नई दिल्ली: दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है. मगर इस बीच चीन की भौगोलिक हसरतों पर कोई ब्रेक नहीं लगा है. ऐसे में चीन ने अपने एक सर्वेक्षण टीम दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर यानी माउंट एवरेस्ट को मापने के लिए भेजी है. माप की यह कवायद कोई नई नहीं हैं. मगर इसके साथ हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर चीनी मार्चाबंदी बढ़ाने और उसका नाम माउंट कोमोलांग्मा करने भी चल रही है जो इस पर्वत का तिब्बती नाम है.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, शनिवार को डेढ़ दर्जन से अधिक सदस्यों वाली चीनी सर्वे टीम बेस कैंप से रवाना हुई. इस टीम के 22 मई तक माउंट एवरेस्ट या कोमोलांग्मा शिखर पहुंचने की उम्मीद है. टीम में चीन के राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय के अधिकारी और पर्वतारोहण टीम के सदस्य हैं. एवरेस्ट की पैमाइश के लिए भेजी गई टीम को खराब मौसम के कारण कुछ रोज पहले वापस बेस कैंम्प लौटना पड़ा था. चीन की सर्वे टीम इस महीने की शुरुआत से चढ़ाई का प्रयास कर रही है.
शिन्हुआ के मुताबिक कोमोलांग्मा( माउंट एवरेस्ट) के सर्वेक्षण के लिए भेजी गई टीम के साथ ही एक सड़क निर्माण टीम भी काम कर रही है जो 8300 मीटक की ऊंचाई से एवरेस्ट की चोटी तक रास्ता बनाने में जुटी है. सर्वे टीम माउंट एवरेस्ट के उत्तरी और दक्षिणी सिरों से चढ़ाई में लगने वाले समय का भी आकलन कर रही है. गौरतलब है कि माउंट एवरेस्ट नेपाल और चीन के तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र की सीमा पर है. इसका उत्तरी सिरा तिब्बत ऑटोनॉमस रीजन के शिगेज इलाके में पड़ता है. वहीं रोचक है कि इस बारे में जारी सभी खबरों में चीन के समाचार माध्यम माउंट कोमोलांग्मा शब्द का ही इस्तेमाल करते आ रहे हैं.
महत्वपूर्ण है कि चीन माउंट एवरेस्ट पर अपनी तरफ के इलाके में स्थित बेस कैंप पर 2016 में ही सड़क बना चुका था. वहीं अब वो 8300 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद बेस कैंप से 8800 मी से अधिक ऊंचाई पर मौजूद एवरेस्ट के शिखर तक सड़क बनाने की तैयारी में है. चीनी सरकारी मीडिया के मुताबिक अप्रैल माह के अंत में उसने एवरेस्ट पर अपना 5जी नेटवर्क स्थापित कर दिया है.
दरअसल, नेपाल और चीन के बीच सीमा विवाद 1960 में सुलझ गया था जिसमें माउंट एवरेस्ट को दोनों देशों की सीमा के बीच में दर्शाया गया। एवरेस्ट का उत्तरी सिरा चीन के तिब्बत में हैं वहीं दक्षिणी सिरा नेपाल की तरफ. हालांकि 2005 में भेजे गए सर्वेक्षण मिशन के बाद से ही चीन ने माउंट एवरेस्ट पर अपना सैटेलाइट मॉनिटरिंग स्थापित कर दिया था.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब चीन ने अपनी निगरानी टीम को एवरेस्ट पर भेजा है. साल 1949 से लेकर अब तक छह बार चीन इस पर्वत चोटी पर अपनी पैमाइश टीम भेज चुका है. इसमें 1975 और 2005 में उसने एवरेस्ट की ऊंचाई क्रमशः 8848.13मी और 8844.3 मीटर बताई थी.
हालांकि 2015 में आए नेपाल के भीषण भूकंप के बाद चीन की भू-सर्वेक्षण एजेंसी नेशनल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ सर्वे, मैपिंग एंड जियोइंफोर्मेशन ने दावा किया कि माउंट एवरेस्ट 3 सेंटीमीटर उत्तर-पूर्व में खिसक गया है. इतना ही नहीं चीन के वैज्ञानिक दावों के मुताबिक एवरेस्ट 4 सेंटिमीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से बीते 10 सालों में करीब 40 सेंटीमीटर हटा है.
जाहिर है एवरेस्ट के उत्तर या उत्तर-पूर्व में सरकने का मतलब है उसके शिखर का चीन की हद में आना। अभी तक चीन ने एवरेस्ट शिखर के अपनी सीमा में होने का दावा तो नहीं किया है लेकिन
...तो नाम होता माउंट राधानाथ
एवरेस्ट के नाम को लेकर चल रहा चीनी खेल भी कम रोचक नहीं है. इस पर्वत के यूं तो कई नाम हैं. नेपाल में इसे सागरमाथा कहा जाता है तो तिब्बती में कोमोलांग्मा और चीनी भाषा में झोमुलांग्मा के नाम से जाना जाता है. वहीं भारत समते दुनिया के अधिकतर देशों में इसे माउंट एवरेस्ट के नाम से जाना जाता है जो 1830 से 1843 के बीच भारत में ब्रिटिश सर्वेयर जनरल के पद पर तैनात थे. मगर कम लोगों को यह पता होता कि न तो जॉर्ज एवरेस्ट का इस पर्वत की पैमाइश से कभी कोई रिश्ता रहा और न ही उन्होंने इसके संबंध में किसी प्रोजेक्ट को मंजूरी दी. यह नाम तो उनके उत्तराधिकारी एंड्र्यू वॉ ने दिया था.
दरअसल, 19वीं सदी के आधे हिस्से तक इसे माउंट 15 कहा जाता था. इसकी पहली बार पैमाइश का काम किया भारत के राधानाथ सिकदर ने जो एक गणितज्ञ थे और ग्रेट टिग्नोमैट्रिक सोसाइटी ऑफ इंडिया में काम करते थे. सिकदर बेहद मेधावी गणितज्ञ थे और उन्होंने ही विभिन्न स्थानों से उंचाई की तुलना करते हुए माउंट 15 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी बताया था. उनकी यह रिपोर्ट जब एंड्र्यू वॉ के पास जाने के भी करीब एक साल बाद इसकी घोषणा का फैसला लिया गया. वहीं वॉ ने एक भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदर को इसका श्रेय देने की बजाए अपने पूर्व बॉस के नाम पर इसका नामकरण किया. यहां तक कि रिटायर हो चुके जॉर्ज एवरेस्ट ने भी इसपर ऐतराज जताया था.
आजादी के बाद भी भारत ने माउंट एवरेस्ट के नामकरण में राधानाथ सिकदर के साथ हुए अन्याय को ठीक कराने में कोई पहल नहीं की. यद्यपि उनके योगदान को आधाकारिक योगदान को सार्वजनिक पहचान देते हुए साल 2004 में एक डाक टिकट जरूर जारी किया गया था. अगर भारत सरकार ने ब्रिटिश राज के दौरान अपने वैज्ञानिक को जायज हक दिलाने के लिए आवाज बुलंद की होती तो संभव है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट राधानाथ या माउंट सिकदर होती. कम से कम भारत में तो हो ही सकती थी.