इजरायल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष को एक हफ्ते से ज्यादा हो गया है. अब भी दोनों तरफ बम के गोले दागे जा रहे हैं और लोग अपनी जान बचाते फिर रहे हैं. 7 अक्टूबर को हमास ने ताबड़तोड़ रॉकेटों की बौछार करके जंग की शुरुआत की, जो फिलहाल थमती नजर नहीं आ रही. इस जंग ने दुनियाभर के नेताओं और विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है. आने वाले दिनों में इसके क्या अंजाम भुगतने होंगे, एक्सपर्ट्स इसका आकलन करने में लगे हैं. 


इजरायल और हमास के बीच चल रही इस लड़ाई ने हिंदुस्तान में सियासी लकीर खींच दी है. भारत सरकार ने अपना रुख साफ कर दिया है कि वह आतंकवाद के खिलाफ है और इस समय इजरायल के साथ है. वहीं, कुछ राजनीतिक दलों ने फलस्तीन के नागरिकों के अधिकारों की बात की है. साथ में सरकार से यह भी पूछा है कि फलस्तीन के मुद्दे पर भारत के रुख में बदलाव क्यों आया है. 


पीएम मोदी ने इजरायल के साथ जताया समर्थन
बीते शनिवार को जब हमास ने इजरायल पर रॉकेट बरसाए तो उसके कुछ घंटों के बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने X (ट्विटर) पर पोस्ट कर इसे आतंकी हमला करार दिया और कहा कि इस मुश्किल वक्त में वह इजरायल के साथ हैं. इसके बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से फोन पर भी बात की और फिर दोहराया की वह भारत इजरायल के साथ खड़ा है.


13 अक्टूबर, 2023 को दिल्ली में हुए G20 पार्लियामेंट्री स्पीकर समिट में भी पीएम मोदी ने आतंकवाद पर चर्चा की और हमास पर निशाना साधा. हालांकि, अपने संबोधन में उन्होंने इजरायल, फलस्तीन या हमास का नाम नहीं लिया. पीएम मोदी ने कहा कि पूरी दुनिया संकट से घिरी है और सबको साथ मिलकर चलने की जरूरत है. उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ सबको एकजुट होने पर जोर देते हुए कहा कि दशकों से भारत आतंकवाद का दंश झेल रहा है. पीएम मोदी ने आतंकवाद को बड़ी चुनौती बताते हुए कहा कि ये कहीं भी, किसी भी कारण से, किसी भी रूप में हो मानवता के खिलाफ है. हम सभी को सख्ती बरतनी होगी. 


कांग्रेस ने पूछा, फलस्तीन पर क्यों बदला भारत का रुख?
इजरायल और हमास के बीच जारी जंग को लेकर पूरी दुनिया दो खेमों में बंट गई है. एक खेमा इजरायल के साथ है और दूसरा खेमा फलस्तीन का समर्थन कर रहा है. कांग्रेस ने भी पार्टी कार्य समिति की बैठक में फलस्तीन का समर्थन किया और कहा कि वह लंबे समय से फलस्तीनी लोगों के लिए उनकी जमीन और अधिकारी के पक्षधर हैं.


बीते शुक्रवार को कार्य समिति की बैठक में इजरायल और हमास के बीच सीजफायर की भी मांग कांग्रेस ने की. पार्टी ने सरकार के रुख पर भी सवाल खड़े किए और पूछा कि फलस्तीन पर भारत के परंपरागत रुख में बदलाव क्यों. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने हमेशा फलस्तीन के हक के लिए आवाज उठाई थी. इतना ही नहीं, पूर्व पीएम अटल बिहारी  वाजपेयी ने भी फलस्तीन की हक की बात कही थी, जिसे लेकर अब विपक्ष भारतीय जनता पार्टी को घेर रहा है. इस पर विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि फलस्तीन पर भारत ने अपना रुख नहीं बदला है, वह सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ है.


कांग्रेस के बयान से गरमाई सियासत
कांग्रेस के इन बयानों के बाद इजरायल-हमास युद्ध ने भारत में सियासी रंग ले लिया है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह पर हमला बोला और कहा कि आंतकवादी ओसामा बिन लादेन को जी कहकर संबोधित करने वाले आज ज्ञान दे रहे हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने शनिवार को कहा कि इजरायल के खिलाफ युद्ध में जो लोग फलस्तीनी संगठन हमास का समर्थन कर रहे हैं वे दरअसल आतंकवाद की हिमायत कर रहे हैं. सरमा ने विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी के दर्शन के बाद संवाददाताओं से बातचीत में एक सवाल पर कहा, 'किसी को भी हमास का समर्थन नहीं करना चाहिए.' उन्होंने कहा, 'हमास का समर्थन करना आतंकवाद का समर्थन करना है, जो लोग उसके समर्थन में जुलूस निकालने के लिए खड़े हैं उनके साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए.' इस बवाल के बाद  कांग्रेस नेताओं को सफाई देनी पड़ रही है.


मनीष तिवारी और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने कहा है कि वह हमास का समर्थन नहीं करते हैं. हमास फलस्तीन के नागरिकों का सच्चा प्रतिनिधिन नहीं है. इजरायल और फलस्तीन के मुद्दे पर देश में राजनीतिक दल बंटे हुए नजर आ रहे हैं. कई दलों ने पीएम मोदी से फलस्तीन के प्रति एकजुटता दिखाने की अलपील की है 


ओवैसी बोले- यह सिर्फ मुसलमानों का नहीं, मानवीय मुद्दा है
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि फलस्तीन मुद्दा केवल मुसलमानों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह मानवीय मुद्दा है और यह उन सभी से जुड़ा मामला है जो इंसाफ चाहते हैं. उन्होंने कहा, 'हम अपने प्रधानमंत्री से कहना चाहेंगे...मोदीजी गाजा में फलस्तीनियों पर किये जा रहे अत्याचार को रुकवाइए, फलस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता दिखाइए. इक्कीस लाख लोगों में 10 लाख लोग बेघर हो गए हैं. (इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन) नेतान्याहू दैत्य हैं, वह युद्ध अपराधी हैं. मकानों को जमींदोज किया जा रहा है, 6000 बमों का इस्तेमाल किया गया.'


