नई दिल्ली: आरोप लगाना तो आसान होता है. लेकिन आरोपों को साबित करना मुश्किल. ईवीएम को लेकर आज जो हंगामा मचा वैसा ही हंगामा 2009 में भी था. तब चुनाव आयोग ने आरोप लगाने वालों से आरोप साबित करने को कहा था. लेकिन कोई ईवीएम को गलत साबित नहीं कर पाया. आरोप तो लगेंगे ही लेकिन सवाल ये है कि संवैधानिक पदों पर बैठे या बैठ चुके जो नेता ऐसे आरोप लगा रहे हैं उन आरोपों की सच्चाई क्या है. कैसे साबित होगा कि ईवीएम सच्चे हैं और आरोप लगाने वाले नेता झूठे हैं.


इस सवाल का जवाब एबीपी न्यूज़ ने उन लोगों से लिया, जिन्होंने सालों तक देश में चुनाव कराए और इसी ईवीएम का इस्तेमाल किया. चुनाव आयोग में काम कर चुके पूर्व चुनाव आयुक्तों के एक्सपर्ट पैनल से ईवीएम को लेकर सवाल किया गया. एबीपी न्यूज ने नए आरोपों पर पूर्व चुनाव आयुक्तों के पैनल से पूछा कि सच क्या है और सबका एक ही जवाब कि ईवीएम से छेड़छाड़ नामुमकिन है.


जानें एचएस ब्रह्मा ने ईवीएम पर क्या कहा?



एचएस ब्रह्मा ने 2010 से 2015 तक देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे. 2014 के जिस लोकसभा चुनाव में मोदी शानदार जीत के बाद देश के पीएम बने थे, वो चुनाव ब्रह्मा और उनकी टीम ने ही कराया था. ब्रह्मा जब पूछा गया कि क्या ईवीएम से छेड़छाड़ संभव है तो उनका जबाब था कि छेड़छाड़ असंभव है. उन्होंने कहा कि ईवीएम पर कड़ी निगरानी रहती है.


ब्रह्मा एक बड़ी बात कह रहे हैं कि जिन ईवीएम मशीन से चुनाव हो रहे हैं वो मशीनें घिस चुकी हैं. उनको अपग्रेड करने की जरूरत है ताकि पता चल सके कि वोटर को पता चले कि उसका वोट किस उम्मीदवार, पार्टी को गया है. ब्रह्मा ने यह भी कहा कि जब ईवीएम की जांच के दौरान पॉलिटिकल पार्टी के लोग भी मौजूद होते हैं. ईवीएम मशीन की चार स्तर पर जांच होती है. राज्य के स्तर पर, जिला स्तर पर, चुनाव क्षेत्र स्तर पर और पोलिंग बूथ स्तर पर. चार जांच के बाद ही 11 लाख पोलिंग बूथ तक ईवीएम पहुंचते हैं.


ईवीएम से छेड़छाड़ पर क्या बोले एमएस गिल



एम एल गिल देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे 1996 से 2001 तक. उसके बाद गिल कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. सांसद बने और मनमोहन सरकार में मंत्री भी रहे. उनकी पार्टी ईवीएम के खिलाफ मुहिम में शामिल है लेकिन एम एस गिल का भी साफ साफ कहना है कि ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं हो सकती है.


गिल ने कहा कि कोई भी ऐसा सिस्टम नहीं है जो एक साथ लाखों ईवीएम के साथ छेड़छाड़ कर सके. गिल तो यहां तक कह रहे हैं कि 2009 में जब चुनाव आयोग ने आरोप लगाने वालों को बुलाकर सबूत देने को कहा था तब भी कोई आरोप साबित नहीं कर पाया था. उन्होंने ने यह भी कहा कि जो पार्टी हार जाती है वह इस तरह की बातें करती है और बाद में छोड़ देती है.


ईवीएम की कहानी, केजे राव की जुबानी



चुनाव राजनीति में के जे राव को कौन नहीं जानता होगा. केजे चुनाव आयोग के सलाहकार रह चुके हैं. केजे राव जब ये कहते हैं कि ईवीएम से कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती है तो किसी और शक या सवाल की गुंजाइश नहीं बचती. उन्होंने बताया कि ईवीएम में माइक्रो कंट्रोलर चिप लगा होता है, जिसे एक बार ही प्रोग्राम कर सकते हैं. इसमें एक कोड होता है जिसे ना तो पढ़ सकते हैं, ना ही सुन सकते हैं.


जानें ईवीएम से जुड़ी कुछ जरूरी बातें 


आपको बता दें कि ईवीएम मशीन में जो माइक्रोचिप लगी होती है, उसी में वोट स्टोर होते हैं और इसे 10 साल तक सुरक्षित रखा जाता है. एक खास बात और कि ईवीएम मशीन में एक मिनट में सिर्फ पांच वोट ही डाले जा सकते हैं. इसके साथ ही एक ईवीएम मशीन में सिर्फ 3840 वोट ही डाले जा सकते हैं. लेकिन चुनाव आयोग की व्यवस्था के मुताबिक एक पोलिंग बूथ पर 1500 से ज्यादा मतदाता नहीं हो सकते हैं. एक ईवीएम में 16 उम्मीदवारों के नाम डाले जा सकते हैं. अगर ज्यादा उम्मीदवार हो तो एक और इवीएम जोड़ा जाता है. इसतरह से कुल चार ईवीएम ही जोड़े जा सकते हैं. यानि 64 उम्मीदार हों तो ईवीएम से वोटिंग कराई जाएगी और अगर 64 से ज्यादा उम्मीदवार हों तो बैलेट पेपर से वोटिंग कराई जाएगी.


कौन-कौन कंपनी बनाती है ईवीएम मशीन 


ईवीएम मशीन को प्राइवेट कंपनी नहीं बनाती बल्कि इसे दो सरकारी कंपनी बनाती बीईएल (भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड) और ईसीआईएल (इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) मिलकर बनाती है. इस मशीन को चलाने के लिए बिजली की जरूरत नहीं पड़ती. यह साधरण 6 वोल्ट की ऐल्कैलाइन बैट्री से चलती है. यह बैट्री भी ईवीएम बनाने वाली कंपनी ही बनाती है. वोटिंग के तुरंत बाद बैट्री निकाल दिया जाता है और बिना बैट्री ईवीएम नहीं चल सकती.