कोलकाता: पांच दशक से भी ज्यादा समय बाद बंगाल की विधानसभा में टीएमसी के द्वारा विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव पास हुआ है. हालांकि बीजेपी के सभी विधायकों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है लेकिन 196 वोटों से ये प्रस्ताव पास हो गया है. अब सवाल ये है कि कैसे ये प्रस्ताव अपनी सत्ता को बचाने के लिए सीएम ममता की मदद करेगा क्योंकि सोशल मीडिया पर ये चर्चा हो रही है कि हो सकता है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद से ममता बनर्जी को इस्तीफा देना पड़ सकता है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से तीरथ सिंह रावत को उपनिर्वाचन न होने के कारण इस्तीफा देना पड़ा. वे भी उत्तराखंड के चुनाव में किसी चुनाव क्षेत्र से नहीं जीते थे. वहीं पश्चिम बंगाल (West Bengal) में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) नंदीग्राम सीट से शुभेंदु अधिकारी से 2000 के कुछ कम वोटों से हार गई थी. दूसरी तरफ अगले 6 महीनों में कोविड महामारी के कारण उपचुनाव के आयोजन पर अनिश्चितता ममता और तृणमूल कांग्रेस को काफी आशंका में डाल रही है.
साथ ही उत्तराखंड में हालिया सीएम पद से इस्तीफे के बाद टीएमसी के लिए चिंता बढ़ गई है. इसलिए ये विधान परिषद न केवल ममता के लिए फायदेमंद साबित होगी बल्कि मुकुल रॉय जैसे दूसरे टीएमसी के नेताओ के लिए भी फायदेमंद होगी.
विधान परिषद का वादा
दरअसल, ममता बनर्जी ने अपने पहले चुनावी जीत के बाद 2011 में वादा किया था कि वो एक विधान परिषद का गठन करेंगी. इस वादे को पूरा करने पर उन पर काफी जोर भी है क्योंकि ये टीएमसी के अन्य नेताओं के लिए भी एक स्थान की स्थापना करेगी. अभी भी लोकसभा और राज्यसभा में ये प्रस्ताव पास होना बाकी है. जिसके बाद राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद ही विधान परिषद का निर्माण सम्पूर्ण होगा.
हालांकि इससे पहले भी असम और राजस्थान के मामले में देखा गया था कि विधान परिषद का प्रस्ताव राज्य विधानसभा में पास होने के बावजूद राज्यसभा में अटक गया. बंगाल में प्रस्ताव राज्य विधानसभा में पास हो चुका है, बीजेपी की 69 वोट प्रस्ताव के खिलाफ थे. बीजेपी का कहना है कि ये टीएमसी का पिछले दरवाजे की राजनीति करने का एक तरीका है. ममता के साथ-साथ जिन नेताओं को बंगाल के चुनाव में हार स्वीकार करनी पड़ी, उनके लिए जगह बनाने के लिए ये सियासी चाल चली जा रही है.
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