Maharashtra: महाराष्ट्र में जांच एजेंसियों को ड्रोन हमलों से जुड़ी बातचीत का चला पता, साइबर सिक्योरिटी प्रोजेक्ट से क्या होगा फायदा?
Maharashtra : ड्रोन अटैक में 20 किमी से 30 किमी की दूरी से भी अटैक किया जा सकता है. ड्रोन पर पेलोड लगाए जा सकते हैं. इसके अलावा इन्हें बैकट्रैक करना आसान नहीं होता है.
Maharashtra Drone: ड्रोन जितने ही उपयोगी होते हैं उतने ही ख़तरनाक भी होते हैं. ऐसे में जम्मू कश्मीर और पंजाब में लगातार ड्रोन से होने वाले संभावित हमले के बारे में केंद्रीय जांच एजेंसी लगातार अलर्ट करते रहती हैं. इसके अलावा जांच एजेंसियों को हाल में पता चला है कि डार्क नेट पर कई लाइट माइंडेड टेररिस्ट के द्वारा मुंबई और महाराष्ट्र में ड्रोन हमलों को लेकर बातचीत हो रही है. महाराष्ट्र के साइबर IG यशस्वी यादव (Yashaswi yadav) ने बताया कि डार्क नेट पर टेररिस्ट sympathisers ड्रोन हमलों, केमिकल अटैक और साइबर अटैक के बारे में बात करते पाए जाते हैं. सरफेस नेट की तुलना में डार्क नेट 99% होता है. डार्क नेट में टोर ब्राउज़र इस्तेमाल होता है जिसे आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता है. क्योंकि उसमें कई प्रॉक्सी बाउंसिंग इस्तेमाल होती है. बता दें कि अक्सर मुंबई समेत दूसरे महत्वपूर्ण शहरों पर ड्रोन हमलों को लेकर अलर्ट आते रहते हैं.
आख़िर क्यों ख़तरनाक है ड्रोन अटैक?
महाराष्ट्र के साइबर IG यशस्वी यादव (Yashaswi yadav) ने कहा महाराष्ट्र में एन्टी ड्रोन सिस्टम (Anti Drone System) को जल्दी से जल्दी लगाया जाना चाहिए. ड्रोन अटैक में 20 किमी से 30 किमी की दूरी से भी अटैक किया जा सकता है. ड्रोन पर पेलोड लगाए जा सकते हैं. इसके अलावा इन्हें बैकट्रैक करना आसान नहीं होता है. अगर कोई क्रिमिनल मोबाइल फोन का इस्तेमाल करता है तो उसके IMEI नंबर से उसका पता लगा सकते हैं लेकिन ड्रोन को बैकट्रैक करके क्रिमिनल का पता नहीं लगाया जा सकता है. इसके अलावा साइबर क्राइम या साइबर आतंकवाद के बढ़ते खतरे को देखते हुए अब महाराष्ट्र पूरे देश मे ऐसा पहला राज्य बनने जा रहा है और अब अलग अलग साइबर सेल के लिए एक नोडल एजेंसी का प्रोजेक्ट लेकर आ रहा है. महाराष्ट्र के गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल ने बताया कि इस साइबर सिक्योरिटी नाम के प्रोजेक्ट के लिए क़रीब 900 करोड़ का बजट रखा गया है.
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साइबर अटैकर्स कितने खतरनाक?
आपको बता दें कि 12 अक्टूबर 2020 को अचानक से मुंबई और इसके आसपास की बिजली गुल हो गई थी और जांच में पता चला था कि ये एक साइबर अटैक था. इन्वेस्टिगेशन में पता चला था कि महाट्रांसको के सर्वर पर 13 ट्रॉजन हौरसेस थे. साइबर क्राइम से जुड़ी मामलों की जांच कर रहे अधिकारियों का मानना है कि आज की तारीख़ में साइबर क्राइम पूरी दुनिया में 3 ट्रिलियन की इकोनॉमी है. आइए आपको बताते हैं कि कितना ख़तरनाक हो सकता है ये साइबर अटैकर्स ये लोग ट्रेन सिग्नलिंग सिस्टम को हैक करके ट्रेनों को भिड़ा सकते हैं, वॉटर प्यूरिफिकेशन सेंटर में वॉटर में ज़हर मिलाया जा सकता है.
महाराष्ट्र राज्य के गृहमंत्री दिलीप वालसे पाटिल (Dilip Walse Patil) ने बताया कि इसी को ध्यान में रख कर अब महाराष्ट्र सरकार देश मे पहली बार साइबर सिक्योरिटी प्रोजेक्ट लेकर आ रही है. ये करीब 900 करोड़ का प्रोजेक्ट है जिसे नवी मुंबई के महापे इलाके में बनाया जाने वाला है. इस प्रोजेक्ट के लिए क़रीब 1 लाख स्क्वायर फुट की बिल्डिंग को लिया गया है जहां पर इसे इंस्टॉल करने का काम शुरू किया जाने वाला है.
क्या करेगा ये साइबर सिक्योरिटी प्रोजेक्ट
इस प्रोजेक्ट की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सर्ट (CERT) महाराष्ट्र यानि क्रिटिकल इमरजेंसी रिस्पांस टीम. इसमें विश्व के सबसे बेहतरीन टूल्स, सॉफ्टवेयर और एक्सपर्ट्स की टीम रहेगी, जो पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर काम करेगी. इसकी मदद से महाराष्ट्र में अगर कही पर भी साइबर क्राइम हुआ जैसे रेंसमव्हेर, हैकिंग, पोर्नोग्राफी की कोशिश हुई तो उसे रोकने की कोशिश की जाएगी. TAI यानि की टेक्नोलॉजी असिस्टेड इन्वेस्टिगेशन - कोई भी क्रिमिनल अगर क्राइम के लिए किसी भी तरह के टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करेगा जैसे कि सेल फ़ोन्स, टॉवर लोकेशंस, लैपटॉप्स का इस्तेमाल होना, इन मामलों में साइबर सिक्योरिटी प्रोजेक्ट की टीम बेस्ट टूल्स और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके इंवेस्टिगेशन करेंगी.
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COE यानि की सेंटर ऑफ एक्ससिलेंस
सेंटर ऑफ एक्ससिलेंस में प्राइवेट सेक्टर, जुडिशरी से जुड़े लोगों को, लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों से जुड़े लोगों को साइबर सिक्योरिटी के बारे में वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग दी जाएगी.
अगर किसी भी हमले या साइबर हमले या किसी भी तरह के क्राइम में किसी मेल या सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जाता है तो इस नोडल एजेंसी की मदद से उसका IP एड्रेस भी तुरंत खोज लिया जाएगा. हाल ही में जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के इस्तेमाल को लेकर भी बहुत विवाद हुआ था. इस प्रोजेक्ट के ज़रिए बेहद कम वक्त इस तरह के जासूसी सॉफ्टवेयर्स का पता लगाया जा सकेगा. इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट के तहत एथिकल हैकिंग को बढ़ावा देने के लिए हेकाथोन भी कराया जाएगा. कई अहम मामलों की जांच के लिए थर्ड पार्टी ऑडिट करनी पड़ती है, लेकिन इस प्रोजेक्ट के बाद से सब कुछ एक ही जगह पर बैठकर किया जा सकेगा.