Raaj Ki Baat: देश के सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश वैसे हर सियासी दल के लिए अहम है, लेकिन बीजेपी की तो जान जैसे इस तोते में बसी हुई है. राम मंदिर निर्माण से लेकर काशी विश्वनाथ कारीडोर समेत पीएम मोदी के तमाम ड्रीम प्रोजेक्ट चल रहे हैं. इसके अलावा बीजेपी ये जानती है कि दिल्ली का रास्ता तो यूपी से होकर जाता ही है, लेकिन अन्य राज्यों पर भी यूपी चुनावों की धमक जायेगी. इसीलिए, संघ परिवार से लेकर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपना एक-एक कील-कांसा दुरुस्त करने में जुटा है. मगर तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ पेंच अभी भी ढीले ही रह जा रहे हैं, जिससे खनकती हुई आवाज आती है कि –यूपी बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
वास्तविकता ये है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की योगी सरकार पूरे माहौल पर भारी है. चाहे प्रचार या विज्ञापनों की बात हो या फिर सड़क पर भी योगी और बीजेपी के राष्ट्रीय और प्रदेश के नेता पूरी तरह से छाये पड़े हैं. विपक्ष एक तो अलग-अलग है और उनकी सक्रियता भी वैसी नहीं दिखाई पड़ रही है. यूपी में अंडर करंट का पता तो बाद में ही पता चलेगा, लेकिन सियासी पेशबंदी में अभी बीजेपी अपने प्रतिपक्षियों पर भारी दिखाई पड़ती है, लेकिन सियासत सिर्फ इतना ही काफी नहीं होता. कई बार सियासत में पार्टी की ताकत पर उसके अंदर की बातें या तमाम धड़े या ताकतें भारी पड़ जाती हैं.
आपको लग रहा होगा कि वो बीजेपी जो मुख्यमंत्री तो मुख्यमंत्री पूरी कैबिनेट बिना किसी शोर के बदल देती है. एक स्वर विरोध में नहीं उठता. मतलब कहीं चूं भी नहीं होती तो उत्तर प्रदेश जैसा राज्य जहां से खुद पीएम मोदी आते हैं, वहां पर ऐसा क्या है? तो इस सवाल का जवाब आपको दिया जाए- उससे पहले 13 सितंबर को लखनऊ में हुई मीडिया वर्कशॉप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भाषण के ये अंश सुनिये. उन्होंने कहा कि ये सेशन मीडिया के लिए खुला था. इसमें योगी कह रहे हैं कि मुझे तो इस वर्कशाप के बारे में पता ही नहीं था, मुझे तो अध्यक्ष जी ने अलीगढ़ में बताया कि यहां आना है.
जिस उत्तर प्रदेश में परिंदा भी पर मारता है तो योगी सरकार को पता होता है, ऐसा दावा किया जाता है. मगर बीजेपी अपने प्रवक्ताओं के लिए मीडिया वर्कशॉप बुलाती है. उसमें दिल्ली से प्रवक्ता होते हैं और पूरे यूपी के प्रवक्ता और तमाम मीडिया पेनलिस्ट समेत 98 लोग मौजूद रहते हैं. संगठन मंत्री सुनील बंसल इसके कर्ता-धर्ता हैं. पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह समेत तमाम वरिष्ठ पदाधिकारी इस वर्कशॉप में मौजूद हैं. इसके बाद भी सीएम योगी आदित्यनाथ को नहीं पता होता है कि वो जिस पार्टी से मुख्यमंत्री है, उसके कार्यक्रम के बारे में ही उनको जानकारी नहीं है.
दरअसल, जिस तरह से दो माह पहले यूपी में काफी सियासी हलचल थी. लगातार यूपी को लेकर प्रदेश से लेकर केंद्र तक बैठकें हुईं थीं. माना जा रहा था कि कुछ बड़े बदलाव होंगे. मंत्रिमंडल विस्तार होंगे. मगर कुछ नहीं हुआ. मुख्यमंत्री निवास से जुड़े तमाम लोगों ने इसे योगी की जीत की तरह ही प्रचारित किया. ये धारणा बलवती हुई कि योगी बेहद मजबूत हैं और केंद्र की चाहत उनके लिए फरमान नहीं है. कुछ चेहरों को लेने या फिर संगठन में परिवर्तन तक पर योगी ने अपनी ही चलाई.
बहरहाल संघ और शीर्ष नेतृत्व के बीच बैठकों के कई दौर के बाद इस हलचल पर तो रोक लग गई. मगर उत्तर प्रदेश बीजेपी और सरकार के बीच के रस्साकशी के कयासों पर रोक नहीं लग सकी. सरकार और संगठन सब एक प्लेटफार्म पर है. सरकार के भीतर भी सब कुछ ठीक-ठाक है. ये साबित करने में बीजेपी काफी हद तक अब सफल भी हो चुकी है. मगर इसी बीच वो बैठक जो सरकार के कामकाज को जनता के बीच बताने या जताने के लिहाज से अहम थी, उसके बारे में ही सीएम को पता न होना. इसके मायने निकालना कठिन नहीं हैं.
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