नई दिल्लीः कोरोना के इलाज को लेकर दुनिया भर में एक दावा किया जा रहा है. दावा है कि ब्लड प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना ठीक हो जाएगा. अब आपके मन में सवाल होगा कि क्या होता है ब्लड प्लाज्मा थेरेपी तो यहां आपको उसका जवाब मिल पाएगा.


ब्लड प्लाज्मा थेरेपी
ये एक तकनीक है, जिसमें कोरोना से ठीक हुए मरीज का खून कोरोना संक्रमित में चढ़ाया जाता है और इसके जरिए कोरोना वायरस का इलाज किया जाता है.


विस्तार से समझिए
एक कोरोना का मरीज है, जिसने कोरोना को मात दी है. वो ठीक इसलिए हो पाया कि क्योंकि उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ने कोरोना को हरा दिया. उसे खत्म कर दिया. अब कोरोना से ठीक हुए मरीज का खून इकट्ठा किया जाता है. उसके खून से प्लाज्मा निकाला जाता है और इस प्लाज्मा को नए कोरोना मरीज में चढ़ाया जाता है. ऐसा करने से कोरोना संक्रमित मरीज में एंटीबॉडिज बनाता है. उसके शरीर में कोरोना से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता मजूबत होती है. उम्मीद की जाती है कि कोरोना के खिलाफ तैयार हुए इस प्रतिरोधक क्षमता से कोरोना के विषाणु को खत्म किया जा सकता है.


ब्लड प्लाज्मा थेरेपी में बीमारी से स्वस्थ्य हुए मरीज के शरीर से प्लाज्मा निकाला जाता है. क्या होता है ब्लड प्लाज्मा इसे समझिए.


ब्लड प्लाज्मा शरीर में मौजूद पीले रंग का तरल होता है. ये खून में 55 फीसदी तक मौजूद रहता है. जबकि शरीर में 41 फीसदी के आसपास रेड ब्लड सेल और 4 परसेंट वाइट ब्लड सेल होते हैं. खून में मौजूद ब्लड प्लाज्मा की वजह से ही पूरे शरीर में रक्त का संचार होता है. ब्लड प्लाज्मा में 91 परसेंट पानी होता है जबकि 9 फीसदी हिस्से में शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व जैसे विटेमिन, मिनरल और प्रोटीन होता है.


देश में ब्लड प्लाज्मा थेरपी की बात चल रही है और दावा किया जा रहा है कि इलाज की इस तकनीक से कोरोना की बीमारी को जल्दी ठीक किया जा सकता है. लेकिन सवाल है कि कितनी कारगर है ये तकनीक. देश के स्वास्थ्य मंत्री और सबसे बड़े अस्पताल के एम्स के निदेशक से बात करने पर इसके बारे में जानकारी मिली है.


एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने क्या कहा
एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि कोरोना के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरपी का इस्तेमाल हो सकता है. एम्स इसपर काम कर रही है. कोरोना मरीज जब ठीक होता है तो उसमें प्रतिरोधक क्षमता पैदा होती है. अगर ठीक हुए मरीज में एंटीबॉडीज यानी प्रतिरोधक क्षमता की मात्रा ज्यादा होगी तो उसके खून का इस्तेमाल कोरोना मरीज में किया जाएगा. इसके लिए ठीक हुए मरीज के खून से प्लाज्मा निकाला जाएगा जिसमें प्रतिरोधक क्षमता मौजूद होगी. इस खून को बीमार मरीज में चढ़ाया जाएगा. ये मरीज की बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा.


एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया की बात से जो तथ्य समझ में आता है वो ये है कि ब्लड प्लाज्मा थेरपी तभी कारगर है जब कोरोना से ठीक हुए मरीज के शरीर में ज्यादा मात्रा में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली एंटीबॉडिज होगी.



डॉक्टक संदीप बुद्धिराजा ने क्या कहा
मैक्स हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर संदीप बुद्धिराजा ने कहा कि अगर कोई ऐसी दवा है जिसका दुनिया में इस्तेमाल किया गया हो और बाहर के देश में उसका रेगुलेटरी अप्रूवल मिला हुआ है जैसे प्लाज्मा का यूएसए में अप्रूवल मिला हुआ है और यह जानकारी अगर परिवार को है और वहां आकर हमें गुजारिश करें कि अपने मरीज को यह थेरेपी देना चाहते हैं क्योंकि इसका इस्तेमाल इन देशों में हुआ है और उसका फायदा हुआ है. हम इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं इसके रिस्क और इसके बेनिफिट को हम समझते हैं. जब मरीज के परिवार की तरफ से इस तरह की रिक्वेस्ट आती है तो इसको ऑफ लेवल कंपैशनेट ग्राउंड पर कंसीडर करते हैं उसका एक अपना अप्रूवल प्रोसेस होता है. उसकी एथिक्स कमेटी होती है अस्पताल की उसके अप्रूवल लिए जाते हैं उसके बाद ही यह ट्रीटमेंट दिया जा सकता है.


भारत में भी हुआ है प्रयोग
प्लाज्मा तकनीक की प्रक्रिया को समझने के बाद मैक्स हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर संदीप बुद्धिराजा से पूछा गय कि क्या इस तरह का प्रयोग पहले भारत में हुआ है तो उन्होंने कहा कि इस केस में जो डोनर था वह भी खुद मरीज के परिवार ने अरेंज किया था. एक महिला थी जिसे कोरोना पॉजिटिव हुआ था और 3 हफ्ते पहले वह बिल्कुल स्वस्थ हो चुकी थी. और वह डोनेट करने के लिए तैयार हो गई. इसके बाद उनसे 400 एमएल प्लाज्मा लिया गया.


उस मरीज से जो प्लाज्मा मिला था वह हमने 2 मरीजों को दिया था. एक की मृत्यु हो गई क्योंकि वह काफी उम्रदराज थी . दूसरे पेशेंट में इस थैरेपी के अलावा भी इलाज चल रहा है और वह अभी काफी स्टेबल है और उम्मीद है कि वह ठीक होंगे.


भारत में इस तकनीक का ट्रायल शुरू
भारत में इस तकनीक का ट्रायल शुरू हो गया है. ऐम्स भी इस तकनीक के इस्तमाल की तैयारी कर रहा है. दिल्ली में भी इस तकनीक का इस्तेमाल करने जा रहा है.


भारत के अलावा फ्रांस, चीन और अमेरिका जैसे देश भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर चुके हैं. साउथ कोरिया में 71 और 67 साल की दो मरीज इस थेरेपी के जरिए ठीक हो चुकी हैं. ऐसे ये तकनीक कोई नई नहीं है. इबोला जैसी बीमारी में भी इसका इस्तेमाल हुआ. जिसके अच्छे नतीजे मिले थे.


ABP न्यूज की पड़ताल में ये बात साफ है कोरोना के इलाज में ब्लड प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल संभव है. चूंकि कोरोना नई बीमारी है, इसे लेकर ज्यादा रिसर्च मौजूद नहीं है, लिहाजा इस तकनीक के इस्तेमाल से निश्चित परिणाम के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है.



इंटरनेट पर फैल रहे ऐसे दावों और अफवाहों का सच जानने के लिए सोमवार से शुक्रवार एबीपी न्यूज़ पर सुबह 8.30 बजे सच्चाई का सेंसेक्स जरुर देखें.