ओवैसी ने आगे कहा, 'हम भारतीय प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहेंगे कि महात्मा गांधी ने क्या कहा था. गांधी ने कहा था कि फलस्तीन अरबों का है. फलस्तीन अरबों की भूमि है. यह निराशाजनक है कि हमारी सरकार चुप है. यदि हमें महाशक्ति और मतदान के अधिकार के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनना है तो हमारी सरकार और हमारे देश को इजरायल के युद्ध अपराध की निंदा करनी ही होगी. फलस्तीनियों की मदद कीजिए, जिन्हें गाजा से निकाला जा रहा है. ओवैसी ने यहीं नहीं रुके और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को दैत्य तक कह ड़ाला. उन्होंने आरोप लगाया कि गाजा में जो कुछ हो रहा है वह जातीय संहार है. इजरायल युद्ध अपराध कर रहा है और भारत सरकार एवं देश को उसकी निंदा करनी चाहिए.


हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने भी फलस्तीन के साथ जताया समर्थन
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने शनिवार को वैश्विक समुदाय से अपनी जिम्मेदारी निभाने और इजराइल-फलस्तीन मुद्दे का उचित समाधान खोजने का आह्वान करते हुए कहा कि दोनों पक्षों के लोगों को शांति व सम्मान के साथ रहने में सक्षम होना चाहिए. मीरवाइज ने कहा, 'इस्लामिक जगत के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं, जो लोग दर्द को महसूस कर सकते हैं वे (इस मुद्दे पर) चुप्पी देखकर निराश हैं. हम देख रहे हैं कि कैसे बुजुर्गों, बच्चों, महिलाएं और निर्दोषों पर बम बरसाए जा रहे हैं, उनकी हत्याएं हो रही हैं.'


उमर फारूक ने कहा कि अब समय आ गया है कि वैश्विक समुदाय इस मुद्दे का न्यायसंगत समाधान खोजने की अपनी जिम्मेदारी निभाए. फारूक ने कहा, '(इस मुद्दे पर) एकतरफा निर्णय नहीं हो सकता. फलस्तीन का मुद्दा लंबे समय से लंबित मुद्दा है और इसका उचित समाधान निकाला जाना चाहिए. फलस्तीन के लोगों के अधिकार उन्हें वापस दिए जाने चाहिए. उनका राष्ट्र और उनकी जमीन उनसे छीन ली गई है, इससे ज्यादा अत्याचार क्या हो सकता है.'


एनसीपी भी फलस्तीन के साथ
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने भी इजरायल-फलस्तीन मुद्दे पर फलस्तीन के लिए अपना समर्थन जताया है और भारत सरकार के रुख पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि भारत और फलस्तीन की जंग विश्व शांति के लिए खतरा है. वहां की जमीन और घर फलस्तीन के थे, जिस पर इजरायल ने कब्जा कर लिया. शरद पवार ने कहा कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका फलस्तीन की मदद करने की थी. उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रधानमंत्री ने दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से इजरायल का समर्थन कर मूल स्वामियों का विरोध किया है.


मदनी ने कहा, कुछ विश्व शक्तियों की मदद से इजरायल ने कब्जाई फलस्तीन की जमीन
जमीयत (एएम समूह) के अध्यक्ष और मुस्लिम वर्ल्ड लीग के संस्थापक सदस्य मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि जमीयत फलस्तीन के संघर्ष की हमेशा से समर्थक रही है. उन्होंने कहा कि इजरायल ने कुछ विश्व शक्तियों के समर्थन से फलस्तीन की जमीन पर कब्जा किया हुआ है और अब वह फलस्तीनी नागरिकों के अस्तित्व को खत्म करना चाहता है. उन्होंने गाजा पर इजरायली सेना के हमले को आक्रामकता, बर्बरता और अत्याचार करार दिया है. मदनी ने अंतरराष्ट्रीय नेताओं से गाजा में जारी जंगों और बमबारी को तुरंत रोकने के लिए आगे आने की अपील की है. 


इजरायल-फलस्तीन के मुद्दे पर एस. जयशंकर ने यूएई के शेख से की बात
इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध के मुद्दे पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त अरब अमीरात के शेख अब्दुल्लाह बिन जायेद अल नहयान से बात की. बीते बुधवार को उन्होंने अब्दुल्लाह बिन जायेद से युद्ध से पश्चिमी एशिया में उत्पन्न संकट पर चर्चा की. X पर एक पोस्ट के जरिए उन्होंने बताया कि दोनों देश इस मुद्दे पर संपर्क में बने रहेंगे.


विशेषज्ञों का क्या कहना है?
इजरायल और हमास युद्ध को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के रुख पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. जहां कुछ ने इजरायल के साथ एकजुटता और आतंकवाद के प्रति भारत सरकार के सख्त रवैया की सराहना की है. वहीं, कुछ विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि भारत को इस मुद्दे पर अपने पुराने स्टैंड को ही दोहराना चाहिए था, जो इजरायल और फलस्तीन के लिए सह-अस्तित्व की वकालत करता है.


यह भी पढ़ें:-
Indian Army: नए शेल्टर्स, स्पेशल फ्यूल और बैटरी... लद्दाख की खून जमा देने वाली सर्दी से बचने का सेना ने बनाया 'सुपर प्लान'