Amritpal Singh Profile: 30 साल का एक आदमी जो करीब 10 साल तक दुबई में रहा और जब भारत लौटा तो पंजाब सरकार के लिए सिरदर्द बन चुका है. आज पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे देश में उसके नाम की चर्चा हो रही है. उसका नाम है अमृतपाल सिंह संधू. उसके बयान, उसके कारनामे और उसकी वेशभूषा अब इस बात की गवाही देने लगे हैं कि अगर इसे जल्द ही रोका नहीं गया तो फिर ये पंजाब का दूसरा जरनैल सिंह भिंडरावाले बन सकता है, जिसकी वजह से ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ और जिसके बदले के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या तक हो गई थी.
पंजाब का अमृतसर जिला स्वर्ण मंदिर के कारण पूरी दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखता है. दुनियाभर के सिखों के लिए यहां की धरती स्वर्ग के समान है. इसी धरती से अमृतपाल सिंह का भी ताल्लुक है. वह अमृतसर की बाबा बकाला तहसील के जल्लूपुर खैरा का रहने वाला है. 2022 से पहले अमृतपाल सिंह की कोई खास पहचान नहीं थी. लेकिन 'वारिस पंजाब दे' संगठन का मुखिया बनकर भारत लौटा उसने सबसे पहले पंजाब में ड्रग्स के विरोध में अभियान चलाया. अमृत प्रचार अभियान शुरू किया, जिसका मकसद लोगों को निहंग सिख का हिस्सा बनाना था. थोड़े और सख्त लहजे में कहें तो अमृतपाल सिंह ने घर वापसी का अभियान शुरू कर दिया.
अमृत प्रचार अभियान का पहला आयोजन उसने राजस्थान के गंगानगर में किया, यहां उसने 647 लोगों को अमृत चखाकर निहंग सिख में बदल दिया. फिर उसने आनंदपुर साहिब में कुल 927 हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों को अमृत चखाया और निहंग सिख बनाया. उसके इस कारनामे को देखकर हरियाणा सरकार के तहत आने वाली हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी ने उसे अपना समर्थन दे दिया. फिर तो उसका कारवां बढ़ता ही गया.
किसान आंदोलन का समर्थक रहा
2019 में शुरू हुए किसान आंदोलन का भी उसने खुलकर समर्थन किया था, जिसने उसे पंजाब में एक नई पहचान दी थी. दीप सिद्धू की सड़क हादसे में मौत के बाद वो दुबई में अपना कारोबार छोड़कर 'वारिस पंजाब दे' का मुखिया बनने के लिए भारत लौटा और खालिस्तानी आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले के गांव पहुंचा. यहीं खालिस्तानी नारेबाजी के बीच उसकी ताजपोशी हुई. इस ताजपोशी के दौरान उसकी पूरी वेशभूषा जरनैल सिंह भिंडरावाले की तरह ही थी.
भिंडरावाले को मानता है आदर्श
भिंडरावाले को अपना आदर्श मानने वाले अमृतपाल सिंह का कहना है, "मैं जरनैल सिंह भिंडरावाले की पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हूं. मैं तो सिर्फ भिंडरवाले के दिखाए रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहा हूं." 23 नवंबर 2022 वो तारीख थी, जिसने अमृतपाल सिंह को पंजाब में एक नई पहचान दे दी. इस दिन वो तमाम जिलों में रोडशो करते हुए हजारों की संख्या में अपने अनुयायियों के साथ श्रीअकाल तख्त पहुंचा. पंजाब को ड्रग्स मुक्त बनाने की मुहिम के बहाने उसने बड़ी संख्या में युवाओं को अपने साथ जोड़ा और उन्हें खालिस्तान के लिए प्रेरित किया.
साल 2022 खत्म होते-होते उसने समर्थकों की एक बड़ी फौज खड़ी कर ली, जिसने धार्मिक उन्माद भड़काने के साथ ही पंजाब की पुलिस को भी चुनौती देनी शुरू कर दी. अक्टूबर 2022 में उसने जीसस क्राइस्ट के खिलाफ टिप्पणी की थी, जिसकी वजह से ईसाई समुदाय के लोग भड़क गए थे और अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी की मांग की. खालिस्तान का समर्थन करने की वजह से ही भारत सरकार ने अक्टूबर में ही उसका ट्विटर अकाउंड तक सस्पेंड कर दिया. 15 फरवरी 2023 को अमृतसर के अजनाला थाने में अमृतपाल सिंह और उसके 6 समर्थकों के खिलाफ किडनैपिंग और मारपीट समेत कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज हुआ.
