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ईरान-अमेरिका की तकरार से भारत को नुकसान, अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है सीधा असर

ईरान और अमेरिका के बीच तनातनी का सबसे ज्यादा असर भारत के कच्चे तेल के आयात पर पड़ता है. एक अनुमान के मुताबिक अगर कच्चे तेल की कीमत $10 प्रति बैरल बढ़ती है तो भारत को हर महीने तकरीबन 1.5 अरब डॉलर ज्यादा चुकाने होंगे.

नई दिल्ली: ईरान और अमेरिका के आमने-सामने आने से पूरी दुनिया में हलचल तेज हो गई है. ऐसे में सभी देश अपना-अपना रुख और नफा नुकसान जांच रहे हैं. अगर हम बात भारत की करें तो ईरान और अमेरिका के बीच तनातनी का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है. कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर ईरान और अमेरिकी तनातनी का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था को झेलना पड़ेगा.

कच्चे तेल का आयात

यूं तो भारत सीधे तौर पर ईरान से कच्चे तेल का आयात नहीं करता है. लेकिन बावजूद इसके ईरान और अमेरिका के बीच तनातनी का सबसे ज्यादा असर भारत के कच्चे तेल के आयात पर पड़ता है. इसकी बानगी बीते कुछ दिनों के दौरान देखने को भी मिली है. अगर कच्चे तेल के दाम बढ़ते हैं तो मौजूदा समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बेहद नुकसानदायक होगा. एक अनुमान के मुताबिक अगर कच्चे तेल की कीमत $10 प्रति बैरल बढ़ती है तो भारत को हर महीने तकरीबन 1.5 अरब डॉलर ज्यादा चुकाने होंगे. भारत अपनी तेल की जरूरतों का 83 फ़ीसदी हिस्सा आयात से पूरा करता है. इसमें से बड़ा हिस्सा खाड़ी के देशों से ही आता है. अगर ईरान और अमेरिका के बीच तनातनी बढ़ती है तो पूरा खाड़ी क्षेत्र अस्थिर हो जाता है. इसलिए कच्चे तेल के दाम बढ़ने की आशंका बन जाती है.

वहीं अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ता है. अगर कच्चे तेल की कीमत में $10 प्रति बैरल की बढ़ोतरी होती है तो देश में महंगाई दर 0.4 फ़ीसदी बढ़ जाती है. वहीं अगर महंगाई बढ़ती है तो रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कमी नहीं कर सकता है. इसका सीधा असर लोगों की और कॉरपोरेट की कर्ज लेने की क्षमता पर पड़ता है. अगर लोग कम कर्ज लेंगे और कॉरपोरेट कर्ज लेकर निवेश नहीं करेंगे तो इसका असर रोजगार पर पड़ता है. इसको इस तरह से समझा जा सकता है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो भारतीय अर्थव्यवस्था एक कुचक्र में फंस जाती है. एक तरफ तो भारत को कच्चे तेल के लिए ज्यादा डॉलर चुकाने पड़ेंगे वहीं दूसरी तरफ रसोई गैस पर ज्यादा सब्सिडी देनी होगी. यानी एक तरफ ज्यादा डॉलर चुकाने होंगे तो वहीं दूसरी तरफ सरकार का सब्सिडी बोझ भी बढ़ जाएगा.

व्यापार को सीधा झटका

ईरान, भारत का मुख्य व्यापारिक साझेदार है. ईरान और भारत के बीच व्यापार लगातार बढ़ाने पर दोनों देशों का जोर भी रहा है. ईरान मुख्य तौर पर उर्वरक और केमिकल्स का भारत को निर्यात करता है. वहीं दूसरी तरफ भारत ईरान को अनाज, चाय, कॉफी, बासमती चावल, मसाले और ऑर्गेनिक केमिकल्स निर्यात करता है. 2018-19 में भारत ने लगभग 24000 करोड़ रुपए का निर्यात ईरान को किया था. ऐसे में अगर ईरान अस्थिर होता है तो इस व्यापारिक निर्यात को सीधे तौर पर झटका लगेगा.

पीटीए को झटका

ईरान और भारत पीटीए यानी प्रेफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर बातचीत कर रहे हैं. पीटीए के तहत दोनों देश अपने बहुत से उत्पादों पर शुल्क और ड्यूटीज खत्म कर सकते हैं जिसके चलते इन उत्पादों का आयात और निर्यात तेजी के साथ बढ़ जाएगा और इसका सीधा फायदा दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को होगा. लेकिन अगर ईरान और अमेरिका के बीच मौजूदा तनातनी आगे बढ़ती है तो भारत और ईरान के बीच पीटीए को लेकर होने वाली बातचीत भी थम सकती है. ऐसे में दोनों देशों को इसका नुकसान होगा.

विदेशी पैसे पर झटका

बड़ी संख्या में भारतीय ईरान समेत खाड़ी के देशों में रहते हैं. अगर ईरान और अमेरिका के बीच माहौल गर्म रहता है तो पूरा खाड़ी क्षेत्र अस्थिर होता है. इसका सीधा असर प्रवासी भारतीयों द्वारा भारत को भेजे जाने वाली रकम पर पड़ता है. एक अनुमान के मुताबिक लगभग 7000000 प्रवासी भारतीय सालाना 40 अरब डॉलर विदेशी पैसा भारत में रहने वाले अपने परिवार के लोगों को भेजते हैं. इन प्रवासी भारतीयों में भी सबसे बड़ी संख्या केरल, बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों की है. अगर ईरान और अमेरिका के बीच तकरार बढ़ती है तो वहां रहने वाले प्रवासी भारतीयों पर इसका सीधा असर पड़ता है. ऐसे में बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय वापस भारत भी आ सकते हैं. एक तरफ जहां प्रवासी भारतीयों से आने वाले पैसे को झटका लगेगा वहीं दूसरी तरफ अगर बड़ी संख्या में लोग वापस आ जाते हैं तो उनके लिए रोजगार मुहैया कराना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन जाएगा.

चाबहार पोर्ट परियोजना को झटका

अगर अमेरिका और ईरान के बीच तकरार आगे बढ़ती है तो इसका भारत को सामरिक रूप से एक और बड़ा झटका लग सकता है. भारत ईरान में चाबहार पोर्ट को विकसित करना चाहता है. इस पोर्ट के जरिए भारत पाकिस्तान को बाईपास कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया से सीधे तौर पर व्यापार कर सकेगा. इसी मकसद से भारत इस बंदरगाह को विकसित करना चाहता है. अगर ईरान और अमेरिका के बीच इसी तरीके से आमना सामना होता रहता है तो इस भविष्य की परियोजना को भी बड़ा झटका लग सकता है. ऐसे असंतुलित माहौल में कोई भी कंपनी, यहां तक कि भारतीय कंपनियां भी, इस परियोजना में निवेश करने से दूरी बना लेंगी.

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