Ishwar Chandra Vidyasagar Birthday: आज महान समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की जयंती है. आज ही के दिन 1820 में उनका जन्म हुआ था. देश में जब कभी भी भारतीय दर्शन, साहित्य और समाज सुधारक की बात छिड़ेगी तो राम मोहन राय के बाद जिनका नाम सबसे पहले आएगा वह ईश्वरचंद्र विद्यासागर ही हैं. वैसे तो ईश्वरचंद्र विद्यासागर से परिचय स्कूल के दिनों में ही हो जाता है. देश के कई स्कूलों में बच्चो के सिलेबस में ईश्वरचंद्र विद्यासागर का पाठ शामिल है, लेकिन अगर आप फिर भी नहीं जानते कि वह कौन हैं और बेहतर समाज के निर्माण में उनका क्या योगदान है तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं.



ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने जब महिलाएं हाशिए पर थी, साथ ही समाज में बिना किसी सम्मान के जी रही थीं तब विधवा विवाह (पुनर्विवाह) पर लगी सामाजिक रोक को खत्म करने के लिए काम किया. कहते हैं कि राजा राम मोहन राय के असली वारिस ईश्वरचंद्र विद्यासागर ही हैं, जिन्होंने समाज सुधार को निरंतर आगे बढ़ाया. इन दोनों समाज सुधारकों ने न सिर्फ हिंदू धर्म बल्कि मानवता का कल्याण किया. उनके सुधार कार्य की बदौलत समाज बड़े परिवर्तन का साक्षी बना. राजा राम मोहन राय ने जहां सती प्रथा का अंत किया तो वहीं ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह (पुनर्विवाह) के लिए काफी काम किया. यही कारण है कि समाज में इनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है.


कौन थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर


ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को कोलकाता में हुआ था. इनके बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था. शुरुआती शिक्षा गांव के स्कूल में हुई थी. पढ़ाई में अव्वल होने के कारण उन्हें कई संस्थानों से छात्रवृत्तियां मिली. बड़े समाज सेवी के तौर पर उन्हें प्रसिद्धी मिली. महिला शिक्षा और विधवा विवाह के लिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने जमकर आवाज उठाई. ईश्वरचंद्र विद्यासागर के कोशिशों के कारण ही साल 1856 में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ.उन्होंने अपने इकलौते बेटे का विवाह एक विधवा से ही किया. नारी शिक्षा के लिए भी इन्होंने जमकर कदम उठाए. कुल 35 स्कूल भी खुलवाए. इन्हें सुधारक के रूप में राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता है.


लंदन में लगाई झाड़ू, जानिए वजह


ईश्वरचंद्र विद्यासागर के बारे में कहा जाता है कि वह समय के बड़े पावंद थे. वह हर हाल में चीजों को तय समय पर ही करना चाहते थे. समय की पावंदी को लेकर एक किस्सा मशहूर है. एक बार उन्हें लंदन में एक सभा को संबोधित करना था. जब वह संबोधन सभा में पहुंचे तो देखा कि कि लोग आ गए हैं और बाहर खड़े हैं. उन्होंने वहां आए लोगों से पूछा आप लोग अंदर हॉल में क्यों नहीं जाते ? बाहर क्यों खड़े हैं ? लोगों ने कहा, '' अभी हॉल की सफाई नहीं हुई है क्योंकि सफाई कर्मचारी आए नहीं हैं.'' बस फिर क्या था ईश्वर चंद्र ने खुद झाड़ू उठाई और हॉल को पूरा साफ किया. उनका साधारण और यही सरल व्यक्तित्व उनको दूसरों से अलग बनाता था.


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