नई दिल्ली: कोरोना काल में फील्ड पर उतरकर जनसेवा का प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करती चाणक्यपुरी की एसीपी प्रज्ञा आनंद के परिश्रम, मेहनत की कहानी बेहद प्रेरणादायक है. एबीपी न्यूज से एक्सक्लूसिव बातचीत में वो कहती हैं, "मैं बिहार की रहने वाली हूं. 2007 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. इंटरनेशनल रिलेशन में जेएनयू से एमए और फिर एमफिल किया. एमए के दौरान यूपीएससी की तैयारी भी की. पिछला साल सभी के लिए मुश्किल रहा. पहले से किसी के पास कोई जानकारी नहीं थी. खुद को प्रोत्साहित रखना था तभी टीम को मार्ग दिखा सकते थे. मार्च में लॉकडाउन लग गया था."


एसीपी प्रज्ञा आनंद बताती हैं कि मेरी शादी 3 मई को तय हुई थी. पहले जब लॉकडाउन लगा था तो अंदाजा नही था कि लॉकडॉन तीन महीने तक बढ़ जाएगा. उन्होंने कहा, "मेरे पति भी पुलिस में हैं और उन्होंने भी ड्यूटी और जिम्मेदारी को उस समय प्राथमिकता दी और हमने नवंबर के महीने में शादी की. मैं रोज सुबह जल्दी उठ कर खाना बनाती थी, पैक करती थी, फिर ड्यूटी पर आती थी. इतना खाना मैंने जीवन में कभी नहीं बनाया जितना इस एक महीने में बनाया."


कोरोना काल में पुलिस मुलाजिमों ने फ्रंट वारियर के तौर पर अहम भूमिका निभाई. एसीपी बताती हैं कि कई पुलिस कर्मी दूर से आते थे और ट्रांसपोर्ट उपलब्ध ना होने पर उनका आना-जाना मुश्किल था. इसलिए हमने उनके रहने की व्यवस्था की थी.


उस मुश्किल समय को याद करते हुए एसीपी एक वाक्या साझा करते हुए कहती हैं, "एक दफा मुझे बुखार जैसा लग रहा था और घर पर मेरे भाई आए थे, मैं उनसे मिलना तो चाहती थी, लेकिन ये सोच कर घर नहीं गई कि कहीं वो बीमार हो गए तो इस मुश्किल वक्त में उनका ध्यान कौन और कैसे रखेगा. इसलिए मैने ऑफिस में ही पूरी रात गुजारी थी."


महिला दिवस पर संदेश देते हुए उन्होंने कहा, "कोई ऐसी शक्ति नहीं जो हमे डरा सके , हरा सके. सभी चुनौतियों से लड़ने की क्षमता और शक्ति आपके अंदर ही है, उसे पहचानने की जरूरत है."


दिल्ली पुलिस में करीब 11000 यानी 13 फीसदी महिला पुलिस कर्मी हैं और आज पुलिसिंग का आधिकतर काम महिला पुलिसकर्मियों के जिम्मे रहा.