थे जिसको लेकर साहिर ने कहा
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
किसी ने बड़ी खूबसूरत बात कही है कि एक पुरुष के निर्माण में किसी न किसी महिला का हाथ जरूर होता है. आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है और साथ ही एक ऐसे शख्स का जन्मदिन भी जिसके बनने की कहानी भी दो महिलाओं के इर्द-गिर्द घूमती है. आज मशहूर शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी का जन्मदिन है. किसी भी पुरुष की ज़िंदगी में उसकी मां और पत्नी या प्रेमिका का उसके व्यक्तित्व के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. साहिर की ज़िंदगी से भी उनकी मां और अमृता प्रीतम की झलक देखने को मिलती है.
मां से बेहद प्यार करते थे साहिर
साहिर का जन्म 8 मार्च 1921 में पंजाब के लुधियाना शहर में एक ज़मीदार परिवार में हुआ. उनका बचपन उनके मोहब्बत के गीतों की तरह खुशग़वार नहीं रही.उनके वालिद और वालिदा के बीच रिश्तें काफी तल्ख़ भरे थे. खराब रिश्तों की वजह से हर दिन घर में झगड़ा होता था. यही कारण रहा कि एक वक्त पर जब उनके वालिद ने दूसरी शादी कर ली तब उनकी वालिदा उनको लेकर लुधियाना से लाहौर चली गईं.
साहिर अपनी मां से कितनी मोहब्बत करते थे इसका एक उदाहरण यह है कि जब लुधियाना से उनकी मां उन्हें लेकर लाहौर जा रही थीं तब साहिर महज 13 साल के थे. ट्रेन में अपनी मां से लिपटे साहिर ने कहा ‘अम्मी, मैं अब्बा की गालियां और मार रोज़ खा लूंगा, उफ़ तक नहीं करूंगा. पर चलो, ख़ुदा के वास्ते चलो यहां से.’ इस पर उनकी वालिदा ने उत्तर दिया, ‘अब यही अपना घर है और यहीं रहना है हमको, बेटा’. अपने अब्बा को भूल जाओ. वो ज़ालिम इंसान है. क्योंकि वो तुमसे नफरत करता हैं.''
यह कहते ही साहिर की वालिदा की आंखों से आंसू गिरने लगे. मां को रोता देख साहिर भी जोर-जोर से रोने लगे. ‘अम्मी, वादा करो तुम मुझे कभी छोड़ कर न जाओगी.’ अपने वालिद का अपनी वालिदा के लिए खराब व्यवहार ने साहिर के बाल अवस्था या बाल मन पर उसका ऐसा प्रभाव छोड़ा कि उन्होंने बड़े हो कर लिखा
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
साहिर का अपनी मां से प्यार ही था जिसकी वजह से औरतों के दर्द, उनके सम्मान और अधिकार की बात वह अपने शेरों और गीतों में करते रहे.
अमृता और साहिर
साहिर के व्यक्तित्व के दो महत्वपूर्ण पहलू थे. एक आशिकाना और दूसरा शायराना. जब भी उनके आशिकाना पहलू पर चर्चा होती है तो एक नाम जहन में अचानक याद आ जाता है. वह नाम अमृता प्रीतम का है. साहिर ने ताउम्र इश्क़ पर लिखा लेकिन खुद तन्हा ही रहे.
सबसे पहला इश्क़ प्रेम चौधरी से हुआ जिसके पिता ने उन्हें लाहौर कॉलेज से ही निकलवा दिया. फिर आयीं इसर कौर. कुछ दिन इश्क़ चला पर यहां भी बात नहीं बनी. कभी स्याह तो कभी सुर्ख रौशनाई ने मोहब्बत में रंग फिर भरे और उनकी जिंदगी में अमृता प्रीतम आईं. दोनों के बीच प्यार के पैगामों का सिलसिला यूं चला की एक न होकर भी दोनों एक-दूसरे से जुदा न हो पाए. उनका प्यार जमाने से अलहदा था. इश्क की पहले से खिंची लकीरों से जुदा था. अधूरी मोहब्बत का ये वो मुकम्मल अफसाना है जिसकी मिसाल इश्क करने वाले आज तक देते हैं. उनके लेखनी में कई जगहों पर अमृता के साथ एक अधूरी प्रेम कहानी जो अधूरी होकर भी पूरी थी वह देखने को मिलती है.
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
साहिर ने जिंदगी को बेहद करीब से देखा और जिंदगी में घटने वाली हर वाकये पर लिखा. उन्हें बनावटी दुनिया से सख्त नफरत थी. खासकर उस दुनिया से जहां लोग एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं और जब भी जी चाहता है नई दुनिया बसा लेते हैं. साहिर ने अपनी लेखनी को लेकर कभी खुद ही कहा था
दुनिया ने तजुरबातो-हवादिस की शक्ल में जो कुछ मुझे दिया है लौटा रहा हूं मैं
साहिर को हालातों ने सिखाया था कि दुनिया भर में जितनी भी रौनकें हैं वह औरतों के दम से हैं. जितने भी रास्ते रौशन हैं वह औरतों की वजह से ही है. दरअसल साहिर समझते थे कि किसी भी मर्द के लिए एक अच्छा इंसान बनने की पहली और आखिरी शर्त एक औरत का सम्मान और उसकी भावनाओं की कद्र करना है. साहिर का व्यक्तित्व बिलकुल फ़रहत एहसास के इस शेर की तरह था
किस्सा-ए-आलम में एक और ही वहदत पैदा कर ली है मैंने अपने अंदर अपनी औरत पैदा कर ली है
![IOI](https://cdn.abplive.com/images/IOA-countdown.png)
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![शिवाजी सरकार](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/5635d32963c9cc7c53a3f715fa284487.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)