अमित शाह को दे चुका है धमकी
इस बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक बयान दिया कि पंजाब में खालिस्तान समर्थित गतिविधियों पर सरकार की नजर है. गृहमंत्री के इस बयान पर 19 फरवरी को अमृतपाल ने शाह को ही धमकी दे दी. उसने कहा, "शाह को कह दो कि पंजाब का बच्चा-बच्चा खालिस्तान की बात करता है. जो करना है कर ले. हम अपना राज मांग रहे हैं, किसी दूसरे का नहीं. हमें न इंदिरा हटा सकी थी और न ही मोदी या अमित शाह हटा सकता है. दुनिया भर की फौजें आ जाएं, हम मरते मर जाएंगे, लेकिन अपना दावा नहीं छोड़ेंगे. इंदिरा ने भी हमें दबाने की कोशिश की थी, क्या हश्र हुआ. अब अमित शाह अपनी इच्छा पूरी कर के देख लें."
जब इस बयान पर विवाद बढ़ा तो अमृतपाल सिंह 22 फरवरी को अपनी बात से पलट गया, लेकिन उसका लहजा खालिस्तान के लिए नरम नहीं हुआ. उसने कहा, "हिन्दू राष्ट्र की बात करने पर सरकारें कोई कार्रवाई नहीं करती, लेकिन जब सिख खालिस्तान और मुस्लिम जिहाद की बात करते हैं तो सरकार तुरंत एक्शन ले लेती हैं." इस बात पर विवाद चल ही रहा था कि पुलिस ने उसके साथी तूफान सिंह को गिरफ्तार कर लिया. इस गिरफ्तारी के विरोध में 23 फरवरी की सुबह अमृतपाल सिंह ने अपने हजारों समर्थकों के साथ अजनाला थाने पर चढ़ाई कर दी.
तूफान सिंह को रिहा करना पड़ा
पुलिस के साथ उसके समर्थकों की झड़प भी हुई, जिसमें 6 पुलिसवाले भी घायल हो गए. उसने पंजाब सरकार को एक घंटे के भीतर तूफान सिंह को छोड़ने का अल्टीमेटम दिया. उसके अल्टीमेटम पर पंजाब सरकार ने झुकते हुए तूफान सिंह को रिहा कर दिया. इस पूरे हंगामे के बाद अमृतसर के पुलिस कमिश्नर जसकरण सिंह ने कहा, "तूफान को छोड़ा जा रहा है. उसके समर्थकों ने उसकी बेगुनाही के पर्याप्त सबूत दिए हैं. मामले की जांच के लिए एसपी तेजबीर सिंह हुंदल की अगुवाई में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई गई है."
भिंडरावाले की याद ताजा हुई
पुलिस के इस रवैये ने पंजाब की बिगड़ती स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. 80 के दशक में भी ऐसे ही हालात थे. तब पंजाह में कांग्रेस ने अकाली दल को कमजोर करने के लिए जरनैल सिंह भिंडरावाले पर भरोसा जताया था. वो उस वक्त दमदमी टकसाल का मुखिया था. वह सिखों को कट्टरपंथी बना रहा था. इसी कारण उसकी निरंकारियों से दुश्मनी हो गई थी. इस दुश्मनी में दोनों समुदायों के बीच काफी हिंसा हुई. 24 अप्रैल 1980 को हुई निरंकारी संप्रदाय के तीसरे गुरु गुरुबचन सिंह की हत्या में भी भिंडरावाले और उसके लोगों का ही नाम सामने आया था. पंजाब केसरी अखबार के संपादक रहे लाला जगत नारायण की हत्या में भी भिंडरावाले का ही हाथ था.
इन दो हत्याओं की वजह से कांग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडरावाले को गिरफ्तार करवा दिया. इंदिरा गांधी के आदेश पर भिंडरावाले को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके विरोध में पंजाब जल उठा और पुलिस को दो दिन के अंदर ही भिंडरावाले को रिहा करना पड़ा. इसके बाद पूरा पंजाब उग्रवाद की आग में जलने लगा. 25 अप्रैल 1983 को उसने पंजाब पुलिस के डीआईजी अवतार सिंह अटवाल की हत्या करा दी. भिंडरावाले के डर से 2 घंटे तक डीआईजी का शव किसी ने छुआ तक नहीं था. जब भिंडरावाले ने बॉडी उठाने की इजाजत दी, तभी पुलिस अपने अधिकारी के शव को उठाया था.
इंदिरा गांधी को लेना पड़ा था एक्शन
ये इंदिरा गांधी की सत्ता को खुली चुनौती थी. और इंदिरा को चुनौती कतई पसंद नहीं थी. इसके बावजूद इंदिरा कोई ऐक्शन नहीं ले पा रही थीं, क्योंकि मामला सिखों की धार्मिक पहचान से जुड़ा था. लेकिन 5 अक्टूबर, 1983 को जब भिंडवाले के लोगों ने ढिलवान बस नरसंहार को अंजाम दिया, जिसमें एक बस को घेरकर छह हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी, तो इंदिरा का सब्र जवाब दे गया. उन्होंने कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे दरबारा सिंह की सरकार को भंग कर दिया और पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया.
इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने भिंडरावाले से बात करने की भी कोशिश की. लेकिन नाकामयाबी ही हाथ लगी और तब आखिर में इंदिरा ने वो फैसला किया जो बाद में उनकी हत्या की वजह बन गया. इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार करने की मंजूरी दे दी. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के जवानों के साथ ही सीआरपीएफ, बीएसएफ और पंजाब पुलिस के भी जवान शामिल थे. ऑपरेशन की कमान संभाली लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह ब्रार ने, जो खुद एक सिख थे.
3 जून 1984 को हुआ ऑपरेशन ब्लू स्टार
3 जून 1984 को भारतीय सेना ने पूरे गोल्डेन टेंपल को चारों तरफ से घेर लिया. सिखों की धार्मिक भावनाएं आहत न हों, इसके लिए लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह ब्रार ने ऑपरेशन शुरू होने से पहले जवानों को संबोधित करते हुए कहा, "ये ऐक्शन न तो सिखों के खिलाफ है और न ही सिख धर्म के खिलाफ. ये ऐक्शन आतंकवाद के खिलाफ है. अगर किसी को भी लगता है कि उसकी धार्मिक भावनाएं इससे आहत हो रही हैं या फिर और भी कोई दूसरी धार्मिक वजहें हैं तो वो खुद को इस ऑपरेशन से अलग कर सकता है और इस अलगाव का किसी भी अधिकारी या जवान के करियर के ऊपर कोई असर नहीं होगा."
लेकिन ऑपरेशन में शामिल किसी भी अधिकारी या जवान ने खुद को इससे अलग नहीं किया. और इसमें बड़ी तादाद में सिख अधिकारी और जवान भी शामिल थे. 3 जून की शाम तक लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह ब्रार ने कोशिश की कि भिंडरावाले सरेंडर कर दे. बार-बार लाउडस्पीकर से ऐलान किया जाता रहा. बार-बार भिंडरवाले और उसके समर्थकों को समझाने की कोशिश की जाती रही. लेकिन कोई हल नहीं निकला. उल्टे भिंडरावाले की ओर से सेना के टैंक और तोपों पर हमला कर दिया गया.
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा की हत्या हुई
फिर सेना ने जवाबी कार्रवाई की. करीब 24 घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद भिंडरावाले मारा गया. इस ऑपरेशन के दौरान सेना के 83 जवान शहीद हो गए और कुल 249 जवान गंभीर रूप से घायल हो गए. वहीं इस ऑपरेशन में 493 आतंकी मारे गए और 1500 से ज्यादा गिरफ्तार हो गए. इस ऑपरेशन के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खूब आचोलना हुई. और आखिरकार इसी ऑपरेशन से नाराज दो सिखों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके बाद पूरे देश में सिख विरोधी दंग भड़क गए, जिसमें कम से कम 3000 सिखों की हत्या कर दी गई और लाखों सिखों को घर-बार छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.
इतना सब सिर्फ इसलिए हो पाया क्योंकि भिंडरावाले ने अपनी गिरफ्तारी के दो दिनों के अंदर ही समर्थकों के जरिए इतना उत्पात मचा दिया कि इंदिरा गांधी जैसी सरकार को झुकना पड़ा. और अब अमृतपाल के साथ भी यही हो रहा है. उसके एक साथी को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उसने थाने पर ही हमला कर दिया. बिना गोली चलाए पंजाब पुलिस को झुकने पर मजबूर कर दिया और ऐलानिया तौर पर कहा कि मैं अपने साथियों को जेल में सड़ने नहीं दे सकता.
पंजाब के लिए खतरे की घंटी
इस पूरे एपिसोड के बाद अमृतपाल के ये बयान पंजाब में 80 के दशक के उन भयानक पलों की याद दिला रहे हैं, जिनमें जरनैल सिंह भिंडरावाले का उभार हुआ और राजनीतिक सरपरस्ती में वो दमदमी टकसाल के मुखी से एक आतंकी में तब्दील हो गया. अब ये राजनीतिक सरपरस्ती अमृतपाल को भी मिल रही है, जिसने पंजाब में खतरे की घंटी तो बजा ही दी है. क्योंकि अगर बात आगे बढ़ी तो फिर किसी के रोके नहीं रुकेगी और पंजाब का इतिहास इसका गवाह है.
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